काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी।
अप्रत्याशित दर्द (unexpected Pain)
ऐसा क्षण आता जीवन में।
लगती आग अचानक मन में।
भूल न पाता है यह मानस।
चैन न मिलता वृंदावन में।
कभी न सोचा था यह होगा।
बहुत विषैला है भव रोगा।
रोता और विलखता तन-मन।
निष्फल लगता है हर योगा।
जीवन की है निष्ठुर घटना।
आजीवन यह जिवित रचना।
भूल न पाता है पागल मन
है प्रत्यक्ष भयानक सपना।
साथ साथ जो चला हाथ धर।
बातें करता था हँस हँस कर।
बांह छुड़ा कर जग से गायब।
अप्रत्याशित वह नेत्र सजल कर।