
सुमन शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली।
अब कब मिलना ….
अब कभी तुम्हें मिलने के लिए नहीं कहूँगी मैं।
क्यों ?
क्या तुम्हें ये पूछने की जरूरत हैं ?
ठीक हैं मत कहना। और हाँ इसके लिए तुम्हारा थैंक्स।
शोभा कुछ देर के लिए शांत हो गई। फिर कुछ सोच कर बोली पता नहीं जीवन में कब मौत मिल जाएगी और मन की बात मन में रह जाएगी। इसलिए कह रही हूँ। मैं तुम्हें इसलिए कभी मिलनें के लिए नहीं कहूँगी क्योंकि तुम मिलना ही नहीं चाहते। शायद इसका एक बड़ा कारण मुझे अब समझ आ रहा हैं।
क्या कारण ?
यहीं कि ……
क्या यहीं कि ….. मुझे तुम्हारी यहीं बातें सबसे गंदी लगती हैं। सामने वाला कितना भी शांत रहना चाहे लेकिन तुम …. तुम तब तक उसे पोक करती रहोगी जब तक कि सामने वाला तुम्हारी तरह बैचेन न हो जाए।
नहीं ….. ऐसा कुछ नहीं हैं
ऐसा ही हैं ,,,,, मैं सब समझता हूँ।
कुछ नहीं समझते तुम , तुम्हें तुम्हें सिर्फ उस चमारिन की बात समझ आती हैं।
अब वो कहाँ से आ गई बीच में ……
वो जाती ही कब हैं ….. तुम्हें उसे गले लगाकर, उसके साथ बिस्तर साझा करने में जो मजा आता हैं वो मेरे साथ कहाँ महसूस कर पाते हो तुम। मेरे समर्पण का तुम्हारे लिए कोई अर्थ नहीं क्योंकि मुझे उसकी तरह पुरुषों को खुश करना नहीं आता। तुम्हें भी कहाँ खुश कर पाई मैं …..इसलिए तो मुझसे मिलना नहीं चाहते तुम।
बकवास बंद करो अपनी। और मैंने तुम्हें नहीं कहा था कुछ समपर्ण करनें के लिए तुम खुद ही आई थी मेरे पास।
हाँ ….. हाँ मैं खुद ही आई थी तुम्हारे पास और उस चमारिन के पास तुम खुद गए थे। हैं ना …..
हाँ गया था क्या करोगी तुम ? हाँ आता हैं उसके साथ मजा तुम्हें कोई बात ही नहीं अब बताओ क्या कर लोगी तुम ? बोलो अब बोलती क्यों नहीं …. बोलो रघु ने फ़ोन पटक दिया। दो ही मिनट बाद मोबाईल फिर घनघना उठा। रघु ने फ़ोन उठा कर बड़े तेज़ स्वर में कहा देखो मैं बहुत कमीना इंसान हूँ अब तुम्हें पता चल गया न तो अब दया करके मुझे छोड़ दो। और मैंने जो तुम्हारे साथ किया चलो सब मेरी गलती हैं अब ठीक हैं और कुछ तुम्हारे पैर पकड़ लू तुम्हारा, और क्या लोगी ?
शोभा की आवाज काँप गई बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही कह पाई – नहीं रह पाऊंगी तुम्हारे बिना।
वो मेरी समस्या नहीं हैं ……और देखो ये फ़िल्मी डायलॉग मत बोलो तुम्हें पता हैं कि मुझे ये सब पसंद नहीं। और मैं सच कह रहा हूँ मैं बहुत खराब आदमी हूँ यार ऐसे आदमी को तुम छोड़ क्यों नहीं देती। और मैं एक हज़ार बार कह चूका हूँ मुझे शादी नहीं करनी।
शोभा की रुलाई छूट गई …..
उसका सुबकना सुनकर रघु ने फोन काट दिया। जब भी दोनों की किसी बात पर बहस होती तब हमेशा ऐसे ही होता। शांति से बात करके भी समस्या सुलझाई जा सकती हैं, ये एक बात उन दोनों के जीवन में कहीं भी नहीं दिखती थी।
तुम्हारी गलती नहीं हैं रघु, गलत तो मैं हूँ। जो तुम्हारा और उस चमारिन का सच जान कर भी मैं तुम्हारे साथ अपनी मर्यादा की सीमा को लांघ गई। तुम सिर्फ मुझे मेरे किए की एक सजा का रूप बन गए हो बस। ऐसी सजा जिसे मैंने खुद चुना हैं। हर इंसान के जीवन में कोई न कोई ऐसा शख्स जरुर होता हैं जिसेस वो बहुत प्यार करता है लेकिन वो इंसान उससे प्यार नहीं करता, उसकी परवाह नहीं करता। मेरी जिंदगी में वो इंसान तुम हो और तुम्हारी जिंदगी में वो इंसान वो चमारिन हैं। उसके फ़ोन का तुम्हें इंतज़ार रहता हैं और तुम्हारे फ़ोन का मुझे। तुम में और मुझमें सिर्फ इतना ही फर्क हैं कि मैं मान लेती हूँ और तुम इस सच को नकार देते हो।
और जानते हो तुम्हारा इस सच को नकार देना मुझे एक झूठी आस में बांध देता हैं बार-बार। बार – बार मुझे लगता हैं कि शायद कहीं तुममें थोड़ा कहीं लगाव हैं मेरे लिए। और मेरा मन मेरा प्रयास तुम तक फिर लौट आता हैं। और फिर वहीँ चक्र शुरू हो जाता हैं अपमान का तिरस्कार का। मुझे ऐसा लगता हैं कि अगर तुम स्पष्टता के साथ मेरे लिए ये स्वीकार कर लो कि हाँ तुम उस चमारिन के साथ हो तो शायद मेरा मन इस बार बार के अपमान को जीने से, कुंठित होने से बच जाएगा। प्यार तो शायद मुझे तब भी रहेगा लेकिन फिर वो प्यार मेरे खुद तक ही सिमट जाएगा। फिर मैं कभी तुमसे कोई शिकायत न करुँगी। शायद टूट जाऊंगी मैं पर तुमसे लगाव का कोई झूठा भ्रम तो न रहेगा। शायद तब मैं तुमसे दूर जा पाऊंगी।
हालाँकि तुम्हारे बात न करने से, मेरा फ़ोन न उठाने से, मेरे मेसेज का उत्तर न देने से भी यहीं होगा पर तब ये इतना धीरे धीरे होगा कि ये मेरे मन की शक्ति को खत्म कर देगा, मेरे मन की हर कोमल भावना को मार देगा। ऐसे तो शायद मैं अंदर से खत्म हो जाऊंगी ……. सदा के लिए
इसलिए मैं चाहती हूँ कि एक अच्छे इंसान की तरह तुम मुझे हर भ्रम से मुक्त कर दो। हर उस भ्रम से जो तुमने खुद बनाए थे मुझमें अपने लिए। और अगर तुम्हारी बेरुखी मेरा भ्रम हैं तो अपने प्यार से अपने साथ से मेरा जीवन मेरा मन गुलजार कर दो मेरे प्यार ……. और फिर तब मिलना।