भाजपा के हिंदुत्व पर भारी पड़ा झारखंड मुक्ति मोर्चा का आदिवासी कार्ड। 

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कुमार कृष्णन।

भाजपा के हिंदुत्व पर भारी पड़ा झारखंड मुक्ति मोर्चा का आदिवासी कार्ड। 

वनाच्छादित, खनिज संपदा से भरपूर और आदिवासी बहुल झारखंड के अब तक के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका है, जब जनता ने लगातार दूसरी बार किसी दल को सत्तासीन होने का जनादेश दिया है। यहां इंडिया गठबंधन ने 81 सीटों में से 56 सीटें जीतीं, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 24 सीटों पर सिमट गया । मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सबसे अधिक सीटें (34) हासिल कीं, जबकि कांग्रेस ने 16, राष्ट्रीय जनता दल ने 4 और सीपीआई (एमएल) ने 2 सीटें जीतीं। वहीं, दूसरी तरफ तीन सीट के नुकसान के साथ भाजपा ने 21, दो के नुकसान के साथ एजेएसयू ने एक सीट हासिल की। पहली बार एक सीट जेडीयू के खाते में गई। इनके अन्य सहयोगियों को भी दो सीटों का नुकसान हुआ, उन्हें केवल एक सीट मिली।वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2019 में झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा को 30, भाजपा को 25, कांग्रेस को 16, जेवीएम को तीन तथा एजेएसयू को दो और आरजेडी को एक सीट मिली थी।झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार से मुलाकात के बाद हेमंत सोरेन सरकार बनाने का दावा पेश कर चुके हैंं। 28 नवंबर को नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह होगा।

इस चुनाव में हाल के वर्षों में राजनीति व पूंजीपतियों के नये उभरे समीकरण के चलते इस क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी। इस बार भाजपा पूरे जोश के साथ झारखंड का चुनाव जीतने के लिये वैसी ही आमादा दिखी,जैसी वह छत्तीसगढ़ और ओडिशा में थी जहां उसने जीत दर्ज करने के लिये सारे पैंतरे लगाये और सफलता पायी थी। झारखंड में आदिवासी वोट निर्णायक होते हैं। झारखंड में एक तिहाई से ज्यादा (28) अनुसूचित जनजाति सीटें हैं। आबादी का 26% हिस्सा आदिवासी है। 21सीटों में आदिवासियों की आबादी कम से कम एक लाख है। इन सीटों पर झामुमो की अच्छी पकड़ है। भाजपा इसे तोड़ने में सफल नहीं रही। इस बार झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह, अमित शाह ने 16, योगी आदित्यनाथ ने 14 सभाएं कीं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने तो झारखंड में ही डेरा डाल रखा था।

भाजपा के कई धुरंधर नेताओं ने झारखंड में धुआंधार प्रचार किया। संथाल परगना क्षेत्र में घुसपैठ को लेकर भाजपा काफी आक्रामक रही। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि झारखंड में भाजपा की सरकार बनाइए, घुसपैठियों को उल्टा लटका देंगे। उन्होंने घुसपैठियों को ही झारखंड मुक्ति मोर्चा , राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का वोट बैंक बताया। जमशेदपुर में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वोट और तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले घुसपैठियों को संरक्षण दे रहे हैं। उन्होंने चंपई सोरेन और सीता सोरेन के अपमान को आदिवासियों का अपमान बताया।

भाजपा ने “बंटोगे तो कटोगे” का नारा देकर घुसपैठ की चर्चा करते हुए हिंदुत्व कार्ड खेला। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए नारे बंटोगे तो कटोगे को भाजपा के नेताओं ने इस चुनाव में खूब उछाला। यह नारा बीजेपी के लिए नुकसानदेह ही साबित हुआ। वहीं, इंडिया गठबंधन की तरफ से राहुल गांधी की छह सभाओं के अलावा लगभग पूरा जोर हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने ही लगाया।

पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने स्टार प्रचारक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, उन्होंनें पचीस दिनों तक यहां कैंप कर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के पक्ष में धुआँधार प्रचार किया,तो हेमंत सोरेन ने पूरी ईमानदारी से गठबंधन धर्म का पालन किया ।

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी योजनाओं की चर्चा के साथ आदिवासी कार्ड खेला। झारखंड मुक्ति मोर्चा का आदिवासी कार्ड भाजपा के हिंदुत्व कार्ड पर भारी पड़ गया। आदिवासियों का भरोसा गुरुजी शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन पर ही रहा। झारखंड में हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति भी काफी प्रभावी रहा। हेमंत सोरेन अपने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह संदेश देने की कोशिश करते रहे कि आदिवासी चेहरे को कुचलने के लिए किस तरह उन्हें गलत तरीके से जेल में डाला गया। इसमें वे कामयाब भी रहे। कई विधानसभा सीट पर 40 प्रतिशत से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। वे एकजुट होकर उनके पक्ष में खड़े हो गए। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सामने आईं और जहां-जहां गईं, वहां उन्होंने पति के साथ ज्यादती की बात समझाने की कोशिश की। चुनाव प्रचार के दौरान मंईयां सम्मान योजना की राशि दो हजार से बढ़ाकर प्रतिमाह 2,500 रुपये करने की चर्चा भी उन्होंने खूब की। कल्पना ने सरना धर्म कोड की भी बात की और यह भी कहा कि बीजेपी ने नेता बाहर के हैं, वे हमारी भाषा-संस्कृति तक नहीं जानते। ये भला हमारे लिए क्या नीतियां बनाएंगे। अपने सहज व सरल अंदाज से खासकर महिलाओं से संवाद करने में वे सफल रहीं। वे गांडेय सीट से चुनी गई हैं। महिलाओं की कल्याणकारी योजनाओं का भी असर झारखंड मुक्ति मोर्चा के पक्ष में गया। बेरोजगार महिलाओं के लिए मासिक सहायता, स्कूली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, अकेली महिलाओं को नकद सहायता जैसी योजनाओं ने आदिवासी और कमजोर वर्ग की महिलाओं को झारखंड मुक्ति मोर्चा के पाले में लाने का काम तो किया ही, इसके साथ मंईयां सम्मान योजना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं को सालाना 12,000 रुपये देने वाली इस योजना तथा सर्वजन पेंशन योजना ने हेमंत के पक्ष में संजीवनी का काम किया। फिलहाल झारखंड की करीब पचास लाख से अधिक महिलाओं को मंईयां सम्मान योजना के तहत 2,000 रुपये प्रतिमाह की मदद दी जा रही है। चुनाव के पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया था।जबकि, गोगो दीदी योजना के तहत भाजपा ने 2,100 रुपये प्रतिमाह देने का वायदा किया था। बिजली बिल माफ करना भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए फायदेमंद साबित हुआ। सरकार बनने पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने का भी वादा किया गया।

आदिवासियों की भाजपा से नाराज़गी की कई वजहें रहीं। पहली यह कि वे जानते हैं कि भाजपा की नज़रें यहां की खनिज-सम्पन्न ज़मीनों और जंगलों पर हैं जिन्हें वह अपने कारोबारी मित्रों को देना चाहती है। फिर, जब यहां भाजपा शासन था और रघुबर दास मुख्यमंत्री थे, उस दौरान 2016 में छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम और संथाल परगना अधिनियम में बदलाव की कोशिशें की गयीं जिनका सीधा नुकसान आदिवासियों को होने वाला था। सितंबर 2012 में बनी झारखंड सरकार की ऊर्जा नीति अक्टूबर 2016 में बदल दी गई।

इसके प्रावधानों में मामूली संशोधन किए गए और रघुवर दास की कैबिनेट ने उस पर मुहर लगा दी। इससे पहले झारखंड की भाजपा सरकार ने कोई सर्वे नहीं कराया और न किसी विशेषज्ञ कमेटी ने उसे ऐसा करने की सलाह दी। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार ने अपनी ऊर्जा नीति एक समूह को फ़ायदा पहुंचाने के लिए बदल दी।”सरकार ने कई स्तरों पर गड़बड़ी की,न केवल ऊर्जा नीति बदली बल्कि जमीन की कीमत के निर्धारण, जनसुनवाई और पर्यावरण सुनवाई में भी फर्जीवाड़ा किया गया। एनटीपीसी, डीवीसी (दामोदर घाटी निगम) और नेशनल ग्रिड से तो सरकार बिजली खरीदती ही है। अदाणी समूह के झारखंड से बाहर स्थित प्लांट से 400 मेगावॉट बिजली खरीदने से भी सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा। ये भाजपा के नकारात्मक पक्ष थे।

चुनाव में आदिवासियों के वोट लेने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह समेत सारी भाजपा उन्हें यह कहकर डराती रही कि कांग्रेस-झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार आई तो उनकी जमीनें ‘घुसपैठिये’ हड़प लेंगे। यह डर झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल के आदिवासियों को भी दिखाया जाता रहा । भाजपा के अनुसार ये बांग्लादेशी घुसपैठिये होंगे। उसका दावा है कि भाजपा की सरकार बनी तो आदिवासियों की ज़मीनों को हड़पने से रोकने के लिये कानून लाया जायेगा; जबकि आदिवासी जानते हैं कि उपरोक्त उल्लिखित दोनों अधिनियम इस मामले में पर्याप्त सक्षम है इसलिये इन इलाकों में भाजपा की सभाएं भी फीकी रहीं।

घुसपैठ का डर दिखाकर भाजपा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का पुराना खेला कर रही थी ताकि हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खेला जा सके, तो वहीं वह आदिवासियों को हिन्दू बतलाकर उसे वैमनस्य के खेल में एक पार्टी बना रही है। अमित शाह ने सरायकेला विधानसभा के आदित्यपुर की सभा में कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा -कांग्रेस की सरकार आदिवासियों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने जा रही है।’ उनके अनुसार भाजपा ऐसा नहीं होने देगी। चंपई सोरेन के प्रति सम्मान दिखाकर आदिवासियों के वोट पाने का भी प्रयास भाजपा ने किया तभी तो शाह कह रहे थे कि ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चंपई सोरेन का अपमान किया है।

यहां धुव्रीकरण की कोशिशों के साथ साथ अब केन्द्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी भी हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता गणेश चौधरी पर आयकर का जो छापा पड़ा बकौल कल्पना सोरेन ‘चंपई सोरेन के इशारे पर हो रहा है।’ रांची, जमशेदपुर, गिरिडीह में ये छापे मारे गये जिसका मकसद झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े लोगों को डराना था। सोरेन सरकार में मंत्री मिथिलेश ठाकुर, उनके भाई विनय और सचिव हरेन्द्र सिंह के ठिकानों पर अक्टूबर के मध्य में ही ईडी द्वारा छापेमारी हुई थी। इसके बावजूद हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति लहर रही जिन्हें जेल में डालना यहां के लोगों के लिये ‘झारखंडी अस्मिता पर हमला’ था। स्पष्टतः भाजपा एक तरफ़ आदिवासियों को मुस्लिमों का डर दिखाकर वोट लेना चाहती थी, तो वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा नेताओं को छापों से डराकर चुनाव जीतने के हथकंडे अपनाए, जो नाकाम रहे।

जिस संथाल परगना क्षेत्र के लिए बंटोगे तो कटोगे का नारा गढ़ा गया, वहां की 18 सीट में से केवल एक जरमुंडी सीट बीजेपी जीत पाई। हिंदू वोटरों को एकजुट करने के लिए दिए गए इस नारे ने मुस्लिमों का ध्रुवीकरण कर दिया और उन्होंने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान कर दिया।

‘माटी पुत्रों की पार्टी’ वाली छवि के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का इस पर बोलबाला है। वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर बने इस प्रदेश का प्रारम्भिक इतिहास राजनैतिक अस्थिरता तथा व्यापक भ्रष्टाचार का रहा लेकिन पिछले 5 वर्षों के दौरान हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री के रूप में न केवल स्थिरता दी बल्कि जमीनी स्तर पर भी जमकर काम किया। आदिवासियों के उत्थान हेतु वे बतौर मुख्यमंत्री बेहद सक्रिय रहे। राज्य के सर्वांगीण विकास के अलावा वे जल, जंगल व जमीन पर स्थानीयों के हकों की लड़ाई लड़ते रहे। इसलिये वे भाजपा की आंखों में खटकते रहे। उन्होंने इस राज्य में भाजपा का ‘ऑपरेशन लोटस’ नाकाम कर दिया। कथित जमीन घोटाले में जब उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से छापे डलवाकर कई माह तक जेलों की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था, तब उनकी जगह पर बिठाये गये चंपई सोरेन के जरिये भाजपा ने सरकार गिराने की कोशिश की। जेल से बाहर आने पर जब उन्होंने अपना पद वापस सम्हाला तो चंपई सोरेन ने अपने कथित अपमान से नाराज़ होकर दल छोड़ दिया। फिर वे भाजपा में चले गये जहां हेमंत की भाभी सीता सोरेन पहले से आ चुकी थीं। इनके जरिये सरकार गिराने की भाजपायी कोशिशें भी नाकाम रहीं।

हेमंत सोरेन की यह जीत आदिवासीयत की एक बहुत बड़ी जीत है। उनके खिलाफ इडी, सीबीआई, मोदी, शाह, शिवराज, हेमंता, योगी सहित न जाने कितने दिग्गज नेता लगे थे। अब इस बड़ी जीत को हेमंत सोरेन को भरपूर सम्मान देना होगा, जनता की आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होगा और भाजपा को इस हार को विनम्रता से स्वीकार करना होगा।  (विनायक फीचर्स)

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