हरी राम यादव
जयंती विशेष :15 मई
एक अद्वितीय यौद्धा : कैप्टन (भारतीय नौसेना) महेन्द्र नाथ मुल्ला
महावीर चक्र (मरणोपरांत)
वर्ष 1971 का दिसम्बर का महीना था। देश की आम जनता सर्दी के मारे कांप रही थी और सर्दी से छुटकारा पाने के लिए तरह तरह के यत्न कर रही थी। कोई अलाव का इंतजाम कर रहा था तो कोई ठंढी रात से बचने के लिए कम्बल और रजाई की व्यस्था कर रहा था। इसी कडकडाती सर्दी में दो पडोसी देशों के आसमान में युद्ध के बादल छाए हुए थे। इन बादलों की वजह से सेना और राजनीति के क्षेत्र में काफी गर्माहट थी। सेना और राजनीति के रणनीतिकार काफी व्यस्त थे। जिन दो देशों के आसमान में बदल छाए हुए थे वह थे भारत और पाकिस्तान। उस समय हमारे देश की प्रधानमंत्री थी श्रीमती इंदिरा गांधी।
03 दिसंबर 1971 को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी वायुसेना ने हमारे वायुसेना के 11 वायुसेना अड्डों पर हमला कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उसी समय रात को ही ऑल इंडिया रेडियो पर देश की जनता को संबोधित किया और पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले कि जानकारी दी। सरकार ने 04 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया। भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के आयुध भंडारों और वायु सेना अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिए और थल सेना ने पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर पाकिस्तानी सेना को करारा जबाब देना शुरू कर दिया ।
युद्ध के हालात को देखते हुए भारतीय नौसेना भी अरब सागर में सक्रिय हो गई । पाकिस्तान की पी एन एस हंगोर भारतीय नौसेना को निशाना बनाने के लिए भारतीय जल सीमा में घुस चुकी थी। पी एन एस हंगोर उस समय की उन्नत तकनीक वाली सबमरीन थी जिसे पाकिस्तान ने फ़्रांस से ख़रीदा था । इस सबमरीन की उन्नत तकनीकि और मारक क्षमता के कारण इसको शार्क भी कहा जाता था । 05 दिसम्बर 1971 को पी एन एस हंगोर द्वारा भेजे जा रहे संदेशों को भारतीय नौसेना के उपकरणों ने पकड़ लिया। पकड़े गये संदेशों से पता चल गया कि पाकिस्तानी पनडुब्बी भारतीय जल सीमा में घूम रही है। इसे नेस्तनाबूद करने के लिए भारतीय नौसेना ने 14 स्कवाड्रन की दो एंटी सबमरीन आई एन एस खुकरीऔर आई एन एस कृपाण को रवाना किया गया और इस स्कवाड्रन को लीड कर रहे थे कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला । दोनों 08 दिसंबर को मुंबई से चलकर 09 दिसंबर को उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर पाकिस्तानी पनडुब्बी पी एन एस हंगोर के होने की सम्भावना थी ।
जहां से पनडुब्बी के होने का सिग्नल मिला था उस क्षेत्र में बहुत देर तक खोजने के बाद भी उन्हें पाकिस्तानी पनडुब्बी का कोई निशान नहीं मिला । पी एन एस हंगोर को अपने उपकरणों से भारतीय एंटी सबमरीनों के पहुंचने का पता लग चुका था। उसने आई एन एस कृपाण पर टॉरपीडो से हमला कर दिया लेकिन टॉरपीडो मिसफायर हो गया। इस हमले से हंगोर की स्थिति का पता हमारी नौसेना को लग गया । लेकिन हमारी नौसेना द्वारा कोई जवाबी कार्रवाई करने से पहले ही पी एन एस हंगोर ने एक और टॉरपीडो दाग दिया और यह टॉरपीडो सीधा जाकर आई एन एस खुकरी में लगा । इस समय रात के 08 बजकर 45 मिनट हुए थे। आई एन एस खुकरी पर टॉरपीडो लगते ही उसमें सुराख़ हो गया। जहाज में तेजी से पानी भरना शुरू हो गया और जहाज डूबना शुरू हो गया।
कैप्टन मुल्ला ने सभी नौसैनिकों को जल्द से जल्द लाइफ सेविंग जैकेट पहनकर अरब सागर में कूदने को कहा। उस वक्त जहाज के एक जवान के पास लाइफ सेविंग जैकेट मौजूद नहीं थी। कैप्टन मुल्ला ने उसे अपनी लाइफ सेविंग जैकेट पहनाकर पानी में धकेल दिया ताकि उसकी जान बच जाए। जहाज डूबता जा रहा था। ऐसे में कैप्टन मुल्ला जहाज के ऊपर एक सच्चे सैन्य कमांडर की तरह बेखौफ खड़े हो गए और वीरों की परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने युद्धपोत के साथ माँ भारती के गोद में सदा सदा के लिए सो गए । 08 बजकर 50 मिनट पर हमारी नौसेना का यह जहाज समुद्र में पूरी तरह डूब गया। इस घटना में आई एन एस खुकरी के 176 नौसैनिक और 18 अधिकारी वीरगति को प्राप्त हुए, इनमें से 03 अधिकारी और 14 अन्य रैंकों के नौसैनिक उत्तर प्रदेश के थे। विभिन्न रैंकों के 67 नौसैनिक अपनी जान बचाने में कामयाब रहे।
कैप्टन मुल्ला ने अपने कर्तव्य को सर्वोपरि समझा और अपने साथी सैनिकों की परवाह आखिरी समय तक किया। उनके इस अद्वितिय साहसिक कार्य के लिए उन्हें 09 दिसम्बर 1971 को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 28 जनवरी 2000 को कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला के सम्मान में भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया । मुंबई में नेवी नगर, कोलाबा में कैप्टन एम एन मुल्ला ऑडिटोरियम का नाम उनके नाम पर रखा गया है। फ़ोयर में कैप्टन मुल्ला की एक प्रतिमा लगाई गई है तथा डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन में एक सभागार का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है। वीरगति प्राप्त कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला की पुत्रियों श्रीमती अमिता मुल्ला वट्टल और श्रीमती अंजलि कौल द्वारा 11 मार्च 2023 को अपने पिता के सम्मान में नौसेना शिशु विद्यालय , दिल्ली में एक ट्रॉफी की स्थापना की गई है।
कैप्टन महेन्द्र नाथ मुल्ला का जन्म 15 मई 1926 को उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर में श्रीमती कमला मुल्ला और श्री तेज नारायण मुल्ला के यहाँ हुआ था। इनके पिता श्री तेज नारायण मुल्ला एक प्रतिष्ठित वकील थे। कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला जनवरी 1946 में एक कैडेट के रूप में रॉयल इंडियन नेवी में शामिल हुए। उन्हें 01 मई 1948 को रॉयल इंडियन नेवी में नियुक्त किया गया था और 16 दिसंबर 1958 को लेफ्टिनेंट कमांडर के रूप में पदोन्नत किया गया। 29 अप्रैल 1961 को कैप्टन मुल्ला को डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन में स्टाफ कोर्स के लिए भेजा गया । इसके बाद उन्होंने 1965 से 1967 तक भारत के उच्चायुक्त के उप नौसेना सलाहकार के रूप में लंदन में कार्य किया। कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला ने आई एन एस खुकरी पर कमांडिंग ऑफिसर के रूप में अपनी तैनाती से पहले भारतीय नौसेना के जहाजों गोमती, मद्रास, राणा पर कमान अधिकारी के रूप में और आई एन एस कृष्ण पर उप कमान अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएँ दे चुके थे । कैप्टन महेन्द्र नाथ मुल्ला का विवाह श्रीमती पत्नी सुधा मुल्ला से हुआ था । उनके परिवार में उनकी दो बेटियाँ श्रीमती अमिता मुल्ला वट्टल और श्रीमती अंजलि कौल हैं।
Photo – Capt Mahendra Nath Mula, Mahavir Chakra