डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
सबकी हिन्दी।
हिन्दी में मस्ती ही मस्ती।
हिन्दी में नैतिकता बसती।।
मानवता का मंत्र सिखाती।
दिव्य भावमय तंत्र बनाती।।
सहज मधुर अति मोहक भाषा।
सकल विश्व की जागृत आशा।।
भारतीय संस्कृति की रचना।
विश्वबंधु भाव संरचना।।
कोमल मृदुल भव्य हितकारी।
सर्वोत्तम यह शाकाहारी।।
सत्व समाहित इस भाषा में।
सत्य सुशोभित परिभाषा में।।
रसमय मधुमय शिवमय कविता।
शीतल करती बनकर सरिता।।
छंदों का य़ह हिम -आलय है।
जन-कल्याणी शिव-आलय है।।
माँ सरस्वती की शुभ कन्या।
गीत मधुर संगीत अनन्या।।
स्तुत्य अलंकृत अलंकार है।
हिन्दी भाषा निर्विकार है।।
जो भी हिन्दी को अपनाता।
वह जीवन का हर सुख पाता।।
अति कमनीय काम्य सुखराशी।
हिन्दी अमृत घट अविनाशी।।