डॉ0 हरि नाथ मिश्र,अयोध्या(उ0प्र0)
इंद्रधनुष के स्वाद।
रहे सदा सतरंगी जीवन,
चाहत सबकी रहती है।
इंद्रधनुष को देख जिस तरह,
राहत मन को मिलती है।।
सप्त रंग की अद्भुत रेखा,
सजी दिखे नभ-मंडल पर।
धनुष सदृश यह गगनांगन में,
शुभकर रहे अमंगल पर।
होकर निर्मित जल-बूँदों से,
रवि-आभा सँग पलती है।।
रहे सदा सतरंगी………।।
विविध रूप-रँग इस जीवन के,
इंद्रधनुष में दिखते हैं।
वाह्याकर्षण छलिया बनकर,
कैसे सबको ठगते हैं?
चित्ताकर्षक अतुलित छवि यह,
पुनि-पुनि जग को छलती है।।
रहे सदा सतरंगी………..।।
हरे-बैंगनी,नीले-पीले,
नारंगी – सतरंगी सब।
लाल-जामुनी रंग निराले,
याद दिलाते हैं अब-तब।
कैसे जीवन रूप बदलता,
कैसे संध्या ढलती है??
रहे सदा सतरंगी………..।।
कभी प्रसन्नता अतिशय मिलती,
कभी उदासी छाती है।
कभी मधुर गीतों को गाते,
कभी तो राग रुलाती है।
मिश्रित रंगी इंद्रधनुष सम,
जीवन-रेखा चलती है।।
रहे सदा सतरंगी जीवन,
चाहत सबकी रहती है।।