प्यार एक तरफा नहीं होता।

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ब्यूरो छत्तीसगढ़ः सुनील चिंचोलकर।

डॉ. सुमन शर्मा, अध्यापिका, दिल्ली सरकार।

       

        प्यार एक तरफा नहीं होता।

मेरी एक दोस्त ने कहा ने कहा कि प्यार हमेशा एक तरफा होता हैं।

एक हमेशा ज्यादा प्यार करता हैं और दूसरा कम। मेरा मानना थोड़ा अलग हैं। प्यार एक भाव हैं जिसमें दो लोग एक समय में एक ही आवृति यानि फ्रीक्वेंसी में जुड़ जाते हैं। दो लोगों के दिलों का ये जुड़ाव इतना गहन होता हैं कि बिना शब्दों और आवाज के ये एक दूसरे के जीवन और मन की जरूरत और इक्षाओं को समझ लेते हैं। इससे भी ज्यादा अपनी पूरी शक्ति और क्षमताओं के साथ उन जरूरतों और इक्षाओं को पूरा करने की कोशिश भी करते है और उन्हें पूरा भी करते हैं। जरुरी नहीं कि ये प्यार का भाव दो जीवित लोगों के मध्य ही हो। ये कहीं सजीव और निर्जीव (किसी वस्तु, उद्देश्य या मूर्ति आदि) के मध्य भी हो सकता हैं l मनुष्य और जानवर के मध्य भी हो सकता हैं। बड़ा विस्तृत भाव हैं जिसे हम प्यार कहते हैं।

एक तरफा होती हैं सोच, एक तरफा होती हैं हमारी अपरिपक्व समझ, एक तरफा होती हैं दूसरे इंसान के सच को न समझ सकने की हमारी अक्षमता, एकतरफा होती हैं हमारी अपनी स्वार्थपूर्ति की भावना और इसी तरह के एकल भाव। हमें अपने आस-पास ऐसे अनेको उदाहरण देखने को मिल जाएंगे, जहाँ एक इंसान अपने मन के भावों को दूसरों पर थोपता जाता हैं, थोपता ही जाता है, और जब दूसरा व्यक्ति हिलने की भी कोशिश करे तो थोपने वाले को लगता हैं कि उसकी कोई अहमियत नहीं हैं। मैं तो इतना प्यार करती हूँ/करता हूँ, इतना ध्यान रखता हूँ/रखती हूँ, इतना सब कुछ करता हूँ/करती हूँ। मैंनें यहाँ जानबूझ कर एक नकारात्मक शब्द ‘थोपना’ का प्रयोग किया हैं ताकि मेरे सुधि पाठक ये समझ सके कि अपनी मर्जी से किसी के लिए कुछ या बहुत कुछ कर देने का या मन में किसी के लिए बहुत कुछ करने का भाव होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे कि –सामने वाले की स्थिति दयनीय हैं (शारीरिक या मानसिक या सामाजिक या आर्थिक रूप से दयनीय) आपका खुद का असामान्य रूप से अतिसंवेदनशील होना इसका एक कारण हो सकता हैं। इसलिए किसी के लिए कुछ करना या करने का भाव मात्र होना प्यार नहीं कहा जा सकता। अगर हम अपने वजूद को मिटा देने की हद तक किसी के लिए जीते हैं, अपनी सीमाएँ लांघ कर किसी के कुछ करते हैं तो यकीन मानिए आप ये सब करने में उस दूसरे इंसान से ज्यादा ख़ुशी और संतोष का अनुभव करते हैं। इससे भी ज्यादा कुछ करते हैं अपनी ख़ुशी के दायरों में हम दूसरे व्यक्ति की ख़ुशी और सुकून के विषय में नहीं सोचते। हम ये विश्लेषण नहीं कर पाते कि मुझे करने में जो ख़ुशी और सुकून महसूस हो रहा हैं क्या दूसरा व्यक्ति भी वैसा ही सहज़ महसूस कर पा रहा हैं। हम जान ही नहीं पाते कि कोई हमारी अच्छाइयों के बोझ के नीचे दबा हुआ महसूस कर रहा हैं या कोई इतनी ज्यादा केयर को अपने लिए बंधन मान रहा हो और उससे आजाद होने के लिए छटपटा रहा हो या दूसरे इंसान के लिए करते-करते आप खुद ही दयनीय अवस्था में आ गए और आपके इस आत्म केंद्रित भाव को दूसरा व्यक्ति घृणा की दृष्टि से देख रहा हो, तो खुद सोचिए ये क्या हैं- एकतरफा प्यार या हमारी खुद की आधी-अधूरी सोच ? यहाँ संवेदनशील लोग ये मान कर अपने दिल की दुनिया में जीते हैं कि जब इतना दूसरे व्यक्ति के लिए इतना सब कर रहे हैं तो उसे तो खुश होना ही चाहिए। यहाँ यह समझ लेना महत्वपूर्ण हैं कि ऐसे संवेदनशील लोगों को भावुक मुर्ख कहा जाता हैं। ऐसे लोग किसी भी रिश्ते के टूटने पर ये नहीं समझ पाते कि इतना प्यार करने के बावज़ूद दूसरे लोग उन्हें छोड़ क्यों जाते हैं ? ऐसे साथियों से विनम्र आग्रह हैं कि दूसरों के लिए जीना छोड़ कर अपने लिए जीना शुरू कीजिए। खुद के लिए उदार बनिए, खुद को प्यार कीजिए। जब आप खुद से प्यार करना सीख जाएंगे तब आप भी मानेंगे कि हां प्यार एकतरफा नहीं होता। प्रेम में तो सृष्टि प्रेममय हो जाती हैं वहाँ उलझन, शिकायत नहीं वरन पूर्णता और विस्तार का भाव होता हैं। प्रेम एकात्मक हो सकता हैं एकतरफा नहीं।

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