सोशल मीडिया का प्रभाव “साकारात्मक कम नकारात्मक अधिक”

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संजय सिंह चौहान  (उपनिरीक्षक)
  इंदौर, मध्यप्रदेश।
सोशल मीडिया का प्रभाव “साकारात्मक कम नकारात्मक अधिक”
    मीडिया ट्रायल शब्द अधिक पुराना नहीं है। मीडिया ट्रायल शब्द कई बार सुर्खियों में भी रहा है। कई बार माननीय न्यायालयों में भी कई पीड़ित पक्षों ने अपने-अपने मामलों में मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की गुहार भी लगाई है। हमारी वर्तमान व्यवस्था में ट्रायल(परीक्षण) का अधिकार केवल माननीय न्यायालयों (विभिन्न स्तर पर अलग-अलग) को ही है। निर्धारित विधि, मामले के गुण-दोष, उपलब्ध साक्ष्य व गवाह एवं प्रचलित मान्यताओं के आधार पर, प्रत्येक माननीय न्यायालय अपना निर्णय देते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर, न्यायालय से इतर, किन्ही प्रचार माध्यमों द्वारा, किसी मामले में, अपनी इच्छा अनुसार, बिना उचित प्रक्रिया पालन, किसी पक्ष को दोषी या निर्दोष साबित करने की होड़ जो कि जनमानस एवं न्यायालयीन निर्णय को प्रभावित करने के लिए प्रयासरत रहते हैं, मीडिया ट्रायल होती है। यह कई प्रकार से हो सकती है जैसे, अधूरे, असत्य या झूठे तथ्यों एवं  साक्ष्यों द्वारा किसी दोषी व्यक्ति या संस्था को निर्दोष दिखाने की चेष्टा करना, किसी निर्दोष व्यक्ति या संस्था को दोषी घोषित कर देना, अथवा आंशिक दोषी को जघन्य दोषी व क्रूरतम को महानतम साबित करने का प्रयास करना। किसी दोषी पक्ष को इस तरह प्रस्तुत करना कि वह पीड़ित पक्ष प्रतीत हो एवं पीड़ित पक्ष में जन भावनाओं को इस तरह प्रभावित करना कि वह दोषी प्रतीत होने लगे। यहां पर मुख्य दोषी तो दोषी है ही, परंतु वे प्रचार माध्यम जो अपने कुतर्कों के माध्यम से जनचेतना प्रभावित कर रहे हैं, वे भी उच्चतम दोषी होने चाहिए। पूर्व सिद्धांतों के अनुसार कोई अपराधी बिना सजा के छुट भी जाए परंतु एक भी निर्दोष को दंड नहीं मिलना चाहिए, परंतु मीडिया ट्रायल के द्वारा जब निर्दोष के प्रति दुराचार/दुष्प्रचार करके, जनमानस में उस व्यक्ति या संस्था के प्रति अविश्वास उत्पन्न कर दिया जाता है जिससे संबंधित व्यक्ति/संस्था को सामाजिक जीवन में, अपमान, सामाजिक बहिष्कार एवं मानसिक प्रताड़ना सहन करनी होती है।
             वर्तमान समय में सोशल मीडिया का प्रभाव, जनमानस मैं कम तो नहीं किया जा सकता, और ना ही यह उचित होगा परंतु, आवश्यकता इस बात की है कि, इसकी सत्यता व निष्पक्षता को प्रभावी बनाया जाए। न्यूज़ चैनल एवं प्रिंट मीडिया जोकि जनता में समाचारों की सत्यता का एक अति विश्वसनीय साधन है, को भी अपनी साख बचाने के लिए उच्च नैतिक मापदंड तय करने चाहिए। साथ ही इन साधनों के माध्यम से समाचारों को ग्रहण करने वालों को भी अपने विवेक एवं ज्ञान की कसौटी पर, इन्हें परखना चाहिए, ताकि समाज में समाचारों से संबंधित सत्यता निष्पक्षता व नैतिकता का माहौल निर्मित हो सके।
  संजय सिंह चौहान
  उपनिरीक्षक
  इंदौर, मध्यप्रदेश।
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