देशभक्ति का पर्याय थे भारत की बात सुनाने वाले मनोजकुमार।

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डॉ. मुकेश “कबीर”।

 

 

                     स्मृति शेष

देशभक्ति का पर्याय थे भारत की बात सुनाने वाले मनोजकुमार।

जब मनोज कुमार शहीद फिल्म बनाने के लिए जानकारियां एकत्रित करने मंत्रालय गए तब तत्कालीन संचार मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि “आप शहीदों पर फिल्म बनाकर उनका मजाक क्यों उड़ाना चाहते हो,किसी और विषय पर फिल्म बना लो, फिल्में तो मनोरंजन का माध्यम हैं।” लेकिन जब शहीद फिल्म रिलीज हुई तो शास्त्रीजी भी इसे देखकर गदगद हो गए और मनोज कुमार को शाबाशी देते हुए बोले कि जय जवान जय किसान पर फिल्म बना सकोगे ? तब इस विषय पर मनोज जी ने कालजयी फिल्म उपकार बनाई । मनोज कुमार ने यह फिल्म इतनी बेहतरीन बनाई कि यह फिल्म न सिर्फ उस समय के सारे अवॉर्ड ले गई बल्कि आज भी यह फिल्म इतनी लोकप्रिय है कि इसके गानों के बिना हमारा गणतंत्र दिवस पूरा नहीं होता। सब जानते हैं कि मनोज कुमार बेहतरीन फिल्मकार थे उनको बेशक राजकपूर और गुरुदत्त की अंतिम कड़ी माना जा सकता है। बॉलीवुड में सिर्फ यह तीन हीरो ही हुए हैं जिन्हें सम्पूर्ण फिल्मकार कहा जा सकता है जो फिल्म निर्माण की हर विधा में माहिर थे। मनोज कुमार की फिल्मों में भारत और भारतीय समाज का गरिमापूर्ण महिमा मंडन हुआ है।आजादी के बाद उनकी फिल्मों ने प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका निभाई है। वे अपनी फिल्म के माध्यम से सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध भी इतने सॉफिस्टिकेड तरीके से करते थे कि लोगों तक संदेश भी पहुंच जाता था और फिल्म सेंसरशिप से भी बच जाती थी। उनकी फिल्मों में मंहगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे आज से पचास साल पहले उठा दिए गए थे और कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मशहूर इंदिरा गांधी सरकार भी उन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकी थीं क्योंकि वे सिर्फ फिल्मकार ही नहीं बल्कि भारत कुमार थे,वे देशभक्ति का पर्याय बन चुके थे तब किसी सरकार की हिम्मत नहीं थी भारत कुमार पर हाथ डालने की।

मनोज कुमार की फिल्मों में न सिर्फ देशभक्ति होती थी बल्कि सामाजिक संदेश भी होते थे साथ ही मनोरंजन भी भरपूर ,इसलिए उनके सिनेमा को सार्थक सिनेमा कहा जा सकता है। उन्हें चतुर फिल्मकार भी माना जा सकता है क्योंकि काफी एक्सपोजर देने के बाद भी वे अपनी फिल्म पर अश्लीलता का ठप्पा लगने से बचा ले जाते थे, इस मामले में वे राजकपूर जैसे थे बस फर्क यह था कि आखिर में मनोज जी देशभक्ति में पहुंच जाते थे तो राज कपूर फिलोसॉफी में। देशभक्ति ही उनकी रेसिपी रही और देशभक्ति ही उनकी ढाल भी रही वरना पूरब और पश्चिम जैसी फिल्म का सेंसर से पास होना मुश्किल था वह भी साठ के दशक में,भले ही यह फिल्म देश भक्ति के लिए जानी जाती है लेकिन यह ज्यादातर देखी गई थी बोल्ड सींस के कारण। यह वाकई में पूरब और पश्चिम का अद्भुत संगम थी जिसमें भजन भी था और कैबरे भी। संस्कारहीनता भी थी और फैमिली वैल्यूज भी,इस तरह का संतुलन बनाना आसान नहीं था लेकिन मनोज कुमार फिल्म माध्यम को अच्छे से समझ चुके थे इसलिए यह करिश्मा कर सके। उनकी समझ और विजन के दो उदाहरण देखे जा सकते हैं। एक फिल्म उपकार में प्राण को सकारात्मक रोल देना और दूसरा डॉन में खईके पान वाला गाना रखने का सुझाव देना,उनके दोनों प्रयोग सुपर हिट साबित हुए। जब प्राण को उपकार फिल्म में विलेन के बजाय एक सकारात्मक रोल दिया गया तो सभी ने मनोज जी का विरोध किया और जब प्राण के चरित्र पर “कसमें वादे” गाना फिल्माए जाने की इच्छा मनोज कुमार ने जताई तो उस वक्त वो हंसी का पात्र भी बने खासकर संगीतकार कल्याण जी ने कहा कि “आप तो नए डायरेक्टर हो, हमें भी नया बनाओगे”। बड़ी मुश्किल से कल्याणजी आनंदजी तैयार हुए प्राण के लिए गाना बनाने में लेकिन जब यह गाना प्राण पर फिल्माया और प्राण ने मलंग बाबा बनकर इसको पर्दे पर गाया तो ऐसा जादू छा गया कि आज तक वह जादू कायम है, यह गाना फिल्म में भी दो तीन बार दिखाया गया है अलग अलग सीक्वेंस में। इस गाने ने प्राण की इमेज को पूरी तरह बदलकर रख दिया तब उनका नाम ही मलंग बाबा हो गया था। उपकार के बाद प्राण विलेन के बजाए हर फिल्म में सकारात्मक भूमिका में आने लगे और उन पर गाने भी फिल्माए जाने लगे। इसी तरह जब डॉन फिल्म के डायरेक्टर चंद्रा बारोट ने रिलीज से पहले फिल्म मनोज कुमार को दिखाई तो मनोज जी ने कहा कि सब कुछ बेहतरीन है लेकिन आखिरी हिस्से में फिल्म कुछ बोझिल हो रही है इसलिए एक तड़कता फड़कता गाना डाल दो। चंद्रा बारोट के गुरु थे मनोज कुमार इसलिए चंद्रा जी ने गुरु की बात मानी और डॉन फिल्म में गाना डाल दिया खईके पान बनारस वाला, इसके आगे कुछ बताने की जरूरत नहीं कि क्या हुआ, डॉन फिल्म इस गाने के कारण ही ब्लॉक बस्टर साबित हुई। मनोज कुमार के इसी विजन के कारण एक समय उनकी फिल्में सफलता की गारंटी मानी जाती थीं इसलिए उन्होंने सुपर हिट फिल्मों की झड़ी लगाई। हालांकि बाद के वर्षों में उनकी फिल्में ज्यादा नहीं चलीं क्योंकि तब सिनेमा बदलने लगा था और बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड की एंट्री भी खुले तौर पर हो चुकी थी और फिल्म निर्माण बहुत महंगा हो चुका था साथ ही फिल्में कला के बजाय प्रोडक्ट का रूप ले चुकी थीं इसलिए बाद के वर्षों में मनोज जी पिछड़ से गए थे फिर भी उन्होंने अपने स्तर पर फिल्में बनाना जारी रखा,हालांकि वो फिल्मों में बढ़ते खर्चे से दुखी भी थे। एक बार उन्होंने कहा भी था कि “मुझे समझ नहीं आता कि निर्माता इतना पैसा लाते कहां से हैं, जितना पैसा हमने सारी फिल्मों में लगाया उतना तो आज एक फिल्म बनाने में लगता है फिर फिल्में कैसे बनाएंगे हम?” लेकिन फिर भी मनोज कुमार थे तो कर्मयोगी इसलिए उन्होंने फिल्म निर्माण बंद नहीं किया, जयहिंद के बाद वे अगली फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख चुके थे लेकिन तब तक उनकी तबियत जवाब दे चुकी थी, बीमारी ने उनको काफी कमजोर किया और अब उनकी मृत्यु ने तो फिल्म निर्माण की संभावना को पूरी तरह समाप्त ही कर दिया लेकिन उनकी पुरानी फिल्में ही इतनी बेहतरीन हैं कि मनोज जी पहले ही अमर हो चुके हैं। फिल्मों में जब भी भारत की बात चलेगी तो भारत कुमार की बात जरूर चलेगी, जब तक भारत में खेत रहेंगे तब तक सबको याद आएगा मेरे देश की धरती सोना उगले और जब तक देश में प्रजातंत्र है तब तक हर साल मनोज जी गाते रहेंगे “भारत का रहने वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं”..।  (विनायक फीचर्स)

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