डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
गजल
फूल राहों में दुनिया बिछाती नहीं।
बातें सच्ची कभी यह बताती नहीं।।
हम तो अपना समझ कर इसे चाहते।
यह तो मग़रूर, अपना बनाती नहीं।।
नफ़रतें-बेवफाई का देती सबक़।
चलना सीधा कभी यह सिखाती नहीं।।
प्रेम-सद्भाव से बात बन जाती है।
पाठ ऐसा ये दुनिया पढ़ाती नहीं।।
सँभल के हमेशा जो रहता जहाँ में।
जान लो, उसको दुनिया सताती नहीं।।
प्यार में मीत धोखा है मिलता यहाँ।
त्याग की रीति सबको तो आती नहीं।।
फूल के बदले काँटे मिलें पर यहाँ।
आस्था प्रेम की मन से जाती नहीं।।