
हरी राम यादव, बनघुसरा, अयोध्या, (उ. प्र.)
वीरगति दिवस विशेष
सैपर अमरजीत सिंह
शौर्य चक्र (मरणोपरान्त)
देश के प्रति समर्पण की भावना गांव के एक 17 साल के नवयुवक को उस विन्दु पर पहुँचा देती है जहाँ पर पूरा देश उसको अपना परिवार लगने लगता है और आवश्यकता पड़ने पर वह अपने व्यक्तिगत हित की चिंता किए हुए बिना देश की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है । उसके समर्पण की यह भावना उसे समाज के अन्य लोगों से अलग करती है और वह देश का सैनिक कहलाता है । यह एक ऐसे ही सैनिक के समर्पण की शौर्य गाथा है जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
05 अप्रैल 2011 को 42 राष्ट्रीय राइफल्स को एक सूचना मिली कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के एक गाँव में आतंकवादी छुपे हुए हैं। 42 राष्ट्रीय राइफल्स ने गांव के उस छुपाव स्थल को खोजने का निर्णय लिया और इसके लिए एक दल का गठन किया। सैपर अमरजीत सिंह इसी खोजी दल के सदस्य थे। सैपर अमरजीत सिंह के टीम कमांडर ने उसे खोज निकाला। छिपे हुए आतंकवादी ने गोलीबारी शुरू कर दी। टीम कमांडर ने अपने साथियों को बाहर निकलने का आदेश दिया। सैपर अमरजीत सिंह स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना आतंकवादी पर प्रभावी गोलीबारी करते हुए अपनी टीम के सुरक्षित निकलने में सहायता करने लगे । इस साहसिक गोलाबारी में उन्होंने आतंकवादी को गंभीर रूप से घायल कर दिया और उसे उलझाना जारी रखा जिससे उनके साथियों की सुरक्षित आवाजाही हो सके। इस प्रक्रिया में उनके चेहरे पर गोली लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गये। अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए और आखिरी सांस तक आतंकवादियों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गये।
सैपर अमरजीत सिंह ने आतकवादियों द्वारा की जा रही गोलीबारी के सामने कर्तव्य के प्रति समर्पण और अदम्य साहस का परिचय दिया तथा राष्ट्र की सेवा में सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी कर्तव्यपरायणता और साहस के लिए 05 अप्रैल 2011 को उन्हें मरणोपरान्त ‘शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।
सैपर अमरजीत सिंह का जन्म 02 नवम्बर 1986 को जनपद गोरखपुर के गांव गांगूपार में श्रीमती सियामती तथा श्री तिलक सिंह के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा टी. डब्ल्यू. ई. आई. हाईस्कूल, फगवाड़ा (पंजाब) से पूरी की और 28 जुलाई 2003 को भारतीय सेना की इंजीनियर्स कोर में भर्ती हुए। निर्धारित प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 62 इंजीनियर रेजिमेन्ट में तैनात हुए। बाद में इनकी अस्थायी तैनाती 42 राष्ट्रीय राइफल्स में हुई। सैपर अमरजीत सिंह के परिवार में इनके पिताजी, पत्नी श्रीमती दीपमाला और 14 वर्ष का एक बेटा है। इनकी माताजी का स्वर्गवास हो चुका है।
श्रीमती दीपमाला का सरकार और स्थानीय प्रशासन से कहना है कि इनके पति ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इनके पति के वीरता और बलिदान को याद रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है । सरकार से इनकी मांग है कि इनके गांव को आने वाली सड़क पर एक शौर्य द्वार बनवाकर, सड़क का नामकरण इनके पति के नाम पर करना चाहिए और गांव में स्थित प्राइमरी पाठशाला में इनके पति की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए ताकि गांव के बच्चे और युवा अपने गांव के इस यौद्धा से प्रेरणा लेकर देश सेवा में जाने के लिए प्रेरित हों।