
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
नवरात्र
देवी माँ का वंदन (दोहे)
माता के नौ रूप हैं,नौ ही हैं घट-द्वार।
पाकर माँ-आशीष ही, कटता कष्ट अपार।।
विमल हृदय से यदि करें, माता का सम्मान।
निश्चित सुख-वैभव मिले, रहे सुरक्षित आन।।
दोनों ही नवरात्र में, होता प्रकट स्वरूप।
विधिवत व्रत-पूजा करें, दर्शन मिले अनूप।।
माता परम कृपालु हैं, अमित प्रेम का कोष।
इनका पा आशीष ही, मिले हृदय को तोष।।
धन्य-धन्य माँ हो तुम्हीं, ममता का भंडार।
करो कृपा हे मातु तुम, देकर अपना प्यार।।
है पुकारता भक्त तव, कातर वचन उचार।
माता आओ द्वार मम, करने बेड़ा पार।।
सकल सृष्टि की धारिणी, सकल सृष्टि का स्रोत।
पा प्रकाश तेरा जलें, रवि-शशि ये खद्योत।।
सिद्धिदायिनी मातु हे, होकर सिंह सवार।
आओ पुनि इस लोक में, मेटन अत्याचार।।
अष्टसिद्धि-नवनिधि-प्रदा, मात भवानी आप।
अघ-बोझिल इस अवनि का, हरो क्लेश-संताप।।