इंजीनियर राशिद हुसैन
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश।
गजल
मंजिलों के लिए भटकता रहा।
जिंदगी भर सफर ही करता रहा।।
अपनी तकदीर को बदलता रहा।
मैं जमाने के साथ चलता रहा।।
नफरतें हर कदम पे थी लेकिन।
मैं मोहब्बत की राह चलता रहा।।
इस कदर भीड़ थी मसाइल की।
अपने अंदर ही मैं उलझता रहा।।
मेरे जैसी वफ़ा मिली न उसे।
जिंदगी भर वो हाथ मलता रहा।।
कितना बैचेन था मैं तेरे बगैर।
रात भर करवटे बदलता रहा।।
तेरी फुरकत में तेरी यादों का।
आंधियों में चिराग जलता रहा।।
मौत तो जिंदगी से बेहतर है।
बे सबब मौत से मैं डरता रहा।।
मेरी तकदीर में न था लेकिन।
मेरी आंखों में ख्वाब पलता रहा।।
एक आंसू न आया आंखों में।
मेरे अंदर ही गम मचलता रहा।।
खौफ ऐसा खजा का था राशिद।
फूल हाथो से वो मसलता रहा।।