मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं?

Spread the love

डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा।

 

 

 

मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं?

 

“धोखे की खबरें बिकती हैं, लेकिन विश्वास की कहानियाँ दबा दी जाती हैं — क्या हम संतुलन भूल गए हैं?”

 

मीडिया में स्त्रियों की छवि और उससे जुड़ी सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने आज गंभीर सवाल पैदा कर दिये है। कुछ घटनाओं में स्त्रियों द्वारा किए गए अपराधों को मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है, जिससे पूरे स्त्री वर्ग की छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है। समाज में धोखा और विश्वासघात जैसे मुद्दे दोनों ही लिंगों से जुड़े हैं, लेकिन जब स्त्री पर कोई आरोप लगता है तो मीडिया उसे ‘विलेन’ बना देता है, जबकि पुरुष अपराधों के लिए अक्सर सहानुभूति जुटाई जाती है। ऐसे समय पर मीडिया को संतुलन, गहराई और जिम्मेदारी के साथ रिपोर्टिंग करनी चाहिए, ना कि टीआरपी के लिए पूर्वग्रह फैलाने चाहिए। साथ ही, पाठकों और दर्शकों को भी समाचारों को विवेक के साथ ग्रहण करने की आवश्यकता है।

सूचना और संचार की इस तीव्र गति वाली दुनिया में मीडिया का प्रभाव जितना व्यापक हुआ है, उतना ही गहरा भी। आज किसी घटना की रिपोर्टिंग केवल सूचना देने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह एक नैरेटिव, एक छवि और कभी-कभी एक पूर्वग्रह को भी जन्म देती है। जब स्त्री से जुड़ी घटनाओं की बात आती है, खासकर तब जब वह विवादास्पद हों—जैसे धोखाधड़ी, झूठे आरोप, या ब्लैकमेलिंग—तो मीडिया का रुख कहीं अधिक सनसनीखेज और पक्षपाती हो जाता है। यह चिंता का विषय है कि हम कब से घटनाओं की रिपोर्टिंग करने की बजाय, पूरे वर्ग को कटघरे में खड़ा करने लगे हैं।

 

स्त्री और संदिग्धता: नैरेटिव का निर्माण

 

पिछले कुछ वर्षों में हमने कई ऐसी घटनाएं देखीं जहाँ महिलाओं पर पुरुषों को झूठे मामलों में फँसाने के आरोप लगे। कुछ मामलों में ये आरोप सही भी साबित हुए। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इन गिने-चुने मामलों के आधार पर “हर औरत भरोसे के लायक नहीं” जैसी सोच विकसित करना जायज है? क्या यह सही है कि मीडिया इन घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत करे कि पूरा समाज स्त्रियों की नीयत पर शक करने लगे?

वास्तव में यह सोच एक लंबे समय से पनप रही उस मानसिकता का हिस्सा है जो स्त्री को या तो देवी के रूप में पूजती है या खलनायिका के रूप में ठुकराती है—बीच का कोई स्थान नहीं।

 

मीडिया की भाषा और हेडलाइंस का खेल

 

आप जब भी अखबार की सुर्खियाँ देखें या न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन सुने, तो एक बात स्पष्ट नजर आती है—स्त्री से जुड़ी घटनाओं को ज्यादा उत्तेजक, भावनात्मक और आकर्षक तरीके से पेश किया जाता है। उदाहरण के लिए-“प्रेमिका निकली सौतन की हत्यारिन!” “महिला टीचर ने छात्र से बनाए शारीरिक संबंध!” “बीवी ने पति को प्रेमी संग मिलकर मरवाया!” ऐसी खबरें समाज में एक खास सोच को मजबूत करती हैं कि स्त्रियां कपटी, चालाक और अवसरवादी होती हैं। जबकि हकीकत यह है कि पुरुषों द्वारा किए गए अपराधों को इतनी सनसनी के साथ नहीं दिखाया जाता। वहाँ “मानसिक तनाव”, “पारिवारिक दबाव” या “सामाजिक अस्वीकृति” जैसे कारण खोज लिए जाते हैं।

 

‘विक्टिम’ या ‘विलेन’: स्त्री की दोहरी छवि

 

मीडिया अक्सर स्त्री को या तो पूरी तरह पीड़िता के रूप में दिखाता है, या फिर पूरी तरह अपराधिनी के रूप में। लेकिन हकीकत इससे कहीं अधिक जटिल है। हर महिला जो धोखा देती है, वह स्वाभाविक रूप से ‘बुरी’ नहीं होती, और हर महिला जो पीड़ित है, वह स्वाभाविक रूप से ‘पवित्र’ नहीं होती। इंसानी व्यवहार कई सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक कारकों से बनता है। जब मीडिया इन पहलुओं की उपेक्षा करके केवल एक सनसनीखेज चेहरा दिखाता है, तो वह सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करता है।

 

कुछ चर्चित उदाहरणों की भूमिका

हाल के वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए जिन्होंने इस विषय को और जटिल बना दिया। जैसे: फर्जी यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर ब्लैकमेलिंग का मामला महिला द्वारा पति को फँसाकर तलाक और संपत्ति हथियाने की कोशिश। सोशल मीडिया पर ‘फेमिनिज़्म’ का इस्तेमाल करके जनभावनाओं का दोहन। इन घटनाओं का मीडिया में खूब प्रचार हुआ, लेकिन इनसे जुड़ी कानूनी प्रक्रिया, जांच के निष्कर्ष, या महिला के पक्ष की गहराई से पड़ताल शायद ही कभी दिखाई गई।

 

क्या पुरुष वर्ग पूर्णतः निर्दोष है?

यह बात मानना भी गलत होगा कि पुरुष वर्ग सदैव पीड़ित होता है। सैकड़ों-हजारों महिलाएं आज भी घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और मानसिक शोषण की शिकार हैं। हर साल महिला सुरक्षा से जुड़े आंकड़े भयावह तस्वीर पेश करते हैं। ऐसे में यदि कुछ मामलों में महिलाएं दोषी पाई जाती हैं, तो उससे पूरे स्त्री वर्ग को कठघरे में खड़ा कर देना न केवल अन्याय है, बल्कि सामाजिक संतुलन के लिए भी खतरनाक है।

 

मीडिया की भूमिका: जिम्मेदारी बनाम व्यवसाय

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है, लेकिन जब यह स्तंभ टीआरपी की दौड़ में नैतिकता भूल जाए, तो समाज की नींव डगमगाने लगती है। पत्रकारिता का काम सूचना देना है, विचार बनाना नहीं। लेकिन आज मीडिया अक्सर “मूड” बनाता है, “मत” गढ़ता है, और “फैसला” सुनाता है। यह प्रवृत्ति न्याय व्यवस्था से भी आगे निकलने का दावा करती है—जिसे हम ‘मीडिया ट्रायल’ कहते हैं।

 

सोशल मीडिया: आग में घी

जहाँ मुख्यधारा मीडिया की सीमाएं हैं, वहीं सोशल मीडिया ने तो हर किसी को जज बना दिया है। व्हाट्सएप फॉरवर्ड, ट्विटर ट्रेंड और इंस्टाग्राम रील्स—हर जगह स्त्री के चरित्र और नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। “हर औरत गोल्ड डिगर है”, “औरतें सिर्फ फायदे के लिए प्यार करती हैं”, जैसे जुमले सोशल मीडिया पर सामान्य हो चुके हैं। यह माहौल केवल स्त्रियों के लिए नहीं, बल्कि युवा पुरुषों के लिए भी हानिकारक है जो रिश्तों में भरोसे की जगह शक लेकर आते हैं।

 

न्याय की बुनियाद: व्यक्तिगत नहीं, संस्थागत सोच

हमारे समाज की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम एक घटना से पूरे वर्ग के लिए निष्कर्ष निकाल लेते हैं। किसी महिला ने धोखा दिया, इसका अर्थ यह नहीं कि हर महिला अविश्वसनीय है। उसी तरह एक पुरुष बलात्कारी निकला तो हर पुरुष को संदेह की नजर से नहीं देखा जा सकता। हमें घटना और व्यक्ति को उनके सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में देखने की आदत डालनी होगी।

 

संतुलन की ओर एक आग्रह

आज जब मीडिया समाज की सोच को तय कर रहा है, तब पत्रकारों, संपादकों और न्यूज़ रूम्स की जिम्मेदारी कहीं अधिक है। उन्हें यह तय करना होगा कि वे ‘सच दिखा रहे हैं’ या ‘सच बेच रहे हैं’। साथ ही, हमें—दर्शकों, पाठकों और नागरिकों को—भी यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि हम हर खबर पर आँख मूँदकर विश्वास न करें। समाज तब ही संतुलित रहेगा जब हम स्त्री और पुरुष दोनों को इंसान समझें—गुणों, दोषों, भावनाओं और सीमाओं के साथ। मीडिया अगर इस संतुलन को नहीं समझेगा, तो वह सूचना का वाहक नहीं, बल्कि पूर्वग्रह का प्रसारक बन जाएगा।

  • Related Posts

    उत्तर प्रदेश सरकार ने नौ आईएएस अधिकारियों का तबादला किया, हटाए गए पीएन सिंह

    Spread the love

    Spread the loveलखनऊ। शासन ने नौ आईएएस अधिकारियों का सोमवार रात तबादला कर दिया। इनमें पीएन सिंह को गन्ना आयुक्त के पद से हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया गया है। बी.चन्द्रकला को…

    बाबा भीमराव के अनुयायी तुम(अम्बेडकर जयंती पर)

    Spread the love

    Spread the loveगुरुदीन वर्मा  (जी.आजाद) शिक्षक एवं साहित्यकार बारां (राजस्थान)     बाबा भीमराव के अनुयायी तुम(अम्बेडकर जयंती पर) ——————————————————— शेर- भूल गए क्यों तुम समाज को, बनकर जनप्रतिनिधि आरक्षण…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    चादर से लिपटा मिला करीब आठ दिन का मासूम

    • By User
    • April 15, 2025
    • 3 views
    चादर से लिपटा मिला करीब आठ दिन का मासूम

    देहरादून में सड़कों के किनारे अवैध रूप से पार्क किए जाने वाले ट्रक और कंटेनर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे’, रात के समय दुर्घटना का अधिक खतरा

    • By User
    • April 15, 2025
    • 1 views
    देहरादून में सड़कों के किनारे अवैध रूप से पार्क किए जाने वाले ट्रक और कंटेनर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे’, रात के समय दुर्घटना का अधिक खतरा

    धामी कैबिनेट की बैठक आज होगी, इन प्रस्तावों पर लगेगी मुहर

    • By User
    • April 15, 2025
    • 2 views
    धामी कैबिनेट की बैठक आज होगी, इन प्रस्तावों पर लगेगी मुहर

    उत्तर प्रदेश सरकार ने नौ आईएएस अधिकारियों का तबादला किया, हटाए गए पीएन सिंह

    • By User
    • April 15, 2025
    • 2 views
    उत्तर प्रदेश सरकार ने नौ आईएएस अधिकारियों का तबादला किया, हटाए गए पीएन सिंह