संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर, (मध्यप्रदेश)
अपने हो न पाए,
अपने होकर भी जो अपने हो न पाए,
चुभते होंगे कांटे रात भर ना सो पाए।
कभी गिरेबा में भी झाँक लिया करों,
रिश्तों के समुन्दर में नहा लिया करों!
हुई गलतियाँ माफी माँग लिया करों।
अपने होकर भी जो अपने हो न पाए,
चुभते होंगे कांटे रात भर ना सो पाए।
अपनों को कैसे भूल जाया करते हो,
बेगानों को ही गले लगाया करते हो!
ऊपरी दिखावे से बहलाया करते हो।
अपने होकर भी जो अपने हो न पाए,
चुभते होंगे कांटे रात भर ना सो पाए।
अब कब तक परिपक्वता ना आएगी,
सेवानिवृत्ति भी तो गले में पड़ जाएगी!
अब भी थाम लो रिश्तों को लहराएगी।