डाल सब्र के बीज।

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डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा।

 

 

         डाल सब्र के बीज।

 

सूना जब आँगन लगे, बने न कोई बात।

सब्र रखो उस वक़्त में, वही बने सौगात॥

 

धन वैभव जब पास हो, ना कर तू अभिमान।

कद्र करो उस दान की, जिसने किया प्रदान॥

 

राह कठिन जब सामने, मन में ना हो रोष।

सब्र रखो उस वक़्त में, मिल जाए संतोष॥

 

बदले जब तक वक़्त ना, ना हारो विश्वास।

सब्र करो, फिर आएगा, खुशियों का मधुमास॥

 

अंधियारों में जो जले, सौरभ सच्चा दीप।

सब्र उसी का नाम है, भरता खाली सीप॥

 

फल की ना कर आस तू, कर कर्मों पर गौर।

सब्र रखे जो वक़्त में, मिलता उसको और॥

 

हर सुख-दुख का मेल है, जीवन एक किताब।

सब्र कद्र जो सीख ले, सच में बदले ख्वाब॥

 

रूठे जब हालात हों, ना हो मन उदास।

सब्र करे जो नेक दिल, पाए खूब सुवास॥

 

सुख आए झुक के रहे, ना कर तू अभिमान।

बिना कद्र उपहार सब, खो देते नादान॥

 

सूखे मन के खेत में, डाल सब्र के बीज।

फल फलते हैं धैर्य से, काम न आये खीज॥

 

मिले अगर कुछ वक़्त से, ना कर गर्व अपार।

कद्र करे जो काल की, सजे उसका संसार॥

 

धूप सहे जो शांत मन, पाते वही छांव।

सब्र रखे तो ना कभी, डगमे उसके पाँव॥

 

चमकेगा वह चाँद भी, जो सहे अंधियार।

सब्र करे जो रैन में, उजियारा हो यार॥

 

दुःख-दाह से भाग मत, धीरज धर मन मान।

सब्र सुरा सम जगत में, पी ले साजन जान॥

 

सौरभ विपदा घोर में, रहे विनीत विचार।

मौन रहें कर काल पर, बृह्मस्त्र ज्यों प्रहार॥

 

श्वास-श्वास में साधना, कर्म बना अनुराग।

सब्र-धर्म से खिल उठे, जीवन बने सुहाग॥

 

संकट हो या सुख मिले, रखे एक-सा भाव।

कद्र सब्र संग जो चले, डूबे ना वह नाव॥

 

प्रीति बिना ना सार है, ना धन, ना दरबार।

सब्र बिना जो जीव है, उसका जीवन भार॥

 

सदा समय सौगात की, कद्र करो हर भाव।

वरना जीवन शेष में, रह जाए पछताव॥

 

 

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