राघवेंद्र शर्मा, मध्य प्रदेश।
(मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश कार्यालय मंत्री।)
गिरगिट की तरह रंग बदलती कांग्रेस।
बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने गिरगिट को उसके असली रंग में देखा होगा। क्योंकि गिरगिट हमेशा मौसम और वातावरण के हिसाब से अपना रंग बदलता रहता है। वह अपने असली रंग में तभी आता है, जब वह संतुष्ट हो जाता है कि अब उसे कोई नहीं देख रहा। अर्थात तब, जब वह एकांत में होता है। कांग्रेस की हालत भी लगभग ऐसी ही है। राजनीतिक लाभ हानि के हिसाब से वह अपना रंग, वेशभूषा, आचरण, व्यवहार बदलती रहती है। जब उसे लगता है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में चुनावी लाभ हासिल करने के लिए उसे भगवा रंग में रंगने का आडंबर करना है, तब वह ऐसा अवश्य करती है और जब कभी उसे लगता है कि गैर हिंदी क्षेत्र में हिंदुत्व और सनातन को डेंगू, मलेरिया आदि कहने वालों के साथ गलबहियां करने से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, तब वह सनातन विरोधियों की हमकदम हो जाती है। हद तो यह है कि जब वह केरल जैसे इलाके में कामयाबी हासिल करने के लिए छटपटाती है, तो वहां देश के दो टुकड़े करने वाली मुस्लिम लीग के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाती है। यही नहीं, उसे सियासी फायदे को हासिल करने के लिए गौ मांस की पार्टी करने वाले लोगों की पीठ थपथपाते भी देखा गया है। लिखने का आशय यह कि कांग्रेस का अपना कोई स्थाई चरित्र, चेहरा और आचार विचार नहीं है। वह जिन परिस्थितियों को अपने अनुकूल पाती है, स्वयं को उसमें ढाल लेती है। ऐसे में उसे विचारधारा, भारतीयता अथवा सनातन से कोई सरोकार नहीं रहता। यही कारण है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दिग्भ्रमित वर्गों को कांग्रेस कहीं कहीं अपनी नजर आती है। जबकि ऐसा होता नहीं है। उसका वास्तविक स्वरूप यही है कि येन-केन प्रकारेण जनता जनार्दन को बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा करो और कैसे भी करके सरकार में बने रहने की आपाधापी में सफलता हासिल करते रहो। यह बात और है कि देश की अधिसंख्य जनता अब कांग्रेस की वास्तविकता जान चुकी है। यही वजह है कि भारत के अधिकांश क्षेत्रों से उसका जनाधार सिमटता जा रहा है और लोग भारतीय जनता पार्टी की देशभक्ति, सनातनी विचारधारा और जनता जनार्दन की सेवा करने की सच्ची मंशा का समर्थन करने लगे हैं। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि कांग्रेस कुछ नए प्रयोग करे और उनमें अपनी सफलता के मौके तलाशे। ऐसा ही प्रयोग वह मध्य प्रदेश के महू क्षेत्र में करने जा रही है। जी हां अब उसने मतदाताओं को भरमाने के लिए जय संविधान, जय बापू, जय भीम रैली का आह्वान किया है। सुनकर ही हंसी आती है, जैसे बगुला भगत स्वयं के शाकाहारी होने का उद्घोष कर रहा हो। जैसे 900 चूहे खाकर बिल्ली हज करने चली हो। क्योंकि बात संविधान की हो, बात बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की हो अथवा बात महात्मा गांधी की हो, तीनों ही मामले में कांग्रेस का आचरण मौका परस्त ही रहा है। उसने यदि कहीं संविधान, डॉ. अंबेडकर और बापू के नाम को सम्मान के साथ लिया है, तो दावे के साथ लिखा जा सकता है, वह इसलिए लिया गया है क्योंकि उसे पता है,कि उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित किए बगैर उसका भला होने वाला नहीं है। वरना तो उसने कभी भी संविधान, बापू और भीमराव का सम्मान किया ही नहीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि महात्मा गांधी जब तक जीवित रहे, भ्रष्टाचार कदाचार का खुलकर विरोध करते रहे। इस कांग्रेस ने उनके चित्रों से आच्छादित बड़ी-बड़ी करेंसी छापीं और फिर भ्रष्टाचार के माध्यम से उसकी जमाखोरी में लगी रही। महात्मा गांधी के चित्र युक्त करेंसी के दुरुपयोग के उदाहरण को प्रमाणित करने के लिए यदि कोई पुराना वाकया उल्लेखित किया गया तो पाठकों को शायद थोड़ी बहुत मशक्कत करना पड़ जाए। इसलिए एक नया घटनाक्रम याद दिलाना उचित रहेगा। केंद्र में 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस नीत संप्रग सरकार रही। तब तक का कालखंड भ्रष्टाचारों से ही दागदार बना रहा। कैग, सीबीआई सहित अनेक ऑडिट एवं जांच एजेंसियां तथा अदालतों में भ्रष्टाचार के मामले सर्वाधिक कांग्रेस सरकार के खिलाफ ही दिखाई देते रहे। ऐसा कोई महीना अथवा साल खाली नहीं गया जब कांग्रेस शासित संप्रग सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी समाचार मीडिया में देखने सुनने को ना मिले हों। महात्मा गांधी के विचारों का कांग्रेस द्वारा सबसे ज्यादा अपमान तभी कर दिया गया था जब देश आजाद हुआ। तब तक महात्मा गांधी समझ चुके थे कि इस पार्टी के अधिकांश बूढ़े हो चले नेता अब हर हाल में सत्ता का सुख भोगना चाहते हैं। इसके लिए देश बंटे या कटे, ऐसी चिंता इन्हें नहीं रह गई है। गांधी जी को आशंका थी कि भविष्य में कांग्रेसी नेता लोग सरकार में बने रहने के लिए कांग्रेस का दुरुपयोग भी कर सकते हैं। यही वजह है कि उन्होंने देश की आजादी की सूरत बनते ही सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी थी कि कांग्रेस का जिस उद्देश्य के लिए गठन किया गया था, अब वह शेष नहीं रह गया है। अत:अब उसे भंग कर दिया जाना चाहिए। यानि महात्मा गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उस समय की कांग्रेस के नेता भविष्य में कांग्रेस के नाम पर या फिर उसके झंडे तले एक भी चुनाव लड़ें।लेकिन पदलोलुप कांग्रेसी नेताओं ने महात्मा गांधी की एक नहीं सुनी और सरकार में बने रहने के लिए तब से लेकर अब तक कांग्रेस का दुरुपयोग करते रहे, कर रहे हैं और जब तक जनता इन्हें मिट्टी में नहीं मिला देती तब तक यह लोग गांधी जी की इच्छा के खिलाफ एक पार्टी की लोकप्रियता का लाभ उठाते रहने वाले हैं। यदि महात्मा गांधी के विचारों का अनुसरण करने के मामले में भारतीय जनता पार्टी की बात की जाए तो वह कांग्रेस से आगे, बहुत आगे बढ़ चुकी है। कौन नहीं जानता कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी को आदर्श मानकर ही स्वच्छता अभियान का आव्हान किया था। जिसको भारतीय स्तर पर तो सराहना और सफलता मिल ही रही है, विदेशों में भी उनके इस कार्य को सराहा जा रहा है। जबकि कांग्रेस भाजपा सरकार और श्री मोदी सहित अन्य भाजपा नेताओं का यही कहकर उपहास उड़ाती रही कि अब भाजपा के पास केवल सफाई करने जैसा छोटा काम ही रह गया है। यही नहीं, केंद्र की भाजपा सरकार हो या फिर विभिन्न प्रदेशों में शासन करने वाले भाजपा नेता, सभी के द्वारा महात्मा गांधी को आदर्श मानकर जनहित की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इस मामले में मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने भी अनेक कीर्तिमान स्थापित कर रखे हैं। दावे के साथ कहा जा सकता है कि कांग्रेस भाजपा के जनहितैषी कार्यक्रमों से बौखला कर ही अब उन महात्मा गांधी की जय जयकार करने का नाटक कर रही है, सही मायने में जिनका वह सदा विरोध ही करती रही। जहां तक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की बात है तो कांग्रेस उनका जितना बुरा कर सकती थी, उसने उनके जीते जी वह सब किया। इस बाबत काफी कुछ लिखा जा चुका है। यदि इसी क्रम में एक और कड़ी जोड़ी जाए तो वह यह है कि कांग्रेस और उसके नेताओं ने स्वयं सरकार में रहते अपने नाम भारत रत्न जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार बलात् प्राप्त कर लिए। वह सम्मान उसके द्वारा कभी भी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को नहीं दिया गया, जबकि वे इसके सर्वथा अधिकारी थे। यह सम्मान भी डॉ. भीमराव अंबेडकर को राष्ट्रीय मोर्चा की उस सरकार द्वारा दिया गया, जो भारतीय जनता पार्टी के समर्थन पर ही अस्तित्व में बनी रही। जहां तक संविधान की बात है तो कांग्रेस जब तक सत्ता में रही तब तक वह उसे तोड़ मरोड़ कर एक परिवार को फायदा देने वाला साहित्य बनाने में ही लगी रही। इस बाबत ही अनेक उदाहरण स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले से फैले पड़े हुए हैं।
लेकिन जब से केंद्र में भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार अस्तित्व में आई है और मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार सहित, विभिन्न प्रदेशों की भाजपाई राज्य सरकारें संविधान को शिरोधार्य कर महात्मा गांधी एवं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को आदर्श मानते हुए अनगिनत जन हितैषी योजनाओं को अंजाम देने में जुटी हुई हैं। इनमें डॉक्टर अंबेडकर मेधावी विद्यार्थी पुरस्कार योजना, डॉक्टर अंबेडकर आर्थिक कल्याण योजना, डॉक्टर अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना, डॉक्टर अंबेडकर स्मृति पुरस्कार योजना के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। यहां तक कि मध्य प्रदेश की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने तो डॉ. भीमराव अंबेडकर के जन्म से संबंधित पंच तीर्थ स्थलों को मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना में शामिल कर दिखाया है।
यह सब देख कर कहा जा सकता है कि बात महात्मा गांधी की हो, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की हो अथवा संविधान की, हर मामले में भाजपा और उसकी सरकारें सम्मानजनक वातावरण निर्मित करने में सफल हैं। जबकि कांग्रेस तो इन सभी का अपने फायदे के लिए केवल विरोध ही करती रही। यह बात और है कि इनका नाम लिए बगैर उसका गुजारा नहीं। इसलिए वह बगुला भगत की तरह नाम रटंत के प्रदर्शन करती रहती है। वरना तो उसे महात्मा गांधी, डॉ भीमराव अंबेडकर और संविधान का नाम तक लेने का अधिकार शेष नहीं रह गया है। (विनायक फीचर्स)