गुरुदीन वर्मा (जी.आजाद)
शिक्षक एवं साहित्यकार
बारां(राजस्थान)
नहीं फुरसत हमें इतनी
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नहीं फुरसत हमें इतनी, तलाशें हम यहाँ उसको, जिसे हमराज बनायें।
नहीं सोचा कभी ऐसा, कहाँ है मीत वह अपना, जिसे हमराह बनायें।।
नहीं फुरसत हमें इतनी——————-।।
मिला था एक हमको ऐसा, जिसको चाहा था इतना।
किया कुर्बान जिसपे सब कुछ, मानकर ख्वाब उसे अपना।।
बहाया बहुत लहू मेरा, जुदा वह हो गया हमसे, करके हमको वह बदनाम।
नहीं मालूम कहाँ है वह, तलाशें जिसको हम जाकर, जिसे हमदर्द बनायें।।
नहीं फुरसत हमें इतनी——————-।।
और फिर जो मिला हमको, उसको भी प्यारी थी दौलत।
अहम था उसको सूरत का, उसके आशिक थे बहुत।।
हमारे तन से वह खेला, हमें खिलौना बनाकर, तोड़ दिया यह दिल मेरा।
नहीं हमको पसंद ऐसे, रूठना- रोना यूँ उसका, कैसे हम उसको मनायें।।
नहीं फुरसत हमें इतनी——————–।।
किसको हम मानें यहाँ अपना, करें विश्वास हम जिस पर।
जिसको हम बांधे बंधन में, निभायें साथ जीवनभर।।
हमें लगता है डर यह भी, उसका क्या ख्वाब होगा, कितना हमसे खुश होगा।
गुलामी हमको नहीं पसंद, हमें रहने दो जी.आज़ाद, नहीं जंजीर हमें चाहिए।।
नहीं फुरसत हमें इतनी———————-।।