ऊखीमठः  विकासखण्ड ऊखीमठ के ल्वारा क्षेत्र में बन्दरों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है।

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ब्यूरो ऊखीमठः लक्ष्मण सिंह नेगी।

                                 ऊखीमठः  विकासखण्ड ऊखीमठ के ल्वारा क्षेत्र में बन्दरों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रतिदिन बन्दरों से हमलों से ग्रामीण चोटिल होते जा रहे हैं तथा विभिन्न विद्यालयो में अध्ययनरत नौनिहालों को डर सायें में सफर करना पड़ रहा है। बन्दरों के आतंक से ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है तथा ग्रामीणों ने तहसील प्रशासन को ज्ञापन सौपकर बन्दरों के आतंक से निजात दिलाने की गुहार लगायी है। तहसील प्रशासन को सौपें ज्ञापन का हवाला देते हुए ग्रामीण राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि बन्दरों के आतंक से ग्रामीण परेशान है बन्दरों द्वारा काश्तकारों की साग – भाजी की फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ ग्रामीणों पर भी जानलेवा हमला करने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है। उन्होंने बताया कि बन्दरों द्वारा विगत दिनों अन्द्रवाणी गाँव निवासी मदन मोहन सेमवाल तथा सोमवार को ल्वारा गाँव शंकर सिंह पर जानलेवा हमला करने से दोनों व्यक्तियों के शरीर पर गहरे घाव बने हुए हैं। जिला पंचायत सदस्य गणेश तिवारी ने बताया कि न्याय पचायत ल्वारा के विभिन्न गांवों में बन्दरों के आंतक से ग्रामीणों का जीना दूभर हो रखा है तथा बन्दरों के हमलों की घटनाओं में लगातार इजाफा होने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है। उन्होंने बताया कि बन्दरों द्वारा काश्तकारों की फसलों व साग – भाजी को भी नुकसान पहुंचाने से ग्रामीणों के सन्मुख आजीविका का संकट बना हुआ है। प्रधान ल्वारा हुक्म सिंह फर्स्वाण ने बताया कि बन्दरों के आतंक से स्कूली नौनिहालों को जान हथेली पर रखकर आवागमन करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि शासन – प्रशासन व वन विभाग से कई बार बन्दरों को पकड़ने के लिए पिंजरे लगाने की मांग की गयी है मगर आज तक क्षेत्रों में बन्दरों को पकड़ने के लिए पिंजरे नहीं लग पाये है। उन्होंने बताया कि यदि शासन – प्रशासन व वन विभाग द्वारा बन्दरों के आंतक से निजात दिलाने के लिए गाँव में पिंजरे लगाने की पहल नहीं की जाती तब तक बन्दरों का आतंक जारी रहेगा तथा अन्य ग्रामीण भी बन्दरों के हमले से चोटिल हो सकतें है। सामाजिक कार्यकर्ता महेश बगवाडी ने बताया कि बन्दरों के आतंक से ग्रामीणों का घरों से निकलना दूभर हो रखा है तथा बन्दरों द्वारा काश्तकारों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाने से काश्तकार खेती – बाडी़ के प्रति विमुख होता जा रहा है।

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