डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
बौराय गयल…
बौराय गयल बदरा (लोक-भाषा में)
बौराय गयल बदरा आजु यहीं ठइयाँ।
रोआय गयल बदरा आजु यहीं ठइयाँ।।
सरसों फराइल, रहर गदराइल,
खेतवा में गेहुआँ गजब लहराइल।
सबकै सुरतिया बिगाड़ गयल बदरा।।आजु यहीं……
अमवा कै सगरो बउर झरि गइलैं,
बाग-बगइचा कै फूल गिरि गइलैं।
पनिया सँग पथरा गिराय गयल बदरा।।आजु यहीं…….
लोग-बाग खुश रहे देखि के फसलिया,
मन में बनावत रहे हवा कै महलिया।
हवा कै महलिया गिराय गयल बदरा।।आजु यहीं…….….
सावन में लागै बड़ सुहावन बदरा,
बेमौसम न रचिको ई भावन बदरा।
हवा सँग मड़इओ उड़ाय गयल बदरा।।आजु यहीं…….
बड़ा निर्मोही दरदियो न बूझै,
चूर घमंडइ में कछू नाहिं सूझै।
रतिया कै निदिया चुराय गयल बदरा।।आजु यहीं………।।