गुरुदीन वर्मा (जी.आजाद)
शिक्षक एवं साहित्यकार
बारां (राजस्थान)
सोचा था कि नववर्ष में—————-।
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सोचा था कि नववर्ष में—————–,
बदलेगी हवाएँ पर्यावरण की,
फिजाओं में रौनक होगी,
बहारों में खुशबू होगी,
रात को होगी नई रोशनी,
और कल को नई सुबह होगी।
सोचा था कि नववर्ष में————–,
महक उठेंगे मुरझाये फूल,
चमक उठेंगे बुझे हुए चिराग,
हर चेहरे पर होगी खुशी,
श्रृंगार किये धरती दुल्हन सी होगी,
नया जोश, नई उमंग, नई ताकत होगी।
सोचा था कि नववर्ष में—————-,
नहीं होगा अभावों में किसी का जीवन,
सभी का होगा यहाँ सभी का सम्मान,
नहीं होगा सितम किसी पर,
और हर आदमी का होगा एक प्यारा घर,
कोई काया होगी बिना वस्त्र के।
सोचा था कि नववर्ष में————–,
ईमान और इंसाफ की बात होगी,
नहीं होगा किसी के साथ अन्याय,
सुरक्षित होगी हर महिलायें बदमाशों से,
नहीं होगी हत्या गर्भ में,
नहीं होगा कहीं अनाथालय, वृद्धाश्रम,
हाँ, साल बदला है, मंजर और खबरें नहीं।
सोचा था कि नववर्ष में——————-।