दिनेश शास्त्री, देहरादून।
केदारनाथ की आशा ने धामी को दी संजीवनी।
बदरीनाथ और मंगलौर की जीत के बाद उत्साह से लबरेज कांग्रेस को केदारनाथ में आशा नौटियाल ने धूल चटा दी।
अब नतीजा आ चुका है। बहस, आरोप – प्रत्यारोप भी होंगे और पराजय के कारणों की समीक्षा भी लेकिन जो इबारत केदारनाथ के मतदाताओं ने लिखी है, उसके दूरगामी नतीजे देश की राजनीति में निकट भविष्य में देखने को मिल सकते हैं। बहुत संभव है ठीक हमारे पड़ोस में एक और राज्य भगवामय अगले कुछ दिन में नजर आए। बताते हैं वहां संतन के पैर पड़ चुके हैं और संसद के शीतकालीन सत्र के बाद कुछ नया देखने को मिले। खैर यह अभी दूर की कौड़ी है, तात्कालिक विषय यह है कि जिस तरह से नेरेटिव केदारनाथ को लेकर गढ़ा जा रहा था, वह ध्वस्त हो गया। इसमें दो राय नहीं कि केदारनाथ का उपचुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। इस समर में आशा ने न सिर्फ लाजवाब प्रदर्शन किया बल्कि सत्ता विरोधी रुझान की तमाम अटकलों को भी खारिज कर दिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में तब इस सीट पर भाजपा को महज 36.04 फीसद वोट मिले थे, आशा ने वह आंकड़ा 43.22 फीसद तक पहुंचा दिया। निसंदेह भाजपा का पूरा तंत्र इस जीत के लिए जुटा था लेकिन आखिर सेहरा तो आशा के सिर ही बंधा है। वैसे रणनीति के लिहाज से रुद्रप्रयाग जिले के प्रभारी मंत्री सौरभ बहुगुणा के लिए भी यह उपचुनाव अग्निपरीक्षा से कम न था लेकिन संजीवनी धामी के लिए सिद्ध हुआ है। राजनीतिक हलकों में एक धारणा बनाई जा रही थी कि केदारनाथ में पराजय के बाद धामी की विदाई का गीत सुनाई देगा, अब उन लोगों के मुंह पर ताले लग गए हैं। धामी ने अपनी नेतृत्व क्षमता को इस उपचुनाव से सिद्ध कर दिया।
कांग्रेस के लिए राहत सिर्फ इतनी है कि 2022 के चुनाव में मनोज रावत 12557 मत लेकर तीसरे स्थान पर रह गए थे, इस बार वह 18191 मतों के साथ दूसरे स्थान पर आए हैं और वोट प्रतिशत भी 20.68 से बढ़ कर 33.69 प्रतिशत हो गया है। कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत के हिस्से में यही एक उपलब्धि गिनी जा सकती है, जबकि इस बार कांग्रेस ने ज्यादा संगठित और व्यवस्थित होकर चुनाव लड़ा था, यहां तक कि बदरीनाथ से ज्यादा दमखम केदारनाथ में लगाया था। इसके लिए केदारनाथ प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा तक निकाली गई थी लेकिन कदाचित जुलाई में जब बाबा केदार ने कांग्रेस की राह रोकी तो वहीं से संकेत मिल गया था कि यहां कांग्रेस की दाल गलने वाली नहीं है। भाजपा को आरोपों के कठघरे में खड़ा करने में कांग्रेस ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी। यात्रा डायवर्ट करने, सोने का पीतल बन जाना और तमाम तरह के आरोपों की झड़ी लगाने के बाद भी अगर मतदाता ने उसे खारिज किया तो यह उसके लिए आत्ममंथन का विषय है।
राजनीति पर नजर रखने वाले बता रहे हैं कि कांग्रेस की पराजय की पटकथा उसी दिन लिख दी गई थी जब उसके एक कद्दावर नेता ने बयान दिया था कि भाजपा के कुछ नेता सीएम के विरुद्ध लामबंदी कर रहे हैं। यह बयान टर्निंग पॉइंट बना। भाजपाइयों को भी लगा कि अगर इस समय बंट गए तो अगली बार कटना तय है। इस कारण तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद वे एकजुट हुए लेकिन इसमें बड़ी भागीदारी केदारनाथ क्षेत्र की जनता की रही।
इस चुनाव में तीसरा ध्रुव त्रिभुवन चौहान के रूप में उभरा। मात्र तीन महीने पहले क्षेत्र में सक्रिय हुआ एक नौजवान बेहद सीमित संसाधनों के साथ मैदान में उतरा और दस हजार के करीब वोट बटोर ले गया। यानी पूरे 17.32 प्रतिशत वोट। यह आंकड़ा आसान नहीं है। राज्य गठन में सर्वाधिक योगदान देने वाली पार्टी यूकेडी मात्र ढाई फीसद वोट पर अटकी है तो यह उसके लिए अफसोस की ही बात है।
केदारनाथ सीट पर इस बार बेहद कम मतदान हुआ था। 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां 65 फीसद के करीब वोट पड़े थे। इस उपचुनाव में यह आंकड़ा घट कर 58.89 फीसद पर आ गया। उस समय कुलदीप रावत 13423, सुमंत तिवारी 4647 और देवेश नौटियाल ने 3068 वोट हासिल किए थे। इन तीनों के वोट जोड़ दें तो यह आंकड़ा 21138 बनता है और तब बीजेपी की शैलारानी रावत 21886 वोट लेकर जीती थी। अब कुलदीप बीजेपी में हैं। शैलारानी की बेटी भी बीजेपी में। उस लिहाज से देखें तो यह आंकड़ा 45 हजार से ऊपर होना चाहिए था लेकिन राजनीति में हमेशा दो जमा दो चार नहीं होता, यहां केमेस्ट्री और ज्यामिति चलती है। लिहाजा उस विषय पर माथापच्ची करने का कोई औचित्य नहीं है।
निष्कर्ष यह कि आशा भाजपा के लिए न सिर्फ संजीवनी लेकर उभरी बल्कि विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद एक सशक्त योद्धा बनी हैं। काल भैरव अष्टमी के दिन आए चुनाव परिणाम ने आशा नौटियाल को एक वीरांगना के रूप में भी निरूपित किया है। आज से ठीक एक पखवाड़े पूर्व ज्योतिष में खासा दखल रखने वाले एक पत्रकार साथी ने कहा था कि आशा नौटियाल साढ़े पांच हजार वोटों के अंतर से जीतेंगी, उस समय चुनाव चल रहा था और यह बात मैंने गांठ बांध ली थी। आज सुबह मतगणना शुरू हुई तो मैंने उसे फिर टटोला, उसने अपनी बात दोहराते हुए कहा था कि क्या उसकी भविष्यवाणी पर संदेह है? हालांकि इस चुनाव में उस साथी का समर्थन त्रिभुवन चौहान के साथ था लेकिन 2007 से लेकर आज तक उसकी जितनी भी गणनाएं मैंने देखी, वे अक्षरशः सच साबित हुई तो लगा कि उत्तराखंड में ज्योतिष सिर्फ वाग़विलाश का विषय नहीं। बल्कि एक विज्ञान के रूप में मौजूद है जिस तरह अतीत में पूरे वैभव के साथ चर्चित था, जब महाराज होल्कर गढ़वाल नरेश से एक ज्योतिषी मांग कर इंदौर ले गए थे और उन्होंने वहां अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। हालांकि यह विषयांतर है किंतु केदारनाथ के नतीजे के संदर्भ में मुझे यह समीचीन लगा।