
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’, वाराणसी।
जयति हिन्दी जय
जयति जय-जय
जयति जय-जय
जयति हिन्दी जय।
बोलियों की बहन हो
सबसे बड़ी,
जानती संबंध की
बारहखड़ी,
भोज भाषा की सगी
भी हो सखी,
‘दास तुलसी’ के अवध
का फल चखी,
मिली मगही-मैथिली से
एकता की लय,
जयति हिन्दी जय।
साधती हर प्रांत से
संपर्क हो,
शब्द-विविधा का लिए
खुद तर्क हो,
भरे हैं वैज्ञानिकी
से हर्फ़ हर,
पीर को पिघला रही
हो बर्फ़ तर,
है सुहज संवाद मधुरिम
बोल है अति नय,
जयति हिन्दी जय।
विश्व से आदर सदा
शिव पा चुकी,
सत्य है संज्ञान जन
मन छा चुकी,
शब्दिता के सूर्य की
पहली किरण,
प्रवह हर दिन दौड़ता
जैसे हिरण,
राजभाषा बन किया है
हर प्रबंधन तय,
जयति हिन्दी जय।