
प्रभु श्रीराम-प्राकट्य
क्रमशः….प्रथम चरण (श्रीरामचरितबखान)-10
मेरे द्वारा लिखित-डॉ0 हरि नाथ मिश्र।
राम-कथा अति रुचिर-सुहावन।
कहत-सुनत जे हिय हो पावन।।
धाम अजुधिया सरजू-तीरे।
सुर-मुनि करैं आचमन नीरे।।
रघुकुल जनम लियो यक राजा।
नाम दिलीप राम-परपाजा।।
कुल दिलीप दसरथ नृप भयऊ।
रानी तीन पुत्र नहिं रहऊ ।।
जब बिचार नृप दसरथ-मन मा।
उठा नहीं सुत मोरे जन्मा।।
होय बिकल तब दसरथ गयऊ।
गुरु के गृह पूछत अस भयऊ।।
कस अब चली मोर कुल-सासन।
बंस हीन कुल मोर बिनासन।।
अस सुनि गुरु बसिष्ठ तब कहहीं।
पुत्र-जग्य ऋषि श्रृंगी करहीं।।
वहि प्रसाद रानिन्ह कहँ देवहु।
अवसि पुत्र-लाभ नृप लेवहु।।
लइ प्रसाद रानी भइँ जननी।
दसरथ-सुख जनु जाय न बरनी।।
चइत मास नौमी सुभ सुकुला।
दिवस-काल दुपहर तब कुसला।।
सिर पे मुकुट, गरे बनमाला।
सोभित रह प्रभु-बच्छ बिसाला।।
सोभा-सिंधु, नयन अभिरामा।
आयुध कर गहि घन-तन रामा।।
प्रकटे प्रभू धारि भुज चारी।
रूप बिराट नाथ अवतारी।।
लखि माता कौसल्या बिस्मित।
करन लगीं स्तुति अस विस्मृत।।
हे अनंत प्रभु तुम्ह गुन-ग्रामा।
माया परे, ग्यान-सुख-धामा।।
लछिमी-पति, ब्रह्मांड निकाया।
देवहु तुमहिं संत-जन छाया।।
देखि मातु अस बिस्मित नाथा।
पूर्ब जन्म कै कह सभ गाथा।।
तासु हृदय बत्सल्यहि भावा।
मातु-पुत्र हिय स्नेह जगावा।।
तब कौसल्या कह भगवाना।
धारहु नाथ सिसुहि कै बाना।।
मातु-बचन सुनि प्रभू अनूपा।
कीन्हा रुदन तुरत सिसु-रूपा।।
दसरथ-भवन भब्य संगीता।
होवन लगी सुमंगल गीता।।
नृप दसरथ कहँ देहिं बधाई।
पुरवासी सभ धाई-धाई।।
दोहा-मागध-बंदी-सूतजन, लगे करन गुन-गान।
कीन्ह बिदाई सभन्ह कहँ, नृप दइ धन-सम्मान।।
सबिता तहँ ठाढ़े रहे, एक मास पर्यंत।
दिवस-निसा नहिं भान रह, महिमा नाथ अनंत।।