गंभीर बहस के बजाय तू-तू, मैं मैं में उलझती पत्रकारिता और रद्दी होता अखबार ?

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 राजेन्द्र सिंह जादौन (सम्पादक “नया अध्याय”) मध्य प्रदेश

गंभीर बहस के बजाय तू-तू, मैं मैं में उलझती पत्रकारिता और रद्दी होता अखबार ?

एक पत्रकार या मानवाधिकार रक्षक पर मुकदमे दबाव डालने के लिए लाए जाते हैं, न कि अधिकार को साबित करने के लिए और यह प्रायः बेकार, तुच्छ या अतिरंजित दावों पर आधारित होते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक और चुनौती सरकारों द्वारा ऑनलाइन सूचना पर पाबंदी लगाने की कोशिशें हैं? वैसे तो पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है, जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि। एक पत्रकार को खबरों को देश के दूरगामी हित को ध्यान में रखते हुए विस्तृत रिपोर्टिंग करनी चाहिए देश में कई गहन मुद्दे है जिनपर सिर्फ छोटी सी खबर दिखाई जाती है। देश में खुले स्थानों पर अनधिकृत कब्जेके के कारण आवाजाही में अवरोध उत्पन होता है यहाँ तक कि आग लगने पर अग्निशमन को पहुँचने में बहुत देरी जिसके कारण आग से नुकसान कई गुना बढ़ जाता है। लेकिन इस बात पर किसी भी मिडिया का कोई डीएनए रिपोर्टर या एंकर कुछ नहीं बोलता इतनाही नहीं देश में हर वर्ष जगह जगह बाढ़ के आने के बाद हुए बड़े नुक़सान पर नेता जी कलेक्टर मोहदय अर्थीक सहायता की घोषणा करते है लेकिन इससे निपटने भविष्य में कोई अग्रिम प्रबंध नहीं किया जाता? वैसे तो देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनावश्यक बिना नतीजा बहस से परहेज़ के बजाये चैनल इन्हे तूल देकर फैशन शो चला रहे है गम्भीर बहस के बजाय तू तू मैं मैं की सिरदर्दी सृजनतमक कृतई नहीं होती ? एक पत्रकार को किसी मुद्दे की गहराई से छानबीन करके उचित प्रस्तुतीकरण देने की जरूरत है। गैर ज़रूरी मुद्दों पर समय की बर्बादी के बजाय सही मुद्दों पर समय देना और देश की भावी पीढ़ी को उचित स्थान देते हुए उसकी समस्याओं और विकास करना ही पत्रकार का लक्ष्य होना चाहिये ये एक गहन विषय है जिस पर शोध किया जा सकता है। और पत्रकारिता को फिर से बहतर बनाया जा सकता है।

पत्रकारों पर संस्थाओं ने खबरों का इतना दबाव बना दिया है की अब अखबार भी सवाल नहीं पूछता सरकारों से अब भी रद्दी सा हो गया है रद्दी यानी कुछ ऐसा कि जिसे पढ़ कर लगे कि कागज, मगज, कलम, समय, मोबाइल डाटा, शब्दकोश सबकी एक साथ बर्बादी की गई हो. कुल मिलाकर बड़ा ही घटिया लिखा गया लेख जिसे शायद स्कूल मैगजीन में भी जगह नहीं मिलनी चाहिए। स्क्रॉल ने छापा, उपकार किया इनपर। अच्छे संपादक होते तो पढ़ पर कहते फेंक देने लायक लिखा है।

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