कुमार कृष्णन।
धनुषाधाम : जहां आज भी पूजा जाता है सीता स्वयंवर का टूटा धनुष।
धनुषा नेपाल का प्रमुख जिला है जो ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। दरअसल ये भारतीय संस्कृति के उस संधिकाल का प्रतीक है जब विष्णु के एक अवतार परशुराम और उनके बाद के अवतार श्री राम का परस्पर मिलन हुआ था। धनुषाधाम में आज भी पिनाक धनुष के अवशेष मौजूद है। जनकपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धनुषा में वह मंदिर स्थित है,जहां शिव धनुष की पूजा-अर्चना की जाती है। यह स्थान भारत नेपाल सीमा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है।
यह नेपाल में हिंदू पूजा का एक धार्मिक स्थान है। ऐसा माना जाता है कि सीता स्वयंवर के दौरान राम द्वारा तोड़े गये शिव धनुष का एक हिस्सा यहां रखा गया है। अब धनुष के शेष भाग के आसपास मंदिर है और दुनिया भर से हिंदू श्रद्धालु यहां आते हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मिथिला नरेश राजा जनक जी ने प्रतिज्ञा की थी कि वह सीता जी का विवाह उसी पुरुष से करेंगे जो इस शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा। तब भगवान राम ने सीता स्वयंवर के दौरान शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी थी, लेकिन प्रत्यंचा चढ़ाते समय ही शिव धनुष के तीन टुकड़े हो गए थे। शिव धनुष का दाहिना भाग आकाश पहुंच गया। एक भाग भारत के तमिलनाडु के रामेश्वरम में गिरा जो धनुष कोटि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मध्यभाग का धनुष नेपाल के धनुषाधाम में है। शिव धनुष का बीच का भाग जहां गिरा वह जगह धनुषा ही है। धनुष का टुकड़ा गिरने के कारण ही इस जगह का नाम धनुषा पड़ा। स्थानीय लोगों की मान्यताओं के मुताबिक, शिव धनुष का मध्य भाग जहां गिरा है उस के पास एक पीपल का पेड़ है। उसी पेड़ के पास एक कुंड स्थित है, जिसे धनुष कुंड के नाम से जाना जाता है। इसी धनुष कुंड के जल के आकार से यहां अंदाजा लगाया जाता है कि इस बार फसल कैसी होगी। शिव धनुष के मध्य भाग के टुकड़े को लेकर ये भी कहा जाता है कि यह हर 5 से 7 साल में थोड़ा-थोड़ा बढ़ता जा रहा है। वहीं धनुषा धाम मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है कि यहां हर तरह के मस्से से छुटकारा पाया जा सकता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, अगर कोई कहता है कि उसका बढ़ता हुआ मस्सा रुक जाए तो वह आकर यहां बैंगन का भार चढ़ाएगा तो उसे बढ़ते मस्से से मुक्ति मिल जाती है। मकर संक्रांति के मौके पर लोग बैंगन का भार चढ़ाने आते हैं।धनुषा धाम में धनुष मंदिर है, जहां हर दिन भक्तगण पूजा करने आते हैं। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यहां जो भी लोग शिव धनुष वाले स्थान के दर्शन और पूजा करते हैं उन पर मां जानकी और राम जी के साथ महादेव भोलेनाथ की भी कृपा बरसती है। मकर संक्रांति के मौके पर धनुषा धाम में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यहां के लोगों का धनुषा धाम मंदिर पर गहरा और अटूट विश्वास है। भारत में प्रभु राम किसी के बेटे समान हैं तो किसी के गुरु तो किसी के भाई और ईष्ट। लेकिन नेपाल में राम जी केवल दामाद हैं। दरअसल, मां जानकी मिथिला वासियों के लिए बेटी के समान हैं तो इस तरह राम जी में उन्हें दामाद की छवि ही दिखाई देती है। आज भी यहां विवाह पंचमी के दिन राम-सीता का विधिपूर्वक विवाह संपन्न करवाया जाता है। विवाह पंचमी के दौरान अयोध्या से बारात जनकपुरधाम आती है। जनकपुर में भव्य जानकी मंदिर स्थित है, जहां सिया-राम के साथ लक्ष्मण जी और हनुमान जी की मूर्ति विराजमान है। विवाह पंचमी के दिन जनकपुरधाम में बड़े स्तर पर उत्सव का आयोजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, विवाह पंचमी के दिन भगवान राम माता सीता के साथ विवाह के बंधन में बंधे थे। वाल्मीकि रामायण में पिनाक धनुष भंग का विवरण काफी विस्तार से दिया गया है। त्रेतायुगीन जनक सीरध्वज मुनि विश्वामित्र और श्री राम को पिनाक धनुष का इतिहास बताते हुए कहते हैं कि मेरे पूर्वज देवराज को भोलेनाथ ने यह संभाल कर रखने के लिये दिया था। इसकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए मिथिला नरेश कहते हैं कि इस धनुष का प्रयोग मेरे वंश में कोई नहीं कर सका क्योंकि इसे उठाना और प्रत्यंचा चढ़ा पाना किसी के वश की बात नहीं। इसका आकार काफी विशाल है। इसे आठ पहियों वाले संदूक में रखकर मेरे पूजा घर में रखा गया है। हमारे परिवार की पुत्रियां धनुष वाले संदूक के चारों तरफ सफाई करती रहीं हैं। मिथिला नरेश कहते हैं कि बड़े आश्चर्य की बात है कि जबसे मेरी भूमिजा पुत्री सीता कुछ बड़ी हुई है तब से ही वह बड़ी सहजता से ना केवल संदूक को इधर उधर आसानी से कर देती है बल्कि पिनाक धनुष को भी यहां से उठा कर वहां रख देना और चारों तरफ की सफाई करने में इसे कोई परेशानी नहीं होती। जानकी का यही गुण देख कर मिथिला नरेश ने इसका विवाह उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया जो पिनाक धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो। इसकी घोषणा कर दी गई है लेकिन बड़े दुख की बात रही कि अनेक पुरुष आये लेकिन कोई भी समर्थ साबित नहीं हुआ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट अवस्थित मैदान रंगभूमि में इस धनुष को लाने के लिये सैकड़ों आदमियों को परिश्रम करना पड़ा। सैकड़ों आदमी आठ पहिये वाले संदूक को रस्सी से खींच कर यहां लाने में समर्थ हुए। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था। धनुष के टुकड़े चारों ओर फैल गए थे। उनमें से कुछ टुकडे़ यहां भी गिरे थे। मंदिर में अब भी धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में माने जाते हैं। त्रेता युग में धनुष के टुकड़े गिरे तो विशाल भू भाग में थे लेकिन इसके अवशेष को सुरक्षित रखा अब तक केवल धनुषा धाम के निवासियों ने। भगवान शंकर के पिनाक धनुष के अवशेष की पूजा त्रेता युग से अब तक अनवरत यहां चलती आ रही है जबकि अन्य स्थान पर पड़े अवशेष लुप्त हो गये। धनुषा के लोगों ने आज तक न केवल स्मृति अपितु ठोस साक्ष्य भी संभाल कर रखे हुए है। लोक मान्यता के अनुसार दधीचि की हड्डियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्र निर्मित हुए थे। वज्र इंद्र को मिला था। सारंग विष्णुजी को मिला था जबकि पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवराज के पास रखा हुआ था।इसी पिनाक धनुष को श्रीराम ने तोड़ कर विघटित कर दिया। इसके विघटन की सूचना पाकर सारंग धनुष का प्रयोग करने वाले परशुराम सत्य की पुष्टि के लिये तुरंत मिथिला की ओर रवाना हो गये। दोहरि घाट में राम और परशुराम का मिलन हुआ। यहीं विष्णु के नवोदित अवतार श्री राम ने अपना सारंग धनुष परशुराम से वापस ले लिया। वाल्मिकी रामायण के बालकांड एवं विष्णु पुराण में भी इस घटना का उल्लेख है। (विनायक फीचर्स)