
मनोज शाह मानस
नारायण गांव,
नई दिल्ली
“मन का खंडहर…”
मन का खंडहर में
दबा हुआ है…,
हजारों हजार इतिहास
अमूल्य अतुल्य एहसास
कभी ना भूलने वाली चेहरा
जिस पर किसी का न पहरा
कभी न मिलने वाली मिलन
रहस्य से भरा यह जीवन
कभी न मिटने वाली यादें
अनकही अनसुलझी बातें
कभी न भेंट होने वाली प्रतीक्षा
अनंत काल तक की समीक्षा
इस खंडहर का
मैं उत्खनन कर रहा हूं…,
कहां दब पाता है…?
कहां लुप्त हो पाता है…??
मन के अनंत गहराई में
पलेटी मारकर बैठा हुआ
बर्फ सा जमकर बैठा हुआ
वो तमाम सुंदर मनोरम पल
उस मन का खंडहर को
उत्खनन कर रहा हूं…!