पंकज कुमार मिश्रा, सम्पादक (नया अध्याय) मिडिया विश्लेषक जौनपुर यूपी
भ्रामक विज्ञापनों का बाजार बहुत बड़ा, झूठ के दावों पर प्रहार कब ..!
भ्रामक विज्ञापनों का बाजार बहुत बड़ा है। टीवी पर दिखाए जाने वाले सभी प्रोडक्ट के विज्ञापन इस श्रेणी में रखें जा सकते है क्यूंकि सब में तथ्य छुपाकर केवल भ्रम फैलाया जा रहा जबकि सुप्रीम कोर्ट का केवल पतंजलि को टारगेट करना थोड़ा अखरता है। मुनाफा के बाजार में सब अपने उत्पाद बेचने को झूठ का सहारा लें रहें तो फिर अकेले पतंजलि और रामदेव ही दोषी क्यों..! खाद्य सामग्री में मिलावट की बात हो या दवाओं के नाम पर जनता को गुमराह करने का मुद्दा हो, सौंदर्य प्रसाधनों पर झूठे दावे हो या फिर अन्य वस्तुओं का प्रचार हो, इन ख़बरों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। जैसे जहरीली शराब या नकली दवाओं से सीधे जान पर खतरा दिखता है, यह भी वैसा ही है, फ़र्क इतना ही है कि इसमें नुक़सान का पता देर से चलता है। सरकार और अदालतें तो इस मामले में सख़्ती दिखा ही रही हैं, लेकिन अब जनता को भी जागरुक होना पड़ेगा। उधर भ्रामक विज्ञापन के मामले में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने बुधवार 24 अप्रैल को अख़बारों में एक बार फिर अपना माफ़ीनामा छपवाया है, और कहा गया कि हम अपने विज्ञापनों के प्रकाशन में हुई गलती के लिए भी ईमानदारी से क्षमा चाहते हैं और पूरे मन से प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं कि ऐसी त्रुटियों की पुनरावृति नहीं होगी। एमडीएच और एवरेस्ट के मसालों पर विदेशों में लगे प्रतिबंध के बाद अब भारतीय मसाला बोर्ड ने कहा है कि वह इस प्रतिबंध की जांच कर रहा है, वहीं फूड सेफ़्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने जांच के मकसद से देश भर से एमडीएच और एवरेस्ट सहित पाउडर के रूप में सभी ब्रांडों के मसालों के नमूने लेना भी शुरू कर दिया है। लेकिन इस कवायद का क्या नतीजा निकलेगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि सवाल एक-दो पैकेट का नहीं, कई टन मसालों का है।
यह विचारणीय है कि हॉंगकॉंग के खाद्य सुरक्षा नियामक के परीक्षण में मसालों में जो गड़बड़ी पकड़ाई, वह भारत में क्यों नहीं पकड़ी गई । क्या भारत और विदेशों में भेजे जाने मसालों में फ़र्क होता है या हमारी जांच प्रक्रिया और हॉंगकॉंग, सिंगापुर की जांच प्रक्रिया में कोई फ़र्क है ? एक अहम सवाल यह भी है कि क्या इस गड़बड़ी के पीछे कोई कारोबारी प्रतिद्वंद्विता या साजिश भी शामिल है ! क्योंकि कई बार कारोबार में आगे निकलने के लिए दूसरी कंपनी के उन्हीं उत्पादों में गड़बड़ी दिखाई जाती है। करीब 12 साल पहले भारत में मैगी नूडल्स में मिलावट की खबरें एकाएक आई थीं, जिससे उसके कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। हाल ही में खबर आई थी कि नेस्ले कंपनी जो बेबी फूड यानी शिशुओं के खाद्य सामग्री बेचती है, उसमें चीनी मिली होती है। सरकार अब इसकी जांच कर रही है, क्योंकि बेबी फ़ूड में चीनी से शिशुओं की सेहत पर असर पड़ता है। पतंजलि आयुर्वेद लि. की ओर से ऐसा ही माफ़ीनामा पहले भी देश के 67 अखबारों में प्रकाशित हुआ था, ऐसी जानकारी पतंजलि की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत में दी थी। लेकिन जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की खंडपीठ ने विज्ञापन के आकार पर असंतोष जताया था। क्योंकि पतंजलि की दवाओं के प्रचार वाले विज्ञापनों का आकार काफ़ी बड़ा होता था। लेकिन जब यह साबित हो गया कि ये विज्ञापन ग़लत जानकारी दे रहे थे और उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहे थे, तो उस गलती के लिए माफी मांगने में कहीं न कहीं कंजूसी दिखाई गई, जिसकी तरफ अदालत ने ध्यान दिलाया। जिसके बाद स्वामी रामदेव ने अपनी कंपनी की ओर से थोड़े बड़े आकार के विज्ञापन के जरिए माफ़ी मांगी, हालांकि आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन में जिस तरह उनकी बड़ी सी तस्वीर दिखाई देती रही है, वह इस माफ़ीनामे में गायब है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भ्रामक विज्ञापन प्रसारित और प्रकाशित करने के लिए रामदेव के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया है। अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियम 1945 को लागू करने में विफलता पर केंद्र सरकार से सवाल किया है। दरअसल आयुष मंत्रालय ने 2023 में सभी राज्य सरकारों को एक पत्र भेजकर औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने को कहा था। इसी पर अदालत ने अब कड़े सवाल पूछे हैं, जिसका जवाब अब केंद्र सरकार की ओर से आना बाकी है। वहीं अब मामले पर अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी, लेकिन अब तक सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों को लेकर जो सख़्ती दिखाई है, उससे यह उम्मीद बंधी है कि जनता की सेहत के साथ खिलवाड़ करने के इस खुले खेल पर थोड़ी रोक लगेगी क्योंकि इस मैदान में रामदेव जैसे और बहुत से खिलाड़ी अब भी बाकी हैं।