
हरी राम यादव, अयोध्या, (उ. प्र)
अद्वितीय रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव।
छोटा कद, गठीला बदन, शरीर पर धोती, कुर्ता और कुर्ते के ऊपर सदरी पहने और चेहरे पर आत्मविश्वास से लबरेज, देहाती सा लगने वाला एक साधारण व्यक्ति, जिसकी उस बड़ी सोच ने उसे भारतीय सेना के सैनिकों और उनके परिजनों के दिलों का राजा बना दिया, जो सैनिक अपने शौर्य, पराक्रम, वीरता, तथा बलिदान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं और जो सैनिक “सर्विस बिफोर सेल्फ” की उच्च भावना के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं, जिनके पराक्रम को देखकर दुश्मन भी शीश झुकाता है ।
अगर हम संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो हमारी भारतीय सेना विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना है और आजादी के बाद से 1996 तक तीन युद्ध पाकिस्तान से और एक युद्ध चीन से लड़ चुकी है। आजादी से पूर्व हमारे देश की सेना ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया तथा इन युद्धों में हमारे देश के बहुत से जवान वीरगति को प्राप्त हुए और यदि घायल सैनिकों की संख्या की बात की जाए तो वह वीरगति प्राप्त सैनिकों की संख्या से कहीं ज्यादा थे। उस समय देश के जवानों के परिवार काफी पीड़ा में थे। इस पीड़ा को उस समय की अंग्रेज सरकार और सेना के अधिकारियों ने समझा। सैनिक परिवारों तक राहत पहुंचाने और सैनिकों का लेखा-जोखा रखने के लिए सन 1917 में वार बोर्ड की स्थापना की और बाद में यह राज्य सैनिक बोर्ड के नाम से जाने जाने लगे। इसके बाद सैनिकों तक राहत पहुंचाने के लिए जिला सैनिक बोर्डों की स्थापना की गयी।
किसी की पीड़ा को वहीं व्यक्ति महसूस कर सकता जो उस तरह की पीड़ा से गुजरा हो या देख सुनकर अनुभव किया हो। हमारे देश की राजनीति में एक ऐसे नेता हुए जिन्होंने सैनिकों के परिजनों की पीड़ा को देखा, सुना और समझा। जब वह रक्षामंत्री बने तब उन्होंने एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय लिया जो कि अपने आप में एक नजीर है। उस नेता का नाम हर बार तब लिया जाता है जब कोई सैनिक देश के दुश्मनों से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो जाता है और उसका पार्थिव शरीर जब उसके पैतृक गांव पहुंचता है तो लोग बरबस कह उठते हैं कि “मुलायम सिंह यादव ने यह नियम बनाया था।
90 के दशक में उत्तर प्रदेश की सत्ता से केन्द्रीय सत्ता की ओर मुलायम सिंह यादव मुड़े। 1996 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 17 सीटें मिली और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। लेकिन वह सरकार 13 दिन में ही गिर गई। उसके बाद एच डी देवगौड़ा देश के नए प्रधानमंत्री बने। इस सरकार में मुलायम सिंह ने एच डी देवगौड़ा को समर्थन दिया। जब विभागों का बंटवारा हुआ तब मुलायम सिंह यादव को रक्षा मंत्री बनाया गया । मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में 1996 से 1998 के बीच दो साल तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
अपने कार्यकाल में उन्होंने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया कि देश के जो सैनिक मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त होते हैं उनका पार्थिव शरीर, उनके घर सैनिक सम्मान के साथ पहुँचाया जायेगा और उस जनपद के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक अंतिम संस्कार में शामिल होंगे। इससे पहले सेना में ऐसा कोई नियम नहीं था। इससे पूर्व जब भी सेना का कोई जवान वीरगति को प्राप्त होता था, तो उसका पार्थिव शरीर उसके घर नहीं पहुंचाया जाता था। वीरगति प्राप्त सैनिक का अंतिम संस्कार, सेना के जवान सैनिक के धर्म के अनुसार कर देते थे और जवान के घर उसकी वर्दी और सामान भेज दिया जाता था ।
मुलायम सिंह यादव ने रक्षा मंत्री रहते हुए कई चौकाने वाले निर्णय लिए। उन्होंने सियाचीन में तैनात सेना के जवानों की समस्याओं को समझने के लिए वहां का दौरा किया और वहां जाकर सैनिकों की समस्याओं को जाना समझा। सियाचीन में जाने वाले वह पहले रक्षा मंत्री थे। रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने रक्षा प्रतिष्ठानों में हिंदी पत्राचार को बढ़ावा दिया। उनके कार्यकाल के दौरान 5 वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की गईं, इस वेतन आयोग में जो कमियां रह गयीं थी उन कमियों को उन्होंने बड़ी सिद्दत के साथ दूर किया। इस वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद ही सेना के जवानों और जूनियर कमीशन अधिकारियों के जीवन स्तर में बदलाव आया ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने पूर्व सैनिक कल्याण निगम की स्थापना के बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और निगम को सुचारू रूप से चलाने के लिए पहले प्रबंध निदेशक की नियुक्ति की और अपने तीसरे कार्यकाल में पूर्व सैनिक कल्याण निगम को स्थाई कार्यालय प्रदान किया। तीसरे कार्यकाल में ही प्रदेश के वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों के हित में निर्णय लेते हुए उनको नगरपालिका और नगर निगमों में गृहकर से छूट प्रदान की। एक रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने सैनिकों के हित में ठोस निर्णय लिए कभी राजनीतिक लाभ या प्रचार के लिए शिगूफा नहीं छोड़ा ।
रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा वीरगति प्राप्त सैनिकों के सम्मान में शुरू की गई यह पहल अब राजनीतिक लोगों के लिए प्रचार का साधन बनती जा रही है। वीरगति प्राप्त सैनिक के सम्मान में जब कोई जनप्रतिनिधि सरकार का नुमाइन्दा बनकर जाता है और अनुग्रह राशि का चेक देता है तो उसकी प्रबल इच्छा होती है की वह चेक देते हुए फोटो खिचवाए। ऐसी बातें उस दुःख की घड़ी में सामाजिक मर्यादा के अनुसार न तो सही होतीं हैं और ना ही हमारे धार्मिक विचारों के अनुरूप होती हैं। हमारे धर्मग्रंथों में भी कहा गया है कि दान इस तरह देना चाहिए कि यदि दायाँ हाथ दान दे रहा है तो बाएं हाथ को पता नहीं चलना चाहिए ।