डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
मधुरालय
2सुरभित आसव मधुरालय का
वाह्याभ्यंतर शीतल होवे,
मात्र घूँट झट लेने से।
देती सुर सम शुचिता यह जो-
जीवन सकल कमाई है।।
एक स्वाद,रस एक-केंद्र यह,
समरसता का द्योतक है।
रूप-रंग का ध्यान न देवे-
क्या लघुता व बड़ाई है??
अवनि-स्वर्ग सम अनुपम आलय,
लगता शिक्षा-आलय यह ।
एक भाव-व्यवहार की शिक्षा-
नीति सुष्ठ अपनाई है।।
है यह मंदिर, मस्ज़िद यह है,
गिरजाघर-गुरुद्वारा भी ।
कर लो सज़दा सब जन मिलकर-
साक़ी सकल ख़ुदाई है।।
राग-द्वेष से दूर केंद्र यह,
मात्र नेह की शाला है।
मेल-जोल का दे प्रसाद यह-
मधुर-मिठास मिठाई है।।
नदी-धार सम अविरल बहता,
इसका आसव अमृत सम।
उतर गले में एक घूँट यह-
अंतरमन ठंडाई है।।
शीतल चंदन सम सुगंध ले,
तन-मन यह महकाता है।
युगों-युगों से प्यासे मन की-
औषधि,यही दवाई है।।