हरी राम यादव, बनघुसरा, अयोध्या
बोलो हवा तुम कहां हवा हो गयी
बोलो हवा तुम कहां हवा हो गयी,
तुम तो धरती पर अब दवा हो गयी।
लगता हमें अब तुम्हें कैद हो गयी,
सर्वसुलभ से अब तुम बैद हो गयी।
आखिर तुम क्यों न हर हर कर चलती,
क्यों न तुम अब मिट्टी धूल से सनती।
क्या तुम्हारी भी घुटनों के दर्द से ठनती,
क्यों तुम चल रही हो पग पग गिनती।
पहले तुम्हारे आगे किसी की न चलती,
तुम्हारे बल पर बिटप लता मचलती।
तुम दीन हीन पशु पक्षी की गर्मी हरती,
ठंडी रहती थी तुम्हारे चलने से धरती ।
हवा तुम बनती थी आंधी और बवंडर,
उड़ा ले जाती संग घास फूस का घर ।
जोर दिखाती तने तनों को उखाड़ कर,
हवा बता दो हमें, तुम बैठी क्यों छुपकर।।