नेता प्रतिपक्ष बनते ही राहुल गाँधी के सामने दोहरी चुनौती
पंकज सीबी मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
अठारहवीं लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में राहुल गांधी को प्रतिपक्ष नेता बनाया जाना विपक्ष की एक बड़ी भूल साबित हो सकती है । इस 18वीं लोकसभा का पहला सेशन शुरू हो गया है और राहुल उस कमिटी का हिस्सा बन गए हैं जो सीबीआई के डायरेक्टर, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर, मुख्य सूचना आयुक्त, ‘लोकपाल’ या लोकायुक्त, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के चेयरपर्सन और सदस्य और भारतीय निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती है अब ऐसे में राहुल पार्टी हितों को सर्वोपरि रखेंगे तो जनता कांग्रेस से दूरी बना लेगी और अगर सरकार का सहयोग करेंगे तो सहयोगी पार्टियां दूर हो जाएंगी। मै राहुल गाँधी को उस मामले में बेहद अपरिपक्व नेता मानता हूँ जहां फैसले नीतियों के अंतर्गत लेने होते है और इन्हे नेता प्रतिपक्ष बना कर भाजपा की गिरती शाख को पुनः हरा भरा होने का अवसर मिल जायेगा। लोकतंत्र की सारी नियुक्तियों में राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उसी टेबल पर बैठेंगे, जहां प्रधानमंत्री मोदी बैठेंगे और पहली बार ऐसा होगा, जब इन फैसलों में प्रधानमंत्री मोदी को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी से भी उनकी सहमति लेनी होगी ऐसे में राहुल के ऊपर दोहरा दबाव होगा। राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष होने के बाद वह सरकार के आर्थिक फैसलों की लगातार समीक्षा कर सकते है किन्तु जानकारों कि माने तो उनमें आर्थिक समझ बेहद कमजोर है और सरकार के फैसलों पर अपनी टिप्पणी खुलकर कर सकेंगे इसकी उम्मीद कम है। राहुल गांधी उस ‘लोक लेखा’ समिति के भी प्रमुख बन जाएंगे, जो सरकार के सारे खर्चों की जांच करती है तो राहुल पहले पार्टी फंड को मजबूत करने के लिए समझौते की तरफ देखेंगे जिससे उन्हें समीक्षा करने के बाद टिप्पणी करने में बगले झांकना होगा । उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हो तो गया किन्तु केवल कठपुतली बनकर वो भाजपा के सोशल मिडिया टीम को अवसर देते नजर आयेंगे। ऐसे में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने देश में ‘शैडो कैबिनेट’ बनाने की मांग की है, अगर ऐसा होता है तो राहुल गांधी इस कैबिनेट के ‘शैडो प्रधानमंत्री’ कहलाएंगे। वैसे तो शैडो कैबिनेट का कॉन्सेप्ट ब्रिटेन का है, लेकिन भारत में इसकी मांग नई नहीं है। साल 2022 में तेलंगाना कांग्रेस की ओर से राज्य में शैडो कैबिनेट बनाने की मांग की गई थी। जैसा की नाम से भी प्रतीत होता है, शैडो कैबिनेट एक समानांतर कैबिनेट होता है जिसके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं होती है। शैडो कैबिनेट का काम होता है, सरकार के कामकाज पर नजर बनाए रखना और जहां भी कोई कमी या गड़बड़ी नजर आए उसे उजागर करना, उसके लिए आवाज उठाना।करीब-करीब वही काम जो विपक्ष का होता है लेकिन थोड़ा व्यवस्थित रूप में यानी सबकी स्पष्ट जिम्मेदार इस व्यवस्था में कोई ‘शैडो रक्षा मंत्री’ हो सकता है जो रक्षा मंत्रालय के कामकाज को देखे, कोई ‘शैडो वित्त मंत्री’ हो सकता है जो वित्त मंत्री के कामकाज की निगरानी करें। एक सुदृढ़ और मज़बूत लोकतंत्र के लिए अगर ऐसी व्यवस्था प्रतिपक्ष नेता करते हैं तो इससे जनता का पक्ष प्रबल होगा और अब तक हो रही तमाम असंवैधानिक कार्रवाई को रोका जा सकेगा। अभी तक सिर्फ प्रतिपक्ष का नेता ही इन गतिविधियों पर नज़र रखता है जब यह जिम्मेदारी अलग-अलग लोगों को सौंपी जाएगी तो निश्चित ही इस कार्य में गति आएगी और मनमानियां नहीं हो सकेगी।आज़ाद भारत में पहली बार होने जा रही इस अभिनव प्रणाली का स्वागत होना चाहिए। इंडिया गठबंधन मिलकर यदि यह निगरानी करता है तो सोने में सुहागा होगा।इससे यह गठबंधन मज़बूती के साथ खड़ा भी रहेगा और सभी दलों को महत्व भी मिलेगा।हम सब जानते हैं पिछले दस वर्षों के शासन में विपक्षी नेता ना होने के कारण देश की अर्थव्यवस्था , तमाम स्वायत्त संस्थाएं,शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण महकमे अपना अस्तित्व खो चुका था । अब देखना होगा कि 18वीं संसद के पक्ष विपक्ष दोनों मिलकर देश में पुनः मज़बूत लोकतांत्रिक व्यवस्था को अमलीजामा पहनाएंगे या राहुल गाँधी 2014 से 2019 वाली गलतियां दोहराएँगे !