अष्टावक्र-गीता -9

Spread the love

डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)

 

अष्टावक्र-गीता -9

नहीं किसी को मैं लखूँ, निर्जन लगे समाज।

मोह-मुक्त अचरज यही, चाहे कल या आज।।

 

मेरा तन मेरा नहीं, मैं हूँ नहीं शरीर।

मैं न जीव,चैतन्य मैं, अहा!मोह गंभीर।।

 

चित्तवायु उठते अहा! मुझमें सिंधु अनंत।

जगत-लहर ब्रह्मांड की, उठें, न जिनका अंत।।

 

मेरे सिंधु अनंत में, चित्तवायु जब नष्ट।

जीव-वणिक-भव-नाव अपि, होती शीघ्र विनष्ट।।

 

जीव-उर्मियाँ जन्म लें, मुझमें सिंधु अपार।

कर किलोल पुनि आ मिलें, मुझमें हो लाचार।।

 

  • Related Posts

    संतो के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाएं चिंताजनक।

    Spread the love

    Spread the loveसंदीप सृजन।   म.प्र. के सिंगोली में जैन संतों पर हमला।   संतो के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाएं चिंताजनक। हाल ही में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के…

    सीखो गिलहरी-तोते से

    Spread the love

    Spread the loveडॉo सत्यवान सौरभ, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,  बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा।   सीखो गिलहरी-तोते से (साक्षात प्रेम देखकर लिखी गयी कविता)    पेड़…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    संतो के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाएं चिंताजनक।

    • By User
    • April 16, 2025
    • 3 views
    संतो के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाएं चिंताजनक।

    सीखो गिलहरी-तोते से

    • By User
    • April 16, 2025
    • 7 views
    सीखो गिलहरी-तोते से

    झारखंड की राजनीति में नया मोड़, अब झामुमो की कमान हेमंत सोरेन के हाथों।

    • By User
    • April 16, 2025
    • 5 views
    झारखंड की राजनीति में नया मोड़, अब झामुमो की कमान हेमंत सोरेन के हाथों।

    गिलहरी और तोता: एक लघु संवाद

    • By User
    • April 16, 2025
    • 4 views
    गिलहरी और तोता: एक लघु संवाद