सम्पादक (नया अध्याय) जौनपुर यूपीः पंकज सीबी मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक।
वैश्विक हलचल : खल ही जाने खल की भाषा..!
1962 में हुए भारत-चीन युद्ध पर किए गए शोध बताते हैं कि भारत पर हमला करने से पहले चीन ने रूस से राय ली थी और रूस ने भारत पर हमला बोलने के लिए तब चीन की पीठ ठोकी थी। सूत्रों के मुताबिक हाल ही में रूस से लीक हुए कुछ गोपनीय दस्तावेज़ों से पता चला है कि चीन रूस पर आक्रमण की तैयारी कर रहा है और रूस इस डर से काफी चिंतित चल रहा है। रूसी रक्षा मंत्रालय की कुल 29 बेहद गोपनीय फाइलें लीक हो गई हैं। वर्ष 2008 से 2014 के बीच तैयार की गई इस फाइलों में चीनी आक्रमण की स्थिति में रूसी सेना की नीतियां और ऑपरेटिंग रणनीति क्या होंगी इसका पूरा विवरण है। यह जानकारी इस बात की ओर इशारा करती है कि रूस अपनी पूर्वी सीमाओं पर संभावित चीनी आक्रमण को लेकर बहुत आशंकित है। रक्षा मामलों के जानकार इस खबर पर सवाल भी उठा रहे हैं। उनका कहना है कि अभी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस और चीन में नई-नई दोस्ती हुई है जिसे खुद रूस ने ‘फ़्रेंडशिप बियांड लिमिट’ तक कह दिया था तो फिर तुरंत उससे ही इतना बड़ा खतरा आखिर कैसे उत्पन्न हो गया । रूस को अगर चीन से डर ही था, भले ही वह लांग टर्म का ही खतरा क्यों न हो तो फिर उससे यह गहरी दोस्ती की ही क्यों गई? रूस की चिंताओं का मुख्य कारण चीन की विस्तारवादी नीतियां और उसकी सैन्य गतिविधियां हैं। लीक हुए दस्तावेज़ों में यह भी खुलासा हुआ है कि रूस ने चीनी सैनिकों के खिलाफ अंतिम विकल्प के तौर पर परमाणु हथियारों का उपयोग करने की योजना बनाई है। दस्तावेज़ों के अनुसार, अगर स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है और चीन की सेना रूसी क्षेत्र में घुसपैठ करती है, तो रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। लीक हुए दस्तावेज़ों में इस बात का जिक्र है कि रूस को डर है कि चीन अपनी सीमाओं का विस्तार कर सकता है और रूस के पूर्वी हिस्से पर आक्रमण कर सकता है। रूस ने अपनी इस चिंता को ध्यान में रखते हुए पिछले साल चीन की सीमा से सटे क्षेत्रों में दो बार परमाणु क्षमता वाले मिसाइलों का परीक्षण किया। यह परीक्षण रूस की सैन्य रणनीति का हिस्सा था, जिसमें उन्होंने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली थी कि अगर कहीं चीन की तरफ से आक्रमण की स्थिति बने तो इसका इस्तेमाल किया जा सके। रूस की सैन्य रणनीति में यह एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे रूस अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए अपनाए हुए है। इस रणनीति के तहत रूस ने अपने परमाणु हथियारों की तैनाती और उपयोग की योजना बनाई है ताकि किसी भी संभावित चीनी आक्रमण को रोकने के लिए एक ठोस जवाबी प्रभाव बनाया जा सके। उधर भारत ने जब अरिहंत पनडुब्बी बनाई थी तो दुनिया का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था, क्योंकि यह भारत की पहली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी थी। परमाणु पनडुब्बियों की खासियत यह होती है कि यह न्यूक्लियर रिएक्टर द्वारा अपना फ्यूल खुद पैदा करती है। इन्हें बार-बार फ्यूल लेने के लिए बाहर नहीं आना पड़ता। यह महीनों तक पानी के अंदर विचरण कर सकती है, जिसके कारण इनकी पोजीशन का दुश्मन देश को पता ही नहीं चल पाता है। फिर भारत ने बनाई आईएनएस अरिघाट जो कि अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बी का उन्नत संस्करण है। यह विशाखापत्तनम में शिप बिल्डिंग सेंटर में परमाणु पनडुब्बी बनाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (एटीवी) परियोजना के तहत भारत द्वारा बनाई गई दूसरी परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है और इसका कोड नाम एस -3 है। जिस तेजी से भारत ने अपनी तीसरी परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी जो कि अरिघाट का भी बाप है को अगले 6 महीना में लॉन्च करने की योजना बनाई है उससे दुनिया की सभी महाशक्तियों को पसीना आना शुरू हो गया है। इसके दो कारण एक तो यह पनडुब्बी परमाणु हथियारों से लैस होकर समुद्र के अंदर ही अंदर तमाम देशों की सीमा के पास पहुंचकर परमाणु मिसाइल (ब्रह्मोस) को लांच कर सकती है जिसे रोक पाना किसी भी देश के लिए असंभव होगा और परमाणु बम कितनी तबाही मचाएगा उस विषय पर ज्यादा डिटेल में जाने की जरूरत नहीं है। दूसरा भारत जितनी तेजी से परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है उससे बड़े से बड़ा ताकतवर देश भी भारत की ताकत के आगे बेबस और नतमस्तक हो जाएगा। अब इस आशय में चीन सशंकित है की कही भारत रूस के साथ खड़ा हो गया तो उसकी विस्तारवादी नीतियाँ धाराशयी हो जाएंगी। जहां एक ओर भारत कभी जर्मनी, कभी फ्रांस और कभी रूस के आगे हाथ जोड़कर एयर प्रोपल्शन वाली पनडुब्बियों के लिए याचक बनकर हाथ जोड़ रहा था अब वहीं भारत स्वयं परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बीयों का तेजी से निर्माण कर रहा है। जल्द ही भारत एयर प्रोपल्शन वाली पनडुब्बियों के निर्माण की तकनीक का भी स्वयं ही विकास कर लेगा। रूस और चीन के बीच के इन संभावित तनावों के बीच, भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इन घटनाओं को ध्यानपूर्वक देखा है। इन दस्तावेज़ों का लीक होना एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो रूस और चीन के बीच तनाव और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को उजागर करता है। यह वैश्विक राजनीति और सुरक्षा परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत हो सकता है। रक्षा जानकारों का मानना है कि चीन रूस पर हमला करेगा पर अभी नहीं । अपनी साम्राज्यवादी नीति की वजह से पूरे एशिया में चीन का हर किसी सी सीमा को लेकर झगड़ा करने का बहुत पुराना इतिहास रहा है। चीन रूसी सेना की कमजोरी जानता है और उसने हाल के बर्षों में खुद को काफी शक्तिशाली, समृद्ध और सक्षम बनाया है तो इसके पीछे उसका एक लक्ष्य रूस के इलाकों को हथियाने का भी है। चीन की इस विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को रूस भली भांति समझता है। और यही वजह है जो रूस इस असन्न संकट को लेकर बहुत चिंतित है और परेशान भी । चीन हमला उस समय करेगा जब वह देखेगा कि सुपर पावर अमेरिका को हराकर रूस नंबर वन का न्यूक्लियर सुपर पावर बन गया है। हमला चीन इसलिए करेगा क्योंकि नंबर वन तो चीन खुद बनना चाहेगा। पर इस संघर्ष में अभी समय है। रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि यह बात भी है कि मौजूदा वर्ल्ड आर्डर में रूस का नंबर-टू का सुपर पावर होना चीन को अब अखरने लगा है और वह अब यह खिताब रूस से छीन लेने का गोपनीय इरादा तो रखता ही है। इस युद्ध में अगर दुनिया का वर्ल्ड ऑर्डर नहीं भी बदला तो भी चीन कम से कम नंबर-टू सुपर पावर बनने के लिए तो रूस से युद्ध करेगा ही, भले अभी वह यह युद्ध न छेडकर आगे कभी छेड़े। रूस ने भी अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने की नीयत से यूक्रेन को कब्जाने के इरादे से उसपर हमला किया है। चीन के आगे खुद को शक्तिशाली दिखाने के लिए रूस ने चीन से लगने वाली अपनी सीमा के इलाके में पिछले साल दो दफे एटमी क्षमता वाली एस्कंडर मिसाइल का परीक्षण किया। सुरक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि रूस को अगर डर है कि चीन उसपर हमला कर सकता है तो यह भारत के लिए अच्छी बात है क्योंकि इससे रूस और चीन में कभी दोस्ती नहीं हो पाएगी। हमेशा रूस के मन में एक खटका बना रहेग जिससे भारत को लाभ होगा कि चीन ने अगर कभी भारत पर हमला किया तो रूस उसमें भारत की मदद करे न करे पर चीन का कोई साथ नहीं देगा यानी चीन की पीठ नहीं ठोकेगा।