रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों की साक्षी है अंगभूमि

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शिव शंकर सिंह पारिजात।

 

रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों की साक्षी है अंगभूमि

 

 

अंग की भूमि भागलपुर का इतिहास अति प्राचीन है और इसके साथ कई महत्वपूर्ण पौराणिक एवं महाकाव्य-कालीन गाथाएं जुड़ी हुई हैं। बुद्ध-काल से भी पूर्व यह एक समुन्नत राज्य था। यही कारण है कि चीनी यात्री ह्वेन संग ने इसकी राजधानी चम्पा को विश्व के समुन्नत और विकसित नगरों में एक बताया था। पौराणिक काल में देवताओं तथा दानवों के द्वारा किये गये समुद्र-मंथन की घटना इसी भूमि पर हुई थी माना जाता है कि बौंसी में स्थित मंदार पर्वत को मथनी बनाकर ही समुद्र मंथन किया गया था। स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण के समय पुण्य सलिला गंगा यहीं पर सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ धाम में आकर जाह्नवी कहलाई थी। कामदेव द्वारा भगवान शिव का ध्यान भंग किये जाने पर क्रोधित शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला से यहीं पर आकर कामदेव ने अपना ‘अंग’ अर्थात शरीर त्यागा था जिसके कारण यह भूमि ‘अंग’ कहलाई थी। ऐसे तो अंग की प्रसिद्धि महाभारतकालीन योद्धा कर्ण की भूमि के रूप में सदियों से है, किंतु इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की गाथा को महिमामंडित करनेवाले महाकाव्य ‘रामायण’ के भी कई महत्वपूर्ण प्रसंग अंग से जुड़े हुए हैं।

सदियों से भारतीय जनमानस की धर्म तथा आस्था का प्रतीक बने महर्षि वाल्मीकि रचित ‘श्रीमद् रामायण’ में अंगभूमि की प्रमुखता से चर्चा है जो त्रेता युग में इस प्राचीन भूमि की महत्ता को दर्शाता है। वाल्मीकि रामायण में वर्णित दृष्टांतों से यह लक्षित होता है कि इस पावन भूमि पर ही श्रीराम के जन्म की पृष्ठभूमि लिखी गई थी। अयोध्या नरेश दशरथ और अंग के राजा रोमपाद न सिर्फ अभिन्न मित्र थे, वरन् निकट के संबंधी भी थे। श्रीराम की माता और राजा दशरथ की रानी कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी का विवाह अंगराज रोमपाद के साथ हुआ था। रोमपाद को राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शान्ता को गोद दिया था जो अंग के महान ऋषि श्रृंग्य अर्थात श्रृंगी ऋषि के साथ ब्याही गई थी। इन्हीं ऋषि श्रृंगी के द्वारा सम्पादित अश्वमेध यज्ञ स्वरूप ‘पुत्र कामेष्टि यज्ञ’ के फल से श्रीराम सहित भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। पुत्र कामेष्टि यज्ञ हेतु ऋषि श्रृंगी को अयोध्या आमंत्रित करने के लिये स्वयं राजा दशरथ अंग आये थे।

अंगभूमि और अयोध्या के उक्त समस्त प्रकरणों का महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण के विभिन्न स्थानों के अलावा ‘बालकाण्ड’ के नवम सर्ग से लेकर अष्टादश (18 वां) सर्ग में प्रमुखता से वर्णन किया गया है। वाल्मीकि रामायण के अलावा तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस, आनन्द रामायण और आध्यात्म रामायण में भी इसके उल्लेख मिलते हैं।

राम-काव्य संबंधित ग्रंथों में वाल्मीकि रामायण को अत्यधिक प्रमाणिक तथा इतिहास क्रम की दृष्टि से सम्पुष्ट माना जाता है। कारण, वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने ‘आंखों देखी’ विवरणों को अपने ग्रंथ में लिपिबद्ध किया है।वाल्मीकि के आश्रम में ही श्रीराम के पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था।

वाल्मीकि रामायण में अंग के प्रसंगों की चर्चा करें तो इसमें अंगदेश के राजा रोमपाद को एक बड़ा ही प्रतापी और बलवान बताया गया है -‘एतस्मिन्नेव काले तु रोमपाद: प्रतापवान/ अंगेषु प्रथितो राजा भविष्यति महाबल:’। राजा दशरथ और राजा रोमपाद तथा शान्ता के संबंध में उल्लिखित है कि राजा दशरथ की अंगराज के साथ मित्रता होगी और दशरथ को शान्ता नाम की एक परम सौभाग्यशालिनी कन्या होगी -‘अंगराजेन सख्यं च तस्य राज्ञो भविष्यति।/कन्या चास्य महाभागा शान्ता नाम भविष्यति।।’

रामायण में यह भी वर्णित है कि अंगराज रोमपाद के यहां पली-बढ़ी दशरथ की पुत्री शान्ता का विवाह अंग के ऋषि श्रृंगी से हुआ था । दशरथ के मंत्री सुमन्त्र राजा दशरथ को अश्वमेध यज्ञ के बारे में बताते हुए उनसे कहते हैं कि इस तरह श्रृष्य श्रृंग उनके (दशरथ के) जमाता होते हैं

‘श्रृष्यश्रृंगस्तु जामाता पुत्रांस्तव विधास्यति।’

वाल्मीकि रचित श्रीमद् रामायण के अष्टम एवं नवम सर्गों में वर्णित है कि राजा दशरथ सभी धर्मों के ज्ञाता व प्रभावशाली होते हुए भी वंश चलाने के लिये कोई संतान नहीं होने के कारण सदा चिंतित रहते थे। उन्होंने अंततः पुत्र प्राप्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करने की ठानी जिसके संबंध में राजा के पुरोहितों एवं मंत्री सुमन्त्र ने बताया कि इस हेतु ‘पुत्र कामेष्टि यज्ञ’ सम्पादन में अंग के सघन वन में निवास करने वाले ऋषि श्रृंगी के अलावा कोई सक्षम नहीं है। वे ही आपके लिये पुत्रों को सुलभ करने वाले यज्ञकर्म का सम्पादन करेंगे।

श्रृष्यश्रृंगस्तु जामाता पुत्रांस्तव विधास्यति’।

तत्पश्चात सुमन्त्र के वचन से हर्षित होकर राजा दशरथ मुनिवर वशिष्ठ को उक्त बातें बताते हैं और उनकी आज्ञा लेकर रनिवास की रानियों तथा मंत्रियों के साथ अंगदेश के लिये प्रस्थान करते हैं जहां विप्रवर श्रृंग निवास करते थे।

सुमन्त्रस्य वचा श्रुत्वा हृष्टो दशरथोsभवत।/अनुमान्य वसिष्ठं च सूतवाक्यं निशाम्य च।।/अभिचक्राम तं देशं यत्र वै मुनिपुंगव:।।’

इसके उपरांत पुत्र-प्राप्ति की कामना लेकर ‘पुत्र कामेष्टि यज्ञ’ सम्पादित करने के लिये ऋषि श्रृंगी को आमंत्रित करने हेतु राजा दशरथ स्वयं अंग आये थे तथा 7-8 दिनों तक राजा रोमपाद के यहां ठहरे थे जहां उनका भरपूर अतिथि-सत्कार किया गया था – एवं सुसत्कृतस्तेन सहोषित्वा नरर्षभ:।/सप्ताष्टदिवसान राजा राजानमिदमब्रवीत।।

‘आनन्द रामायण’ में वर्णित है कि श्रीराम ने अंगभूमि भागलपुर के सुल्तानगंज अजगैबीनाथ धाम में प्रवाहित होनेवाली उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल अपने कांवर में लेकर इसे देवघर स्थित वैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग पर अर्पित किया था। वाल्मीकि रामायण, आनन्द रामायण एवं श्रीराम विषयक अन्य ग्रंथों के साथ अंगभूमि भागलपुर की जनश्रुतियों, लोकगाथाओं और लोक-आस्था से जुड़े भागलपुर के सुल्तानगंज में स्थित उत्तरवाहिनी गंगा, मुंगेर के सीताकुंड, मधेपुरा का श्रृंगेश्वर (सिंहेश्वर) स्थान, लखीसराय स्थित श्रृंगी आश्रम, गिद्धौर का गृद्धेश्वर पहाड़ (सीताहरण के दौरान पक्षीराज जटायु के रावण से संबंधित युद्ध-स्थल) सरीखे स्थान रामकथा से जुड़े बताये जाते हैं। (लेखक पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक एवं इतिहासकार हैं )  (विनायक फीचर्स)

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