प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
हिसार (हरियाणा)
हाथों में है किताब मेरे।
उतरेंगे नकाब तेरे।
सुन तो ले जवाब मेरे॥
भरे थे तो क़द्र न जानी,
सूखे अब तालाब तेरे।
अपने खाते मत खुला,
कच्चे है हिसाब तेरे।
देख चकित रह जायेगा
मित्र है दगाबाज़ तेरे।
काँटों से पथ तू सजा,
ताज़ा है गुलाब मेरे।
रख तलवारे तू संभाले,
हाथों में है किताब मेरे।
जो चाहेगा ‘सौरभ’ बुरा,
सितारे हो खराब तेरे॥