डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
‘नव संवत्सर'(स्वागत)
आ गया वर्ष नूतन सभी हों मगन,
सूर्य लेकर नई रौशनी आ गया।
अभी अलविदा बीती रजनी को कह-
हर दिशा में अनूठा नशा छा गया।।
बाग में जो कली अधखिली सी रही,
खिल गई देख मस्ती नए वर्ष की।
हुआ मन मगन सुन भ्रमर गीत-गुंजन-
हो गई दिव्य वर्षा परम हर्ष की।।
खेत की सब फसल भी सुनहरी दिखें,
रूप जैसे अवनि का सँवारा लगे।
मस्त खशबू फिजा को सुगंधित करे-
भाव मन में सुकोमल- दुलारा जगे।।
सतत धारा सरिता की कल-कल बहे,
नीर निर्मल सरोवर कमल-दल सजे।
कोपलों से गए सज सभी वन-विटप-
गीत-संगीत खग-कुल निरंतर बजे।।
जिस तरफ़ देखिए नव सृजन ही सृजन,
हो वनों – उपवनों – पर्वतों पे सभी।
प्रकृति का सुहाना सफर दिव्यतम यह-
रहे जग में कायम, है जैसा अभी।।