संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
आओ आज 2025 स्वागत करें
घड़ी की सुइयों का मिलन होने दो,
इस रात को बारह बजे पहुँचने दो।
हमने क्या? है खोया क्या? पाया,
अब भूल भी जाओ उस बात को!
आओ आज 2025 स्वागत करें।
घड़ी की सुइयों का मिलन होने दो,
इस रात को बारह बजे पहुँचने दो।
हाँ, कुछ ख्वाब अधूरे रह गए होंगे,
हमसे कुछ अपने बिछड़ गए होंगे!
सभी उन्हें हमेशा संजोए ही रखेंगे।
घड़ी की सुइयों का मिलन होने दो,
इस रात को बारह बजे पहुँचने दो।
हर याद, हर अनुभव हमें दिया हैं,
हर बार तोहफा देने वादा किया है!
सबने एक सुकून का पल जिया है।
घड़ी की सुइयों का मिलन होने दो,
इस रात को बारह बजे पहुँचने दो।
नया साल हैं एक खाली कैनवास,
इसे रंग-बिरंगी उम्मीदों से भर दो!
अब तीन सौ पैसठ भी पूरे कर दो।
घड़ी की सुइयों का मिलन होने दो,
इस रात को बारह बजे पहुँचने दो।
हम सभी खास हैं इस धरा सृष्टी के,
नहीं होंगे पथ भ्रष्ट इस नई दृष्टी के!
आसमाँ पे लिखें नववर्ष के वृष्टी के।