चलता-फिरता खबरनामा थे दादा दिनेश चंद्र वर्मा।

Spread the love

राकेश अचल।

चलता-फिरता खबरनामा थे दादा दिनेश चंद्र वर्मा।

देश के वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार किये जाने वाले दिनेशचंद्र वर्मा अद्भुत लिख्खाड़ पत्रकार थे। 29 जुलाई 1944 को जन्मे वर्मा जी की आरंभिक कर्मभूमि विदिशा थी। जीवन भर वे अपनी कलम का साथ निभाते रहे। अंतिम एक साल वे शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी जीवटता को आखिर तक बनाये रखा।

वर्मा जी अपनी कलम के साथ ही अपनी फकीरी वेश-भूषा के कारण भी जाने जाते थे। एक जमाना था जब वे पूरे भोपाल में सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आते थे। सातवें-आठवें दशक में हिंदी पत्रकारिता में फटाफट लेखन करने वालों में दिनेश चंद्र वर्मा अग्रणीय माने जाते थे। उन दिनों मैंने भी लिखना शुरू कर दिया था। प्रदेश के तमाम छोटे-बड़े अखबारों में छपने की जैसे होड़ लगी रहती थी। वर्मा जी ने कुछ समाचार पत्रों में नौकरी भी की लेकिन नौकरी लम्बी चली नहीं। शायद नौकरी उनके लिए थी ही नहीं। उन्हें स्वतंत्र लेखन ने अपनी ओर आकर्षित किया और ये अंत तक उसी में जुटे रहे। उन्होंने कोई पच्चीस साल तक विनायक फीचर्स के जरिये हिंदी पत्रकारिता की अविराम सेवा की।

जाहिर है कि वर्मा जी एक चलता फिरता सूचना भंड़ार थे। मध्यप्रदेश बनने के बाद के एक-दो मुख्यमंत्रियों और नौकरशाहों को छोड़‌कर अधिकांश के बारे में वर्मा जी के पास किस्से ही किस्से थे। तब विस्पर्स कॉरिडोर का चलन नहीं था लेकिन वर्मा जी ने इस चलन को लोकप्रिय बना दिया था। ये जहाँ होते एक न एक सुर्री छोड़ जाते थे। उनकी दुश्मनी शायद ही किसी से हो लेकिन दोस्ती सबसे थी। वे दुश्मनी भी स्थाई नहीं पाल पाते थे जो आज दुश्मन बना हो यो कल उनका दोस्त भी हो सकता था। वे आखरी वक्त तक कम से कम हमें अपनी मित्र सूची में शामिल किये रहे।वर्मा जी से मित्रता का पहला दौर 1992 के आसपास कुछ शिथिल पड़ गया था लेकिन 2004 में भोपाल के युवा पत्रकार जय यादव ने अपनी मासिक पत्रिका (भोपाल महानगर) के जरिये इस दोस्ती को फिर हरा-भरा कर दिया। बीते सोलह साल से प्रायः हर महीने हमारा सतसंग होता था वे हम निवाला हमसफर, हमराज थे। उनकी फीचर सेवा के लिए भी मैं खूब लिखता रहता था और आज भी लिख रहा हूं।उनकी प्रेरणा से मैंने भी रोजाना एक लेख लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ की जो अनवरत जारी है। जब भी लिखते समय गाड़ी कहीं अटकती वर्मा जी अपनी स्मृति के सहारे उसे सहारा दे देते थे। जीवन की हीरक जयंती मनाने में कामयाब रहे वर्मा जी इंस्टेंट लेखन में सिद्ध हस्त थे। एक बैठक में आप उनसे बीस-तीस पेज आसानी से लिखवा सकते थे। वे विवादों से दूर रहते थे। उन्होंने श्रमजीवी पत्रकार संघ की स्थापना और उसके विस्तार में भी सक्रिय योगदान दिया लेकिन बाद में नेतागिरी से उनका मोहभंग हो गया था। राजनेताओं से उनके संबंध बड़े मधुर रहे। विद्याचरण शुक्ल हों या अर्जुन सिंह,राघव जी भाई हों या लक्ष्मीकांत शर्मा,दिग्विजय सिंह हों या शिवराज सिंह सबके बीच दिनेश चंद्र वर्मा की पहुंच थी लेकिन इस पहुंच से वे बहुत ज्यादा लाभान्वित कभी नहीं हुए इसलिए जीवन भर फकीरों की तरह रहे। दादा दिनेश चंद्र वर्मा ने अपने बाल कटाना एक लम्बे अरसे से बंद कर रखे थे। उन्होंने अपने बालों को कभी रंग-रोगन भी नहीं किया इसलिए वे उम्र से पहले दादा हो गए। साधुओं जैसा उनका चोला सबसे अलग दिखाई देता था। वे अच्छे यायावर थे । उन्होंने अपनी सेहत के साथ कभी खिलवाड़ नहीं किया और महाप्रयाण से कुछ महीनों पहले तक जीवन को जीवन की तरह जिया। खान-पान के शौकीन दादा वक्त के पाबन्द थे। कुछ वर्षों से वे अपनी कार में सवार होकर जहां बुलाइये वहां हाजिर हो जाते थे। वे अपने जीवन से नाराज बिलकुल नहीं थे।

उनके इकलौते पुत्र ने उनकी पत्रकारिता का उत्तराधिकार उनके सामने ही संभाल लिया था। पवन की पहचान कायम होने से वे अक्सर मुतमईन दिखाई देते थे। बेटा अपने आप पत्रकार बन गया। कई मामलों में दादा एकदम रुखे भी थे लेकिन जो उन्हें जानते थे उन्हें दादा का रूखापन भी प्रिय लगता था… मैंने उनके साथ अनेक यात्राएं की। अनेक घटनाओं,दुर्घटनाओं का साक्षी रहा। वे मुझसे उम्र में कोई 15 साल बड़े थे, लेकिन उन्होंने कभी मुझे राकेश नहीं कहा। वे हमेशा मुझे अचल जी ही कहते थे। सम्मान करना और सम्मान कराना उन्हें खूब आता था। भोपाल में हमारी मित्र मंडली में अब कोई दूसरा दादा फिलहाल दूर-दूर तक दिखाई नहीं देगा। दादा दिनेश चंद्र वर्मा शेष जीवन में हमेशा एक मधुर स्मृति बनकर हमारे साथ रहेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) (विनायक फीचर्स)

  • Related Posts

    अजय देवगन नाम में एक बार फिर गैंगस्टर की भूमिका में।

    Spread the love

    Spread the love          फिल्मी दुनियां अजय देवगन नाम में एक बार फिर गैंगस्टर की भूमिका में।   क्या होगा जब आप किसी हादसे का शिकार होने…

    शूरवीर सौदागर सिंह का शौर्य।

    Spread the love

    Spread the loveहरी राम यादव, अयोध्या, उ. प्र.।  शूरवीर सौदागर सिंह का शौर्य। सन 1962 से पहले भारत से चीन के दोस्ताना सम्बन्ध थे। विभिन्न अवसरों पर “हिन्दी चीनी भाई…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    भारत में बुजुर्ग आबादी की समस्याएँ।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 6 views
    भारत में बुजुर्ग आबादी की समस्याएँ।

    मानवता और योग को सदैव समर्पित रहे स्वामी सत्यानंद। 

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    मानवता और योग को सदैव समर्पित रहे स्वामी सत्यानंद। 

    जाने सर्दियों में कैसे रखें त्वचा का ध्यान।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 5 views

    ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के अन्तर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गाँव धीरे- धीरे पर्यटक गांव के रूप में विकसित होने का रहा है।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के अन्तर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गाँव धीरे- धीरे पर्यटक गांव के रूप में विकसित होने का रहा है।

    बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी के निर्देश पर संस्कृत विद्यालय कमेड़ा के छात्र – छात्राओं ने श्री बदरीनाथ धाम के शीतकालीन पूजा स्थलों, औली का शैक्षिक भ्रमण किया।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 5 views
    बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी के निर्देश पर संस्कृत विद्यालय कमेड़ा के छात्र – छात्राओं ने श्री बदरीनाथ धाम के शीतकालीन पूजा स्थलों, औली का शैक्षिक भ्रमण किया।

    शतरंज : मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी खेल।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    शतरंज : मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी खेल।