डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
आतंकवाद का
प्रतिशोध
प्रतिशोध लिया हमने चढ़कर,
कर छलनी छाती दुश्मन की।
सुस्त पड़ गई ज्वाला अब कुछ-
जो रही धधकती तन-मन की।।
आतंकवाद-नापाकों को,
चुनचुन के हमें ढहाना है।
बिल में आतंकी की घुस कर,
उन सबको मार गिराना है।
अमर शहीदों की कुर्बानी तो व्यर्थ नहीं अब जाएगी-
होगी विकसित जन-मानस में,अब इच्छा प्राण-समर्पण की।।
रही कराहती शस्य-श्यामला,
अपनी धरती बहु ज़ुल्मों से
दहशतगर्दी-खून-खराबों,
लुका-छुपी की करतूतों से।
अब न रहेगी दहशतगर्दी,नहीं रहेगा मानव-शोषण-
जाग उठी धरती अब अपनी,नयी दृष्टि के नव चिंतन की।।
उड़ न सकेगा कोई परिंदा,
अब तो आतंक हिमायत का।
नामों-निशां अब मिट जायेगा,
सब दहशतगर्द रवायत का।
विश्व-पटल पर फहरेगा अब,यह परचम भारत माता का-
अमरीका -जापान-चीन भी,कर रहे प्रशंसा गुलशन की।।
लौट के आया शान से अपना,
पवन-पुत्र अभिनंदन भी।
पा के लाल सुरक्षित देखो,
है हुआ देश में नंदन भी।
अभिनंदन का करते सब मिल,अब एकसाथ अभिनंदन हैं-
हुई घड़ी आरंभ देख लो,नव भारत के अब सर्जन की।।
भारत की अद्भुत क्षमता का,
नहीं है कोई विकल्प यहाँ।
जोड़-तोड़ में लगे पाक के,
मर्दन का अब संकल्प यहाँ।
दे पनाह दहशतगर्दों को,पाक बहुत ही पछतायेगा-
चालें अब न चलेंगी उसकी,अब हया दिखेगी चिलमन की।।
सुस्त पड़ गई ज्वाला अब कुछ,जो रही धधकती तन-मन की।।