ब्यूरो लखनऊ (उ.प्र.) : पंकज सीबी मिश्रा (सम्पादक)
गुजारा भत्ता कों ना कहना संविधान का अपमान, नेम प्लेट मामले पर अब फर्क नहीं।
लखनऊ ( पंकज सीबी मिश्रा ) : मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीमकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है और उस फैसले का समर्थन किया है जिसमें नेम प्लेट की बाध्यता ख़त्म कर दी गई । इस दोहरे रवैये पर अब मुश्लिम समाज दो फाड़ होगा। मुस्लिम बोर्ड खुलकर सर्वोच्च अदालत के सामने आ गया। बोर्ड ने कहा कि कोर्ट का यह आदेश मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ़ है , पर्सनल ला बोर्ड के खिलाफ है। बोर्ड का मानना है कि तलाकशुदा मुस्लिम औरतें बेशक भूखी मर जाएं लेकिन शरिया के मुताबिक उन्हें गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। दिल्ली में हुई बैठक में मुस्लिम बोर्ड के सभी 51 सदस्य उपस्थित थे । बोर्ड ने उत्तराखंड में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता यूसीसी के खिलाफ़ कानूनी जंग लड़ने का फैसला किया । यूसीसी को भी बोर्ड ने शरिया के खिलाफ घोषित किया। गुजारा भत्ते से संबंधित आदेश को वापस कराने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। बोर्ड ने प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि औरतों की भलाई के नाम पर दिया गया आदेश शरिया के ही नहीं , मुस्लिम औरतों के भी खिलाफ है। बहरहाल बोर्ड ने यह नहीं बताया कि जिस और को उसके शौहर ने तलाक़ देकर बच्चों सहित निकाल दिया है, वह बच्चों को कैसे पढ़ाए और कैसे जीवन यापन करे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बचाने और बच्चों की समृद्धि के लिए आया महत्वपूर्ण फैसला है । फैसले से मुस्लिम समाज की दस करोड़ औरतों का भविष्य जुड़ा है । सुप्रीमकोर्ट ने इससे पहले एक अहम फैसला सुनाते हुए तीन तलाक़ को खारिज कर दिया था। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने उसे भी शरिया के विरुद्ध बताया था, लेकिन उसे लेकर कोर्ट नहीं गया था। संसद उसे कानून बना चुकी है। चर्चा और मिडिया के मुताबिक ऐसा ही आदेश पहले प्रसिद्ध शाहबानों केस भी आ चुका है । पांच बच्चों की मां शाहबानो इंदौर निवासी थी जिसे उसके वकील पति ने तलाक दे दिया था। शाहबनों ने गुजारा भत्ता के लिए केस डाला। पहले जिला अदालत और बाद में उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता देने के पक्ष में फैसला सुनाया। मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंचा और बड़ी अदालत ने भी शाहबानो के पक्ष में आदेश दिया। मुस्लिम बोर्ड ने तूफान मचा दिया और दो तिहाई बहुमत से आई राजीव गांधी सरकार न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अध्यादेश लाई। बाद में संसद ने बहुत भारी बहुमत से सुप्रीमकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया। शाहबानो बुढ़ापे में दर दर भटकती रही और बेबसी में मर गई। जाहिर है यदि आज केंद्र में इंडी अलायन्स की सरकार होती तो गुजारा भत्ता देने का यह आदेश भी रद्द हो गया होता। क्या करें, शरिया सब पर भारी। संविधान का शोर और कोर्ट का हर फैसला मानने की बातें सिर्फ बातें हैं बातों का क्या। मुस्लिम औरतों के मसले पर वे तमाम राजनेता चुप रहेंगे जो दस करोड़ मुस्लिम औरतों के वोट लेते हैं। अब जरा सोचिए कि कोई भी मुसलमान से खाने पीने का सामान क्यों नही खरीदना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार ने नेम प्लेट लगाने वाले आदेश पर स्टे लगा दिया है।अब आपका नाम कुछ भी हो लेकिन पहचान छिपाकर ढाबा/होटल चला सकते हैं। आप शिवलिंग को फव्वारा भले कहें लेकिन पैसा कमाने के लिए शिव भोजनालय चला सकते हैं। आप श्री राम को काल्पनिक भले कहें लेकिन पैसा कमाने के लिए श्रीराम होटल चला सकते हैं। आप हिंदुओं को काफ़िर कहें लेकिन उनके देवी-देवताओं के नाम पर ढाबा चला सकते हैं। आप भारत माता की जय भले न कहें लेकिन पैसा कमाने के लिए भारत माता होटल चला सकते हैं हमारे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी होटल/ढाबे/दुकानदार को अपनी दुकान पर नेम प्लेट लगाने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने योगी सरकार का वह आदेश फिलहाल स्वैछिक कर रोक दिया है। उधर सोनू सूद पर नेता बनने का भूत सवार है और उन्हें ममता से बंगाल में टिकट की उम्मीद है ताकि तुष्टिकरण वाली राजनीति करके अब रसूख कमा सकें। अभिनेता सोनू सूद ने यूपी के नेम प्लेट आदेश पर लिखा,”हर दुकान पर बस एक ही नेम प्लेट होनी चाहिए, ह्युमनिटी” तो किसी राष्ट्रवादी समर्थक ने लिखा कि, “भाई तुम ही थूका हुआ खाओ” इस पर सोनू सूद ने गांधीवादी स्टाइल में रिप्लाई दिया, “जब शबरी के जूठे बेर हमारे श्रीराम ने खाए थे तो मैं क्यों नहीं” बेचारे सोनू भैया कौन समझाए कि सिर्फ थूक ही नहीं बहुत कुछ मिलेगा। और शबरी के भाव भक्ति वाले थे जो अपने प्रभु की आस में बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। जबकि इधर जो भाव है उनमें का फिर है। अर्थात् जानबूझकर कर रहे है। सोनू भैया आपने थूकी हुई रोटी खाने की हामी भरी है क्योंकि आपमें मानवता है, कृपया आप उन्हें अपने थूक वाली आइटम्स ऑफर करें। फिर देखें, कितनी मात्रा में ह्युमनिटी निकलती है। ऐसे चोचले बोलने व लिखने में बढ़िया लगते है, असल में सब्जी में एक बाल दिख जाए तो खाना साइड करके बनाने वाले पर झिड़क पड़ते है।