ब्यूरो रुद्रप्रयागः लक्ष्मण सिंह नेगी।
ऊखीमठः त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरुणचट्टी – केदारनाथ नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक की खोज में त्रियुगीनारायण से केदारनाथ के लिए निकला चार सदस्यीय दल सुरक्षित त्रियुगीनारायण पहुंच गया है। चार सदस्यीय दल ने त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ लगभग 14 किमी नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक की खोज की है जो कि सबसे कम दूरी का है। इस पैदल ट्रैक को दल ने मात्र 6 घन्टे मे तय किया है साथ ही भविष्य में यह पैदल ट्रैक सबसे आसान व सरल होगा। 16/17 जून 2013 की आपदा के बाद वन विभाग ने त्रियुगीनारायण – वासुकीताल – केदारनाथ पैदल ट्रैक को विकसित करने की कवायद तो की थी मगर यह पैदल ट्रैक लगभग 20 किमी दूरी व जोखिम भरा है। दल के अनुसार गुमसुडा़ – गरूणचट्टी के मध्य पैदल ट्रैक पर चट्टान कटिंग की सख्त जरूरत है। यदि प्रदेश सरकार की पहल पर वन विभाग गुमसुडा़ – गरुडचट्टी के मध्य चट्टान काटकर नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक को विकसित करने के प्रयास करता है तो त्रियुगीनारायण से केदारनाथ पहुंचने के लिए यह पैदल ट्रैक सबसे कम दूरी का होगा तथा इस पैदल ट्रैक के विकसित होने से सीमान्त तोषी गांव में तीर्थाटन – पर्यटन गतिविधियों, होम स्टे योजना व स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा। दल के अनुसार इस पैदल ट्रैक पर जगह – जगह छोटे नाले है तथा अधिकांश भूभाग सुरम्य मखमली बुग्यालों से आच्छादित है तथा पैदल ट्रैक को विकसित करने के साथ सोन नदी पर पुल का निर्माण अति आवश्यक है क्योंकि 2013 की आपदा के बाद वन विभाग व आपदा प्रबंधन द्वारा सोन नदी पर ट्राली का निर्माण किया गया था मगर रख – रखाव के अभाव में वर्तमान समय में ट्राली जर्जर हो चुकी है। दल में शामिल गीता राम सेमवाल ने बताया कि त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ वैकल्पिक पैदल ट्रैक सबसे सरल व आनन्ददायक है क्योंकि इस पैदल ट्रैक का अधिकांश भूभाग मखमली घास से आच्छादित है तथा प्रकृति ने गुमसुडा़ से – गरूणचट्टी के भूभाग के पग – पग को अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। दल में शामिल पूर्णानन्द भटट् ने बताया कि तोषी गांव के निकट सोन नदी को पार करना जोखिम भरा है तथा उन्हें सोन नदी पार करने में हरिकृष्ण गैरोला का भरपूर सहयोग मिला। उन्होंने बताया कि इस पैदल ट्रैक का 7 किमी भूभाग वनाच्छादित है तथा 5 किमी के भूभाग में सुरम्य मखमली बुग्यालों का रूपहला विस्तार फैला हुआ है इसलिए इस भूभाग में पर्दापण करने से मन में असीम शान्ति की अनुभूति होती है। दल में शामिल मुकेश भटट् ने बताया कि यह पैदल बहुत खूबसूरत है तथा गुमसुडा़ से आगे पर्दापण करने पर हिमालय को अति निकट से दृष्टिगोचर किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गुमसुडा़ से डेढ़ किमी आगे ऊंचे शिखर से खाम – मनणा व हिमालय के आंचल में फैले बुग्यालों का नयनाभिराम मन को आनन्दित कर देता है। दल में शामिल कामाक्षी प्रसाद कुमांचली ने बताया कि त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ पैदल ट्रैक को विकसित करने के लिए यदि प्रदेश सरकार व वन विभाग प्रयास करता है तो प्रकृति प्रेमी व सैलानी इस भूभाग में फैले प्रकृति की खूबसूरत छटा से रूबरू होगें। बाक्स न्यूज। अनेक प्रजाति के फूलों का विस्तार। ऊखीमठ – त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ पैदल ट्रैक पर गुमसुडा़ व गरूणचट्टी के मध्य भूमिका को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। लगभग 5 किमी के भूभाग में जया , विजया, कुखणी, माखुणी, रातों की रानी, गरूणपंजा, वारूण हल्दी सहित अनेक प्रकार के पुष्पों व बेस कीमती जडी – बूटियों के बगवान फैले हुए है। इस भूभाग में अनेक प्रजाति के जंगली जीव – जन्तुओं की निर्भीक उछल कूद का दृश्य बड़ा रोमांचक होता है। प्रधान तोषी जगत सिंह रावत ने बताया कि त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ पैदल ट्रैक पर सोन नदी से गुमसुडा़ तक मात्र सात किमी का सफर चढा़ई वाला है शेष पैदल ट्रैक समतल व सीधा है जिस पर सफर करना बहुत ही आसान व आनन्ददायक है।
आपदा के बाद पैदल ट्रैक बना जीवनदायिनी। ऊखीमठ। वर्ष 2013 की आपदा के बाद लगभग 12 हजार तीर्थ यात्री व व्यापारी केदारनाथ, गरूणचट्टी, घिनुरपाणी व रामबाडा़ यात्रा पड़ावों से जंगलो के रास्ते त्रियुगीनारायण व तोषी पहुंचे थे तथा विगत 31 जुलाई को केदारनाथ यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर दैवीय आपदा के बाद लगभग 150 तीर्थ यात्री व व्यापारी भी त्रियुगीनारायण व तोषी गांव पहुंचे थे। दोनों आपदाओं में त्रियुगीनारायण व तोषी के ग्रामीणों द्वारा जंगलों से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने वालों की यथासंभव मदद की गयी थी। 2013 की आपदा के बाद वन विभाग द्वारा त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – वासुकीताल – केदारनाथ पैदल ट्रैक को करोड़ों रुपये की लागत से विकसित किया गया था मगर यह पैदल ट्रैक अधिक लम्बा व जोखिम भरा है। आने वाले समय में यदि प्रशासन की पहल पर त्रियुगीनारायण – गुमसुडा़ – गरूणचट्टी – केदारनाथ पैदल ट्रैक को विकसित करता है तो पैदल ट्रैक को विकसित करने से पूर्व सोन नदी पर पुल की सख्त जरूरत है। सोन नदी पर पुल निर्माण के बाद ही पैदल ट्रैक विकसित करने का सपना साकार हो सकता है।