योग से संभव है शारीरिक और मानसिक उत्थान , निरंतर करें योगा

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“नया अध्याय”/ ब्यूरो: पंकज कुमार मिश्रा 

        योग से संभव है शारीरिक और मानसिक उत्थान ,                             निरंतर करें योगा।

             वाराणसी : योगा एक स्वास्थ्यकारी एवं परिवर्तनकारी अभ्यास है, जो मन और शरीर के सामंजस्य, विचार और क्रिया के बीच संतुलन और आत्मीय संयम की संस्तुति करता है। योग शरीर को मन से और आत्मा को एकाग्रता से एकीकृत कराता है, योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र लाभ प्रदान करता है जो हमारे व्यस्त जीवन के लिए अतिआवश्यक है। वेदो और धर्मग्रंथो के अनुसार योग हमारी प्राचीनतम विरासत है जिसके क्रियात्मक अभ्यासों को करने से शरीर में रक्त और प्राण वायु का संचरण बहुत ही सुगमता से होता है जिससे व्यक्ति के सभी तंत्र स्वस्थ रहते है। अनुलोम विलोम, सूर्य नमस्कार, प्रणायाम, ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिकोणासन, पादहस्तासन, उष्ट्रासन का अभ्यास करते हुए उनसे मनोदैहिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों को समझा जा सकता है । डायबिटीज़, कब्ज़ और मोटापा जैसी समस्याओं के समाधान के लिए सूर्य-नमस्कार का अभ्यास बेहद लाभकारी होता है। योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। ‘योग’ शब्द संस्कृत से लिया गया है और इसका अर्थ है जुड़ना या एकजुट होना, जो शरीर और चेतना के मिलन का प्रतीक है। इस दशम् अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर अभ्यास करते हुए काशी के लोकप्रिय संस्था ब्रह्मराष्ट्र एकम के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सचिन सनातनी ने कहा कि योग के ये विभिन्न प्रकार के आसन, व्यायाम स्वास्थ्य वर्धक होते है । दिल्ली में कार्यरत वाराणसी की युवा समाजसेवी उपेंद्र मिश्र ने कहा कि योग दिवस एक सार्वजनिक आयोजन है, योग अभ्यास पर आधारित है। नियमित योगा और अभ्यास के साथ ध्यान और प्राणायामों का अभ्यास करते रहें। मछलीशहर शिक्षक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष और भाजपा नेता सुरेंद्र पाठक ने कहा कि प्राणायाम इत्यादि के अभ्यास से शरीर के सभी तंत्र स्वस्थ्य रहते है तथा एक साथ सकुशल कार्य करते हैं। जनपद के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा ने कहा कि योग में परिवर्तन करने की अपार शक्ति है जिसका हमें नित प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। एक विशेष दिन 21 जून को हम योग करके समाज को सन्देश देते हैं। हमें अपनी आहारचर्या और दिनचर्या को संतुलित रखने के लिए योग निरंतर करना चाहिए। दशम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व इन सभी ने योग का पूर्वाभ्यास भी किया। आज योग विश्व भर में विभिन्न रूपों में प्रचलित है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ रही है। योग को वैश्विक मान्यता देते हुए, 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र ने अधिकार 69/131 के तहत 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उद्देश्य योग अभ्यास के अनेक लाभों के बारे में विश्व भर में जागरूकता बढ़ाना है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना के लिए मसौदा प्रस्ताव भारत द्वारा प्रस्तावित किया गया था और रिकॉर्ड 175 सदस्य देशों द्वारा इसका समर्थन किया गया था। इस प्रस्ताव को सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महासभा के 69वें सत्र के उद्घाटन के दौरान अपने संबोधन में पेश किया था, जिसमें उन्होंने कहा था: “योग हमारी प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। योग मन और शरीर, विचार और क्रिया की एकता का प्रतीक है … एक समग्र दृष्टिकोण [जो] हमारे स्वास्थ्य और हमारे कल्याण के लिए मूल्यवान है। योग केवल व्यायाम के बारे में नहीं है; यह खुद, दुनिया और प्रकृति के साथ एकता की भावना को खोजने का एक तरीका है। क्षेत्रीय आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी डॉ कमल और होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी डॉ सुजीत श्रीवास्तव द्वारा बताया गया की ग़लत खान पान और अनियमित दिनचर्या के कारण ही लाइफस्टाइल डिसीज का प्रसार बहुत ही तीव्रता के साथ बढ़ रहा है।

इसलिए अपनी आहारचर्या और दिनचर्या को संतुलित करके स्वयं के परिवार को पूर्णतः स्वस्थ रखा जा सकता है। नियमित करें ध्यान और प्राणायामों का अभ्यास करें। पतंजलि योग समिति उत्तर प्रदेश के सह राज्य प्रभारी ने योग प्रशिक्षकों को योगाभ्यास कराते हुए बताया कि अष्टांग योग का पूर्णतः अनुपालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमित रूप से ध्यान और प्राणायामों का अभ्यास करते रहना चाहिए। क्षेत्रीय आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी डॉ कमल ने बताया की योग कि ऐसी प्रक्रियाओं के अभ्यासों से व्यक्ति के भीतर अंतर्निहित शक्तियों का पूर्णतः विकास होना शुरू हो जाता है। योग के क्रियात्मक अभ्यासों के कारण योग पूर्णतः विशुद्ध रूप से विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है। इसलिए जब तक पूर्णतः सही और नियमित ढंग से योगाभ्यास नहीं किया जायेगा तब तक योग से अपेक्षित लाभ नहीं मिल सकता है। इसलिए योग के मौलिक सिद्धांतों के अनुसार ही इसके क्रियात्मक और सैद्धांतिक सिद्धांतो का अनुपालन अति आवश्यक होता है। श्वासोच्छवास पर नियन्त्रण ही मन, चित्त, चेतना और विचारों को सकारात्मक दिशा में बढ़ाता है। इसलिए लम्बे समय तक प्राणायामों का अभ्यास अति आवश्यक होता है। प्राणायामों के मार्ग से ही ध्यान तक पहुंचना आसान होता है।

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