हिमालयी राज्यों में मतदान में उत्तराखंड फिसड्डी क्यों?

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एसडीसी फाउंडेशन ने प्रदेश के मतदाताओं से की रिकॉर्ड सुधारने की अपील

दिनेश शास्त्री
देहरादून। 18वीं लोकसभा के लिए पहले चरण का मतदान शुक्रवार को होने जा रहा है और उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों के लिए देश की 102 सीटों के साथ होने जा रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए हर बार की तरह इस बार भी भरसक प्रयास किए गए हैं लेकिन अतीत के अनुभव की तस्वीर बेहद निराशाजनक है।

इसलिए प्रदेश के मतदाताओं से यह स्वाभाविक अपेक्षा हो जाती है कि वे राष्ट्रीय फलक पर उत्तराखंड की वही चमकदार स्थिति हो, जैसे विभिन्न क्षेत्रों में इस धरती के लोगों ने अन्य क्षेत्रों में स्थापित की है। देश के अन्य राज्यों की बात छोड़ भी दें तो मतदान करने के मामले में केवल हिमालयी राज्यों में जम्मू कश्मीर को छोड़ कर उत्तराखंड के लोग अंतिम पायदान पर हैं, यह हाल तब है जबकि साक्षरता के पैमाने पर उत्तराखंड की स्थिति कहीं बेहतर है। इसके बावजूद अगर मताधिकार का प्रयोग करने के मामले में हम फिसड्डी हैं तो यह चिंता में डालने वाला मामला है।

जम्मू कश्मीर को मतदान के मामले में फिलहाल अलग रख देते हैं, कारण यह कि वहां पिछले तीन दशक से आतंकवाद का चलन रहा है। वहां मतदान का एक अलग ट्रेंड रहा है और काफी कुछ बाह्य दबाव मतदान के मामले में कारक तत्व रहे हैं।

अब एक नजर शेष हिमालयी राज्यों में मतदान के प्रतिशत पर डालें तो हम पाते हैं कि नागालैंड में 83 प्रतिशत, मणिपुर में 82.69 प्रतिशत, त्रिपुरा में 82.40 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 82.11 प्रतिशत, सिक्किम में 81.41 प्रतिशत, पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में 72.42 प्रतिशत, मेघालय में 71.43 प्रतिशत, मिजोरम में 63.14 प्रतिशत और उत्तराखंड में सबसे कम 61.88 प्रतिशत मतदान का औसत है। यह पिछले चुनाव का आंकड़ा है। इस लिहाज से यह स्थिति प्रदेश के लोगों की जागरूकता को दर्शाती है। लोकतंत्र में ले – देकर एक अधिकार मतदाता के पास है और उसके इस्तेमाल में भी अगर हम अंतिम पायदान पर खड़े हैं तो इस उदासीनता का लबादा अब स्वीकार्य नहीं माना जा सकता।

निर्वाचन आयोग के प्रयासों, स्थानीय प्रशासन द्वारा की जा रही कोशिशों और स्वैच्छिक संगठनों के अपने स्तर से किए जा रहे प्रयासों के बीच एसडीसी फाउंडेशन के प्रमुख अनूप नौटियाल ने प्रदेश के लोगों से अपील की है कि वे 19 अप्रैल को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें। श्री नौटियाल ने प्रदेश के लोगों से आह्वान करते हुए कहा है कि राज्य में पिछले सभी लोकसभा चुनावों में वोट देने वालों की संख्या काफी कम रही है। उत्तराखंड में कम मतदान प्रतिशत सामाजिक और राजनैतिक प्रक्रिया से दूर रहना चिंता का एक बड़ा विषय है। राज्य में पिछले चुनावों में मतदान प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से बेहद कम रहा है, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में समस्त हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड सबसे कम मतदान प्रतिशत वाले राज्यों में जम्मू और कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर रहा।

अनूप नौटियाल ने अपनी अपील में कहा है कि उत्तराखंड में कम मतदान के ट्रेंड को बदलने की जरूरत है और यह तभी संभव है, जब हर मतदाता मतदान को अपना नैतिक कर्तव्य माने और वोट डालने के लिए हर संभव प्रयास करे।

उन्होंने प्रदेश के मतदाताओं से विनम्र अपील की है कि वे खुद तो वोट डालने जाएं ही, साथ ही अगर संभव हो तो आसपास के 5 से 10 ऐसे लोगों को भी वोट डालने के लिए अपने साथ ले जाएं, जो वोट डालने में लापरवाही करते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी निवेदन किया है कि जो लोग व्यवसायी हैं, कोई कंपनी चलाते हैं या फिर शिक्षण संस्थान आदि चलाते हैं, उन्हें अपने कर्मचारियों को भी वोट डालने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

श्री नौटियाल ने कहा कि अपनी मनपसंद की सरकार चुनने में हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और यह तभी संभव है, जब हर मतदाता मतदान केन्द्र पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करे। देश के नागरिकों को अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार लंबे संघर्ष के बाद मिला है। इसलिए प्रदेश के लोग लोकतंत्र की मजबूती के लिए हम अपने इस अधिकार का उपयोग अवश्य करें।

श्री नौटियाल की तरह ही अन्य कई अन्य संगठनों ने भी आम जनता से अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अपील की है। देखना यह है कि इस बार प्रदेश के लोग कितनी जागरूकता दिखाते हैं। यह तो स्वाभाविक अपेक्षा की ही जाती है कि देवभूमि के लोग अपनी श्रेष्ठता मतदान करने में भी दर्ज करें।

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