
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
नीतिगत दोहे
कर्म करे नित अनुगमन, निज कर्त्ता का खास।
सहस धेनु तज बच्छ जा, निज माँ गो के पास।।
रहे चित्त यदि विकल अति, जन-वन में सुख नाहिं।
चित्त जले जन मध्य अपि, सूनापन वन माहिं।।
खोद परसु से मनुज यह, वारि भूमि से पाय।
गुरु की सेवा से मिले, वैसे ज्ञान-उपाय ।।
अन्न-नीर-मधु वचन हैं, पृथ्वी के त्री रत्न।
मान रत्न पाषाण को, रखता मूढ़ सयत्न।।
रोग-गरीबी-लत बुरी, निज स्वभाव-फल होंय।
तरु-फल भी वैसा मिले, जैसा बीज तु बोय।।