कोसने में पारंगत बनिए 

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विवेक रंजन श्रीवास्तव।

 

                                व्यंग्य 

                      कोसने में पारंगत बनिए 

 

लोकतंत्र है तो अब राजा जी को चुना जाता है शासन करने के लिए। लिहाजा जनता के हर भले का काम करना राजा जी का नैतिक कर्तव्य है। जनता ने पांच साल में एक बार धकियाये धकियाये वोट क्या दे दिया लोकतंत्र ने सारे जरा भी सक्रिय नागरिकों को और विपक्ष को तो पूरा अधिकार दिया है कि वह राजा जी से उनके हर फैसले पर सवाल करे।

दूसरे देशों के बीच जनता की साख बढ़ाने राजा जी विदेश जाएँ तो बेहिचक राजा जी पर आरोप लगाइये कि वो तो तफरीह करने गए थे। एक जागरूक एक्टीविस्ट की तरह राइट ऑफ इन्फर्मेशन में राजा जी की विदेश यात्रा का खर्चा निकलवाकर कोई न कोई पत्रकार छापता ही है कि जनता के गाढ़े टैक्स की इतनी रकम वेस्ट कर दी। किसी हवाले से छपी यह जानकारी कितनी सच है या नहीं इसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है,आप किस कॉन्फिडेंस से इसे नमक मिर्च लगाकर अपने दोस्तों के बीच उठाते हैं,महत्व इस बात का है।

विदेश जाकर राजा जी वहां अपने देशवासियों से मिलें तो बेहिचक कहा जा सकता है कि यह राजा जी का लाइम लाइट में बने रहने का नुस्खा है। कहीं कोई पड़ोसी घुसपैठ की जरा भी हरकत कर दे या किसी विदेशी खबर में देश के विषय में कोई नकारात्मक टिप्पणी पढ़ने मिल जाये या किसी वैश्विक संस्था में कहीं देश की कोई आलोचना हो जाये तब आपका परम कर्तव्य होता है कि आप किसी अख़बार का सम्पादकीय पढ़कर अधकचरा ज्ञान प्राप्त करें और आफिस में काम काज छोड़कर राजा जी के नाकारा नेतृत्व पर अपना परिपक्व व्यक्तव्य सबके सामने पूरे आत्मविश्वास से दें, चाय पीएं और खुश हों । राजा जी इस परिस्थिति का जिस भी तरह मुकाबला करें उस पर टीवी डिबेट शो के जरिये नजर रखना और फिर उस कदम की आलोचना देश के प्रति हर उस शहरी का दायित्व होता है जो इस स्थिति में निर्णय प्रक्रिया में किसी भी तरह का भागीदार नहीं हो सकता ।

राजा जी अच्छे कपड़े पहने तो ताना मारिये कि गरीब देश का नेता महंगे लिबास क्यों पहने हुए है, यदि कपड़े साधारण पहने जाएँ तो उसे ढकोसला और दिखावा बता कर कोसना न भूलिये। देश में कभी न कभी कुछ चीजों की महंगाई,कुछ की कमी तो होगी ही इसे आपदा में अवसर समझिये। विपक्ष के साथ आप जैसे आलोचकों की पौ बारह , इस मुद्दे पर तो विपक्ष इस्तीफे की मांग के साथ जन आंदोलन खड़ा कर सकता है। कथित व्यंग्यकार हर राजा के खिलाफ कटाक्ष को अपना धर्म मानते ही हैं। सम्पादकीय पन्ने पर छपने का अवसर न गंवाइए,यदि आप में व्यंग्य कौशल न हो तो भी सम्पादक के नाम पत्र तो आप लिख ही सकते हैं। राजा जी के पक्ष में लिखने वाले को गोदी मीडिया कहकर सरकारी पुरुस्कार का लोलुप साहित्यकार बताया जा सकता है और खुद का कद बडा किया जा सकता है। महंगाई ऐसी पुड़िया है जिसे कोई खाये न खाये उसका रोना सहजता से रो सकता है।आपकी हैसियत के अनुसार आप जहां भी महंगाई के मुद्दे को उछालें चाय की गुमटी , पान के ठेले या काफी हॉउस में आप का सुना जाना और व्यापक समर्थन मिलना तय है। चूँकि वैसे भी आप खुद करना चाहें तो भी महंगाई कम करने के लिए आप कुछ कर ही नहीं सकते अतः इसके लिए राजा जी को गाली देना ही एक मात्र विकल्प आपके पास रह जाता है।

राजा जी नया संसदीय भवन बनवाएं तो पीक थूकते बेझिझक इसे फिजूलखर्ची बताकर राजा जी को गालियां सुनाने का लाइसेंस प्रजातंत्र आपको देता है,इसमें आप भ्रष्टाचार का एंगिल ढूंढ सकें तो आपकी पोस्ट हिट हो सकती है। इस खर्च की तुलना करते हुए अपनी तरफ से आप बेरोजगारी की चिंता में यदि कुछ सच्चे झूठे आंकड़े पूरे दम के साथ प्रस्तुत कर सकें तो बढिया है वरना देश के गरीब हालातों की तराजू पर आकर्षक शब्दावली में आप अपने कथन का पलड़ा भारी दिखा सकते हैं।

यदि राजा जी देश से किसी गुमशुदा प्रजाति के वन्य जीव चीता वगैरह बड़ी डिप्लोमेसी से विदेश से ले आएं तो करारा कटाक्ष राजा जी पर किया जा सकता है,ऐसा कि न तो राजा जी से हँसते बने और न ही रोते। इस फालतू से लगने वाले काम से ज्यादा जरुरी कई काम आप राजा जी को अँगुलियों पर गिनवा सकते हैं।

यदि धर्म के नाम पर राजा जी कोई जीर्णोद्धार वगैरह करवाते पाए जाएँ तब तो राजा जी को गाली देने में आपको बड़ी सेक्युलर लाबी का सपोर्ट मिल सकता है। राजा जी को हिटलर निरूपित करने,नए नए प्रतिमान गढ़ने के लिए आपको कुछ वैश्विक साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे आपकी बातें ज्यादा गंभीर लगें ।

कोरोना से निपटने में राजा जी ने इंटरनेशनल डिप्लोमेसी की। किस तरह के सोशल मीडिया कैम्पेन चलते थे उन दिनों,विदेशों को वेक्सीन दें तो देश की जनता की उपेक्षा की बातें , विपक्ष के बड़े नेताओ द्वारा वेक्सीन पर अविश्वास का भरम वगैरह वगैरह वो तो भला हुआ कि वेक्सीन का ऊँट राजा जी की करवट बैठ गया वरना राजा जी को गाली देने में कसर तो रत्ती भर नहीं छोड़ी गई थी।

देश में कोई बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि पर राजा जी का बयान आ जाये तो इसे उनकी क्रेडिट लेने की तरकीब निरूपित करना हर नाकारा आदमी की ड्यूटी होना ही चाहियेऔर यदि राजा जी का कोई ट्वीट न आ पाए तब तो इसे वैज्ञानिकों की घोर उपेक्षा बताना तय है।

आशय यह है कि हर घटना पर जागरुकता से हिस्सा लेना और प्रतिक्रिया करना हर देशवासी का कर्तव्य होता है। इस प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका सबसे सुरक्षित पोजीशन होती है।“मैंने तो पहले ही कहा था “ वाला अंदाज और आलोचना के मजे लेना खुद कंधे पर बोझा ढोने से हमेशा बेहतर ही होता है। इसलिए राजा जी को उनके हर भले बुरे काम के लिए गाली देकर अपने नागरिक दायित्व को निभाने में पीछे न रहिये। तंज कीजिये,तर्क कुतर्क कुछ भी कीजिये सक्रिय दिखिए। बजट बनाने में बहुत सोचना समझना दिमाग लगाना पडता है।आप तो बस इतना कीजिये कि बजट कैसा भी हो, राजा कोई भी हो, वह कुछ भी करे आप बस उसे गाली दीजिये, आप अपना पल्ला झाड़िये और देश तथा समाज के प्रति अपने बुद्धिजीवी होने के कर्तव्य से फुर्सत पाइये।            (विनायक फीचर्स)

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