2025 में भारतीय विदेश नीति।

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ब्यूरो छत्तीसगढ़ः सुनील चिंचोलकर।

 

              2025 में भारतीय विदेश नीति।

लेखक- संजय सौंधी, उपसचिव,

(भूमि एवं भवन विभाग)

दिल्ली सरकार।

हाल के वर्षों में भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ सहज संबंध नहीं रहे हैं। पाकिस्तान, चीन, मालदीव, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश से आपसी संबंधों में कदुवाहट आई हैं। हालाँकि बांग्लादेश इसका अपवाद हुआ करता था लेकिन शेख हसीना के सत्ताच्युत होने से अब बांग्लादेश के साथ भी आपसी संबंध सामान्य नहीं रहे। भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों में चीन का बढ़ता हुआ प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। इससे भारतीय विदेश नीति के समक्ष वर्ष 2025 में कई नई चुनौतियाँ हैं, तो साथ ही नई पहल करने के अवसर भी हैं।

2024 में मालदीव, नेपाल और श्रीलंका में ऐसी सरकारें स्थापित हुई जिनका झुकाव चीन की ओर अधिक हैं। इन देशों में वर्तमान सत्तासीन पार्टियाँ सामान्यत: भारत विरोधी मानी जाती रही हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति दिशानायके अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए, उन्होंने संबंधों को सामान्य बनाने पर जोर तो दिया लेकिन वे भारत द्वारा चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं की पुनर्समीक्षा पर अडिग रहे। भारत ने श्रीलंका द्वारा अपने तट पर एक चीनी अनुसंधान जहाज़ को एक वर्ष और रुकने की अनुमति देने पर नाराजगी व्यक्त की। मालदीव के राष्ट्रपति मोइजू का भी भारत आगमन हुआ। मोईजू ने चुनाव प्रचार में भारत विरोध को अपना मुख्य मुद्दा बनाया था। मोइजु की भारत यात्रा के दौरान भारत सरकार ने मालदीव को 75 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय की सुविधा प्रदान कर मालदीव को अपने आर्थिक संकट पर काबू पाने में सहयोग दिया। इसके साथ ही भारत ने मालदीव से अपने सैनिक पूरी तरह से बुला लेने का भी निर्णय लिया हैं। नेपाल में भी भारत विरोधी रूख अपनाने वाले कम्युनिस्ट नेता के श्री ओली पुन: प्रधानमंत्री बन गए हैं। श्री ओली ने भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर हमेशा कड़ा रूख इख्तियार किया हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ताच्युत होने से वहाँ भारत की विभिन्न कंपनियों के द्वारा चलाई जा रहीं परियोजनाओं की पुन:र परीक्षा व हिन्दुओं पर होने वाले आक्रमणों ने स्थितियों को नकारात्मक रूप दिया हैं।

10 वर्षों की पाकिस्तान बायकोट की नीति को छोड़ते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2024 में ‘संघाई सहयोग संगठन सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए पाकिस्तान का दौरा किया। भूटान के राजा ‘वांगचुक’ ने पिछले वर्ष भारत का दौरा किया। भारत के लिए चिंता का विषय ये हैं कि भूटान चीन के साथ डोकलांग मुद्दे पर भूमि के आदानप्रदान पर विचार कर रहा हैं। हालाँकि भारत ने भूटान में गेल्फु सिटी के विकास के लिए वित्तीय सहायता जारी रखने का भरोसा दिलाया हैं। मई जून 2020 से प्रारंभ हुए पूर्वी लद्धाख सीमा विवाद का संतोषजनक समाधान चीन के साथ हुए एक समझौते के साथ पिछले वर्ष हुआ।

अफगानिस्तान के लिए भारतीय दूत जेपी सिंह ने पिछले वर्ष तालिबान के मुखिया मुल्ला मोहम्मद याकूब से बातचीत की और भारत में अफगानिस्तान के काऊंसिल जनरल का कार्यालय आरम्भ हुआ।

इस प्रकार भारत के कुछ पड़ोसी देशों के साथ संबंध में तल्खी आई हैं और कुछ देशों के साथ संबंध सामान्य बनते प्रतीत हो रहे है। भारत को अपनी विदेश नीति को अत्यधिक सावधानी से अमल में लाना होगा। क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों यथा पकिस्तान और चीन प्राय: भारत के लिए समस्या उत्पन्न करते रहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि अन्य पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते हुए प्रभाव की रोकथाम के लिए भारत विभिन्न परियोजनाओं के संबंध में अपनी वचन बद्द्ता पर कायम रहे और इन देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखे।

भारत को बांग्लादेश के संबंध में बहुत सोच समझ कर कार्य करने की आवश्यकता है। कठोर यथार्थता के धरातल पर आकर राष्ट्रीय हितों को सर्वोचता प्रदान करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए पहल की जानी चाहिए। केवल भावनाओं के आधार पर कार्य करना उचित प्रतीत नहीं होता हैं। यहाँ यह भी तथ्य उल्लेखनीय हैं कि आगामी 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प अपनी सत्ता संभालेंगे। वे चीन पर लगाम लगाने के लिए कुछ ठोस कदम अवश्य उठाएंगे। भारत को इस स्थिति का लाभ उठा कर अमेरिका के साथ मिलकर चीन के सापेक्ष इंडो पेसेफिक क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहिए और चीन के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने हेतु प्रयास करने चाहिए। कुल मिला कर भारतीय विदेश नीति के समक्ष नई परिस्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जिनमें वह अपने अधिकतर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सहज़ बना कर दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को साध सकता हैं।

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