उपन्यास मां-भाग 31 एक पत्र।

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ब्यूरो छत्तीसगढ़ः सुनील चिंचोलकर।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर छत्तीसगढ़।

उपन्यास मां-भाग 31 एक पत्र।

मिनी ने सोचा जब इतने अच्छे परिवार की होते हुए भी मेरी मां की ये हालत है तो फिर न जाने दुनिया में कितने ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें इस तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ता होगा?

मिनी ने खोजना शुरू किया। उसने देखा कि किसी एक राज्य में नही बल्कि पूरे भारत में बुजुर्गों की स्थिति बड़ी ही दयनीय है। बहुत कम लोग हैं जिन्हें वृद्धावस्था में भी आदर और सम्मान पूर्वक जीवन नसीब होता है।

मिनी ने ठान लिया कि अब वो ऐसा कुछ करेगी जिससे सभी बुजुर्गों को लाभ हो और वे इस तरह की यातनाओं से बच जाएं। उसे डॉक्टर साहब की बाते याद आने लगी। मिनी ने माननीय प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखना आरम्भ किया। मिनी ने लिखा….

माननीय प्रधानमंत्री जी 

               सादर प्रणाम !

मैं जिस डॉक्टर से अपनी मां का ईलाज करवा रही हूँ, उनकी आपसे मांग है कि ” आप कोई ऐसा कानून बनाएं जिसके तहत वह व्यक्ति जो साठ वर्ष का हो गया हो स्वयं अपनी इच्छा से आत्महत्या कर सके।” माननीय उनकी बातें अत्यंत विचारणीय है। उनकी बातों में वो दर्द समाया है जो उन सभी व्यक्तियों का दर्द है जो साठ वर्ष या उससे ऊपर हो चुके हैं। माननीय उनकी सोच यह भी है कि आज हमारे देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो जनता के दुख दर्द को अपना समझता है। माननीय क्या हमारे देश को वृद्धजनों की कोई आवश्यता नही है? क्या हमारा देश इतना बदल चुका है? जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी देश की सेवा किसी न किसी रूप में की, क्या साठ साल के बाद वो लोग कचरे के ढेर में तब्दील हो जाते हैं? क्या वो लोग हमारे देश के लिए किसी काम के नही रह जाते? शायद ऐसा इसलिए होता है कि पितामह भीष्म के जैसे उनको इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त नही होता। माननीय उम्र के आखरी पड़ाव में ऐसा कोई जंगल भी तो नही रहा जहाँ वो लोग तप करते हुए अपना देह त्याग सकें। अपने ही लोगो के द्वारा ठुकराए हुए बेसहारा, बुज़ुर्ग, कांपते हुए हाथ, लड़खड़ाते हुए पैर, बंद होती हुई जुबान और सर्दी तथा भूख से ठिठुरती हुई काया लेकर दुनिया के किस न्यायालय में इंसाफ मांगने जाएं? क्या हमारी युवा पीढ़ी इतनी आत्मनिर्भर हो चुकी है कि उन्हें बुजुर्गों के ज्ञान की कोई आवश्यता नही? जो उम्र भर अपनी आवश्यता को काट कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाते हैं, अगर युवा पीढ़ी इस कदर अपने बुजुर्गों का तिरस्कार करे तो उनके लिए सज़ा का क्या प्रावधान है? और अगर है भी तो क्या कानून का उन्हें कोई खौफ है ? ऐसे तमाम प्रश्न हैं जो डॉक्टर साहब की बातों में छिपी हुई है। माननीय मैंने डॉक्टर साहब से वादा किया था कि मैं उनकी बाते आप तक अवश्य पहुँचाऊंगी । उनकी इच्छा यह भी है कि मैं अपनी मां की सत्यकथा से आपको अवगत कराउ जिसे मैं अत्यंत ही दुखित अवस्था में लगभग एक वर्ष में पूरा लिख पाने की अधूरी कोशिश कर पाई हूँ। माननीय मेरी आपसे अत्यंत करुण प्रार्थना है कि अगर आपके पास जरा सा भी समय हो तो आप इसे अवश्य पढ़ें। इस उम्मीद के साथ कि आप मेरी प्रार्थना अवश्य स्वीकार करेंगे मैं अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूँ।

  ” शेष शुभ “

                                              आपकी बहन

                                                      मिनी

मिनी ने ये पत्र पोस्ट ऑफिस में जाकर रजिस्टर्ड डॉक से भेजे और रोज़ की तरह अपने कामो में लग गयी। दिल की तड़प और आंसू पहले से कई गुना अधिक बढ़ चुके थे। मिनी इसलिए अधिक दुखी हुई कि भैया को जो भी कहना था, मुझे कहना था , मेरे पति को अपमानित करना कहीं भी उचित नही था। अब मिनी के आंसू अंगारों में तब्दील हो चुके थे। मिनी ने तभी देखा कि लोग क्यों कहते है कि पुत्र भले ही कुपुत्र हो पर माता कभी कुमाता नही हो सकती। इतना होने के बावजूद भी मां को बेटे से बहुत स्नेह था। हमेशा भैया को याद करती थी। मिनी तड़प के रह जाती थी। वो प्रत्यक्ष देख रही थी मां किस तरह बस मां होती है……………क्रमशः

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