नेता न पार करें आदर्श आचार संहिता की लक्ष्मण रेखा।

Spread the love

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)

 नेता न पार करें आदर्श आचार संहिता की लक्ष्मण रेखा।

सैद्धांतिक रूप से यह जितना आदर्श से युक्त है, व्यवहार में इसका अनुपालन कम ही होता दिखाई देता है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, बाहुबल और धनबल के रसूख से भरे चुनावी अभियान में राजनीतिक दल अपनी छवि को लेकर कितने चिंतित रहते हैं इसकी बानगी आए दिन देखने को मिलती रहती है। हमारे देश में बार-बार होने वाले चुनावों को देखते हुए एमसीसी का प्रवर्तन नियमित प्रशासनिक और विकास कार्यों में बाधा डालता है। कोई प्रणाली या प्रक्रिया कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अनैतिक मूल्यों और मनोवृत्तियों वाले लोग संकीर्ण तरीकों के लिए इसका दुरुपयोग करने के लिए अभिशप्त हैं। इसलिए, एमसीसी और ईसीआई को मजबूत करने के साथ-साथ, मतदाताओं को प्रशासनिक प्रदर्शन के आधार पर अपना वोट डालने की जरूरत है, न कि उथले धार्मिक या जातिवादी लाइनों और नकली वादों पर। राजनेता संवैधानिक मूल्यों और लोकाचार का पालन करेंगे, जिससे ‘सिद्धांतों के साथ राजनीति’ का प्रदर्शन होगा।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 हमारे देश में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के लिए भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की स्थापना का प्रावधान करता है। स्वतंत्र और स्थायी निकाय चुनावी प्रक्रियाओं को मजबूत और आधुनिक बनाकर लोकतंत्र के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करता है। आदर्श आचार संहिता अपने कर्तव्यों और कार्यों को बेहतर तरीके से करने के लिए ईसीआई के हाथों में एक ऐसा उपकरण है। वे चुनाव के दौरान उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के लिए चुनाव आयोग द्वारा तैयार किए गए नियमों का एक समूह हैं। *चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही इसे लागू कर दिया जाता है और मतदान के परिणाम की तारीख तक लागू रहता है। चुनाव अधिसूचना जारी होते ही आचार संहिता प्रभावी हो जाती है* जिसमें इस बात की गारंटी रहती है कि चुनाव पारदर्शी और बिना किसी भेदभाव के होगा। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का बाकायदा अनुपालन होगा और राजनीतिक दल एक साफ-सुथरे आचरण का परिचय देंगे। हालिया परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि चुनाव आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों ने इसके प्रति एक सामान्य धारणा ही बना रखी है। हर हाल में चुनावी जीत की चाह में आचरण का यह सिद्धांत कैसे छिन्न-भिन्न किया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है।

एमसीसी सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धार्मिक पूजा स्थलों के उपयोग पर रोक लगाता है। इसके अलावा, यह उम्मीदवारों को राजनीतिक रैलियों के दौरान नफरत और सांप्रदायिक भाषणों से दूर रहने के लिए मार्गदर्शन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्वाचकों से निष्पक्ष वादे सुनिश्चित करने के लिए चुनाव घोषणापत्र के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देकर पार्टियों और उम्मीदवारों को अपनी चुनावी रैलियों से पहले पुलिस और अधिकारियों को सूचित करना चाहिए और शांतिपूर्ण राजनीतिक वातावरण और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए राज्य एजेंसियों के साथ समन्वय करना चाहिए। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल अन्य दलों के खिलाफ अनुचित लाभ लेने के लिए नई योजनाओं और नीतियों की घोषणा या कार्यान्वयन नहीं कर सकते हैं। साथ ही वे राजनीतिक प्रचार के लिए सार्वजनिक कार्यालयों और अधिकारियों का उपयोग नहीं करेंगे। मतदान – अनैतिक तरीकों से मतदाताओं को हटाने के लिए मतदान केंद्रों के बाहर पेय पदार्थ और शराब परोसने से बचना चाहिए। और, यह एक सुगम मतदान प्रक्रिया के लिए अधिकारियों के साथ सहयोग की मांग करता है।

सैद्धांतिक रूप से यह जितना आदर्श से युक्त है, व्यवहार में इसका अनुपालन कम ही होता दिखाई देता है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, बाहुबल और धनबल के रसूख से भरे चुनावी अभियान में राजनीतिक दल अपनी छवि को लेकर कितने चिंतित रहते हैं इसकी बानगी आए दिन देखने को मिलती रहती है। हमारे देश में बार-बार होने वाले चुनावों को देखते हुए एमसीसी का प्रवर्तन नियमित प्रशासनिक और विकास कार्यों में बाधा डालता है। इस प्रकार, यह शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन सहित अन्य मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुँचने के नागरिकों के अधिकार के विरोध में आता है। डिजिटल स्पेस रेगुलेशन एक बड़ी बाधा है। डिजिटल निगरानी की कमी के साथ डिजिटल प्रचार में तेजी से वृद्धि हुई है। सोशल मीडिया पर खुलेआम घूम रहे राजनीतिक उम्मीदवारों की मौजूदगी में अभद्र भाषा के उदाहरण। अपर्याप्त जनशक्ति और सीमित बुनियादी ढांचे के निपटान में मानव संसाधनों की कमी प्रशासन को एक कठिन कार्य बनाती है। राजनीतिक दल मतदाताओं के मतदान व्यवहार को गुमराह करने के लिए अव्यावहारिक और अनैतिक वादों का सहारा लेते हैं। मुफ्त उपहारों और झूठे वादों की संस्कृति के उदय ने चुनाव आयोग के लिए अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करना कठिन बना दिया है, अगर वे सत्ता में आने पर इन वादों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।

चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के क्रम में इन चुनौतियों से निपटने के लिए संसद में एक कानून पारित करके या इसे संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के अनुसार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का एक अभिन्न अंग बनाकर एमसीसी को कानूनी या वैधानिक समर्थन सुनिश्चित करना। अतिरिक्त अधिकारियों को उनके कर्तव्यों और कार्यों का प्रभावी ढंग से अक्षरश: निर्वहन करने के लिए प्रवेश के माध्यम से ईसीआई को सशक्त बनाया जाना चाहिए। गोपनीयता संबंधी चिंताओं को सुनिश्चित करते हुए डिजिटल अभियान पर प्रभावी और कुशल निगरानी के लिए गतिशील चुनौतियों से निपटने के लिए एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) आधारित प्रौद्योगिकियों और कर्मचारियों की क्षमता निर्माण का लाभ उठाना चाहिए। न्यायिक प्रणाली के अत्यधिक बोझ को देखते हुए क्षेत्राधिकार के लिए एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की स्थापना करके एमसीसी के कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मामलों और विवादों को तेजी से ट्रैक करना चाहिए। प्रभावी जनादेश वितरण के लिए सीएजी की तर्ज पर ईसीआई को अधिक स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी।लेकिन यह भी सच है कि चुनावों के दौरान लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने की कोशिश सरकार किसी-न-किसी तरीके से ज़रूर करती है। यदि चुनाव आयोग कड़ी निगाह न रखे तो वह इस कोशिश में कामयाब भी हो जाती है। ऐसे में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होने पर चुनाव आयोग के पास कार्रवाई करने के अधिकार भी होते हैं। इसके लिये चुनाव आयोग एफआईआर दर्ज करा सकता है या उम्मीदवारी पर रोक तक लगा सकता है। दरअसल, आदर्श आचार संहिता चुनाव सुधारों से जुड़ा एक अहम् मुद्दा है, जिससे और बहुत से चुनाव सुधारों का रास्ता खुलता है। देखा जाए तो हर चुनाव के साथ हमारी डेमोक्रेसी में और निखार आता जा रहा है, लेकिन लोकतंत्र के इस उत्सव को सफल बनाने में चुनाव आयोग की कोशिशों के साथ देश के नागरिकों की भी यह जवाबदेही है कि इसे सफल बनाएँ। कोई प्रणाली या प्रक्रिया कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अनैतिक मूल्यों और मनोवृत्तियों वाले लोग संकीर्ण तरीकों के लिए इसका दुरुपयोग करने के लिए अभिशप्त हैं। इसलिए, एमसीसी और ईसीआई को मजबूत करने के साथ-साथ, मतदाताओं को प्रशासनिक प्रदर्शन के आधार पर अपना वोट डालने की जरूरत है, न कि उथले धार्मिक या जातिवादी लाइनों और नकली वादों पर। राजनेता संवैधानिक मूल्यों और लोकाचार का पालन करेंगे, जिससे ‘सिद्धांतों के साथ राजनीति’ का प्रदर्शन होगा।

  • User

    Related Posts

    डीएम बनने के बाद सविन बंसल का मसूरी मे पहला दौरा, किंक्रेग पार्किंग का अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया

    Spread the love

    Spread the loveदेहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल आज मसूरी पहुंचे। डीएम बनने के बाद सविन बंसल का मसूरी का यह पहला दौरा है। यहां उन्होंने किंक्रेग पार्किंग का अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया। साथ ही किंक्रेग से…

    निष्ठावान कलाम  

    Spread the love

    Spread the loveडॉ. सत्यवान सौरभ, भिवानी, हरियाणा।  निष्ठावान कलाम   सदियों में है जनमते, निष्ठावान कलाम। मातृभूमि को समर्पित, किये अनूठे काम।।   धीर वीर थे साहसी, करते सभी सलाम।…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    शुभांगी छंद।

    • By User
    • October 18, 2024
    • 2 views
    शुभांगी छंद।

    “कुसंग”

    • By User
    • October 18, 2024
    • 6 views
    “कुसंग”

    वीरगति दिवस पर विशेष। सिपाही जगपाल सिंह, वीर चक्र (मरणोपरांत)

    • By User
    • October 18, 2024
    • 4 views
    वीरगति दिवस पर विशेष।     सिपाही जगपाल सिंह, वीर चक्र (मरणोपरांत)

    रुद्रप्रयागः  केंद्रीय बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने शुक्रवार को केदारनाथ पहुंच कर बाबा केदार की पूजा-अर्चना की

    • By User
    • October 18, 2024
    • 4 views
    रुद्रप्रयागः  केंद्रीय बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने शुक्रवार को केदारनाथ पहुंच कर बाबा केदार की पूजा-अर्चना की

    केंद्रीय राज्यमंत्री सविता केदारनाथ पहुंचकर बाबा केदार की पूजा-अर्चना की

    • By User
    • October 18, 2024
    • 9 views
    केंद्रीय राज्यमंत्री सविता केदारनाथ पहुंचकर बाबा केदार की पूजा-अर्चना की

    डीएम बनने के बाद सविन बंसल का मसूरी मे पहला दौरा, किंक्रेग पार्किंग का अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया

    • By User
    • October 18, 2024
    • 5 views
    डीएम बनने के बाद सविन बंसल का मसूरी मे पहला दौरा, किंक्रेग पार्किंग का अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया