अक्षिता जाँगिड़, जयपुर, राजस्थान।
बात – बात में बात हो गई,
कड़वी – मीठी साथ हो गई
कच्चे से पहरें में बंधकर,
फ़िर मुस्कुराती शाम हो गई
ये नया सा चेहरा, नया सवेरा
रिश्तों में कुछ बौछार हो गई
पाया कितना, जाना कितना
देखा इतना, की रात हो गई
यूँ चंद लम्हें बिछड़कर उससे
कुछ गहरी, पक्की याद हो गई
सबसे पराया, ये अपना सा लगा
कैसे फिर यह मुलकात हो गई